संकट अभी टला नहीं, कोरोना वैक्सीन का दूसरा टीका लगवाने में लापरवाही बरतने वाले हो जाएं सतर्क
प्रदेश में अभी मात्र 30 प्रतिशत लोगों को ही कोरोना रोधी टीके की दोनों डोज लगी हैं। जो लोग कोरोना से बचाव के लिए दूसरा टीका नहीं लगवा रहे हैं वे अपने और परिवार के प्रति संवेदनशील नहीं हैं।
पंचकूला, राज्य ब्यूरो। कोरोना वायरस अभी वातावरण में उपस्थित है। संकट टला नहीं है। हरियाणा के 18 लाख से अधिक लोग ऐसे हैं जो कोरोना संक्रमणरोधी वैक्सीन का टीका तो लगवा चुके हैं, लेकिन दूसरा टीका लगवाने के प्रति असावधानी बरत रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि कोरोना वायरस की भयावहता को देखते हुए इन लोगों को स्वत: स्फूर्त भाव से दूसरा टीका लगवाने के लिए आगे आना चाहिए था। विचारणीय है कि टीका लग जाने के बाद भी कोई कोरोना संक्रमण से सौ प्रतिशत सुरक्षित नहीं होता है, लेकिन इतना अवश्य होता है कि संक्रमित होने के बाद वह उपचारोपरांत स्वस्थ हो जाता है। जिन्हें दोनों टीके लग चुके हैं, प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या अभी मात्र 30 प्रतिशत ही है। जिन्हें पहला टीका लगा है, उनकी संख्या 79 प्रतिशत है। यद्यपि कुछ सीमा तक वह भी स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर सकते हैं, लेकिन दूसरा टीका आवश्यक है।
अब जनजीवन सामान्य हो गया है। औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियां सुचारु हैं। दुर्गापूजा से लेकर दीपावली तक उत्सव का वातावरण रहता है। चारों ओर चहल-पहल भीड़-भाड़ रहती है। ऐसे में संक्रमण के प्रसार की आशंका बलवती रहती है। इसलिए दोनों टीके लगे रहने पर आप स्वयं तो सुरक्षित रहते ही हैं, सामने वाले को भी सुरक्षित रखते हैं। कोरोना संक्रमण ने राष्ट्र, प्रदेश और समाज को जो जनक्षति पहुंचाई है उसकी पूर्ति तो कभी नहीं हो सकेगी, लेकिन जो धनक्षति हुई है उसकी भरपाई करने में भी हमें वर्षों लग जाएंगे। इसके बाद भी जो लोग असावधानी बरत रहे हैं, टीका लगवाने से मुंह मोड़ रहे हैं, वे एक तरह से समाज के प्रति द्रोह कर रहे हैं। जो लोग टीके लगवा चुके हैं, उन्हें चाहिए कि ऐसे लोगों को प्रेरित करें, उन्हें समझाएं।
यदि कोरोना वायरस फिर प्रभावी हुआ तो हानि पूरे समाज को होगी। जब इतनी बड़ी संख्या में लोग टीके लगवा चुके हैं और स्वस्थ एवं सानंद हैं तो टीके के किसी दुष्प्रभाव का प्रश्न ही नहीं उठता। प्रदेश सरकार अपनी तरफ से शत-प्रतिशत टीकाकरण के लिए प्रयास कर रही है तो हमारा भी कर्तव्य है कि हम अपने और अपने परिवार के, समाज के स्वास्थ्य की चिंता करें।