Chautala Family Politics: भतीजे दुष्यंत चौटाला को उनके ही गढ़ में चुनौती दे गए चाचा अभय
अभय चौटाला इन दिनों खूब सक्रिय हैं। चार दिन तक वह भतीजे दुष्यंत चौटाला के विधानसभा क्षेत्र उचाना में रहे। पुराने वर्करों को साथ जोड़ा। अभय ने 40 गांवों दस्तक दी। वह किसानों के बीच भी जा रहे हैं और कार्यकर्ता सम्मेलन भी कर रहे हैं।
चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। तीन कृषि कानूनों के विरोध में ऐलनाबाद विधानसभा सीट से इस्तीफा देने वाले इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला और उनके भतीजे उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के बीच राजनीतिक खींचतान बढ़ती जा रही है। दुष्यंत चौटाला जींद जिले के उस उचाना विधानसभा क्षेत्र से जननायक जनता पार्टी के विधायक हैं, जहां से उनका दादा इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला विधायक रह चुके हैं।
अभय चौटाला ने लगातार चार दिन तक अपने भतीजे के विधानसभा क्षेत्र में रहकर न केवल उन्हें चुनौती दी, बल्कि अपनी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को इनेलो से दोबारा जोड़ने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट से चार साल पहले ही इस्तीफा दे चुके अभय चौटाला आजकल पूरे प्रदेश के दौरे पर हैं। वह किसानों के बीच भी जा रहे हैं और कार्यकर्ता सम्मेलन भी कर रहे हैं।
विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण अभय चौटाला इस बार सदन में नहीं दिखाई दिए, लेकिन उन्होंने सदन से बाहर रहकर ही तीन कृषि कानूनों के विरोध में आवाज बुलंद करते हुए भाजपा-जजपा गठबंधन और कांग्रेस पर खुले हमले बोले। उनके निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दुष्यंत चौटाला अधिक रहे।
प्रदेशव्यापी दौरों की कड़ी में अभय चौटाला ने योजनाबद्ध तरीके से उचाना हलके में चार दिन तक रहने का कार्यक्रम बनाया। चौटाला ने चार दिन में 40 गांव कवर किए। पहले दिन कुछ जजपा कार्यकर्ताओं ने उनका विरोध भी किया, लेकिन इस प्रायोजित विरोध को यदि नजरअंदाज कर दिया जाए तो बाकी दिनों में वहां के लोगों और कार्यकर्ताओं ने अभय को हाथोंहाथ लिया।
इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला के कुछ पुराने साथियों ने अभय से कहा कि दुष्यंत को समझाओ। इसके जवाब में चाचा बोले कि मैंने तो जितना समझाना था, समझा लिया, अगर आप लोग समझा सकते हैं तो प्रयास करके देख लो। अभय अपने पुराने वर्करों के घर भी गए और जनसभाएं की। पुराने कार्यकर्ता उनसे मिलने आए। काफी कार्यकर्ताओं की इनेलो में वापसी भी कराई गई।
तीन कृषि कानूनों के विरोध के चलते किसान जत्थेबंदियां आंदोलन कर रही हैं। इसी के चलते दुष्यंत नियमित रूप से उचाना हलके में नहीं आ पा रहे हैं। हालांकि फोन, फेसबुक, ट्वीटर और इंटरनेट मीडिया के जरिये वह उचाना के संपर्क में हैं। दुष्यंत सिरसा भी गए। चाचा और भतीजे की राजनीतिक तलखियां किस हद तक बढ़ गई हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोई भी एक-दूसरे को भला-बुरा कहने से नहीं चूकता।
अभय कहते हैं कि दुष्यंत और उनके पिता अजय चौटाला को राजनीतिक तौर पर मैंने स्थापित किया, जबकि दुष्यंत कहते हैं कि चाचा की बातों में कोई गंभीरता नहीं होती। असलियत क्या है, यह तो इनेलो का काडर बेस कार्यकर्ता ही जानता होगा, लेकिन चाचा-भतीजे की यह राजनीतक जंग प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा में है।
बीरेंद्र सिंह और चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता है उचाना
जींद जिले का उचाना हलका राजनीतिक रूप से बेहद चर्चित रहता है। इनेलो के टूटने के बाद उचाना से जजपा प्रत्याशी के रूप में दुष्यंत चौटाला ने भाजपा प्रत्याशी को 47 हजार 452 मतों से पराजित किया। उचाना में इससे पहले हुए नौ विधानसभा चुनावों में पांच ही चेहरे जीतते रहे हैं, लेकिन दुष्यंत चौटाला छठे नए चेहरे के रूप में विधायक बने। 1967 में जब हरियाणा अलग राज्य बना, उस समय उचाना राजौंद विधानसभा क्षेत्र में आता था। 1977 में उचाना कलां अलग विधानसभा क्षेत्र बना। तब से कांग्रेस के बीरेंद्र सिंह, लोकदल के देसराज नंबरदार, इनेलो के भाग सिंह छात्तर, इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला और बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भाजपा के टिकट पर उचाना से चुनाव जीते। 2019 में दुष्यंत की जीत हुई। यहां से बीरेंद्र सिंह सबसे अधिक बार चुनाव जीते।