हरियाणा की राजनीति के 'गब्बर' अनिल विज, अफसरशाही को हावी नहीं होने देते, IAS अशोक खेमका से बैठी पटरी
हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज को अफसरों की ढीली कार्यप्रणाली कतई बर्दाश्त नहीं होती। अधिकांश अफसरों से खफा नजर आते हैं और उन्हें कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कहते हैं। आइएएस अशोक खेमका से जरूर उनकी पटरी बैठी है।
जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा की राजनीति में गब्बर के नाम से मशहूर गृह और स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने एक बार फिर अफसरशाही के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। करीब साढे़ छह साल के कार्यकाल में कई बार ऐसे मौके आए, जब विज का शीर्ष स्तर के एक दर्जन अफसरों से सीधा टकराव हुआ। कोपभाजन का शिकार बने अफसरों को देर-सबेर तबादले भी झेलने पड़े, लेकिन उनकी कार्यप्रणाली का तरीका अभी भी नहीं बदला।
ताजा विवाद गृह और स्वास्थ्य सचिव राजीव अरोड़ा से जुड़ा है, जिनकी कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए विज ने मुख्य सचिव विजय वर्धन को चिट्ठी लिखी है। मनोहर सरकार की पहली पारी में भी तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव रामनिवास से खफा विज ने तत्कालीन मुख्य सचिव डीएस ढेसी (अब मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव) के खिलाफ एक्शन लेने की सिफारिश कर उन्हें महकमे से हटवा दिया था। हालांकि डा. राकेश गुप्ता विज की नजर टेढ़ी होने के बावजूद सीएमओ में बरकार रहे, लेकिन बाद में उन्हें भी रुखस्त होना पड़ा।
आइपीएस अधिकारी शत्रुजीत कपूर को विज से विवाद के चलते एडीजीपी सीआइडी की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। फतेहाबाद में विज के साथ तत्कालीन एसपी संगीता कालिया के विवाद ने ऐसा तूल पकड़ा कि इसकी धमक दिल्ली तक सुनाई दी।दरअसल विज तुरंत नतीजे चाहते हैं, जबकि हरियाणा में अफसरशाही की कहानी किसी से छिपी नहीं है।
न केवल अनिल विज, बल्कि उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से लेकर राज्यमंत्री ओमप्रकाश यादव और खेल राज्यमंत्री संदीप सिंह का भी अफसरों से सीधा टकराव हो चुका है। सरकार के पिछले कार्यकाल में पूर्व मंत्री विपुल गोयल, राम बिलास शर्मा, कृष्ण लाल पंवार और राव नरबीर के अधिकारियों से टकराव किसी से छिपे नहीं हैं। यह हालात तब हैं, जब विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने विधायकों की सुनवाई नहीं करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश कर रखी है। कई सांसद-विधायक भी अफसरों द्वारा सुनवाई नहीं करने का मुद्दा उठा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद अफसरशाही का तरीका नहीं बदला।
अपने ही विभाग के अफसरों से नहीं बैठती पटरी
टकराव की शुरुआत हुई सीआइडी विवाद से जब खुफिया विभाग पर वर्चस्व को लेकर गृह मंत्री ने सीआइडी चीफ अनिल कुमार राव के खिलाफ माेर्चा खोल दिया। इसके बाद विश्वास में लिए बगैर आइपीएस अफसरों के तबादलों का आरोप लगाते हुए विज ने खासी नाराजगी जाहिर की। शराब घोटाले में आइएएस शेखर विद्यार्थी और आइपीएस प्रतीक्षा गोदारा भी उनके निशाने पर रहे। पुलिस महानिदेशक मनोज यादव से उनकी तनातनी किसी से छिपी नहीं है।
अनिल विज को खूब पसंद आए खेमका
कई मौकों पर सरकारों से पंगा लेते रहे चर्चित आइएएस डा. अशोक खेमका से विज की पटरी खूब बैठी है। खेल विभाग के प्रधान सचिव रहते खेमका को खेल मंत्री के नाते विज ने उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में 10 में से 9.92 अंक दे दिए। साथ ही यह टिप्पणी भी की कि उन्होंने तीन साल में 20 से अधिक आइएएस अफसरों के साथ काम किया, लेकिन कोई भी अधिकारी उनके करीब नहीं था।
दो साल से स्थाई गृह सचिव नहीं
अगस्त 2019 में तत्कालीन गृह सचिव एसएस प्रसाद की सेवानिवृति के बाद से अभी तक प्रदेश को स्थाई गृह सचिव नहीं मिल पाया है। दो साल से गृह सचिव का कार्यभार अतिरिक्त तौर पर वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों को दिया जाता रहा है। पहले अगस्त 2019 से नवंबर 2019 तक चार महीनों तक वित्तायुक्त नवराज संधू को इस पद की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई तो उनके रिटायर होने के बाद मुख्यमंत्री के तत्कालीन प्रधान सचिव राजेश खुल्लर ने इस पद का अतिरिक्त कार्यभार संभाला। जनवरी 2020 से अप्रैल 2020 तक विजयवर्धन को गृह सचिव का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया और उनके मुख्य सचिव बनने के बाद से ही पहली अक्टूबर 2020 से स्वास्थ्य सचिव राजीव अरोड़ा गृह सचिव की अतिरिक्त जिम्मेदारी संभाले हुए हैं।