अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने से हरियाणा में फिर दोस्ती की पींगें बढ़ा सकते बादल और चौटाला

अकाली दल व भाजपा का गठबंधन टूटने के बाद अब फिर से ओमप्रकाश चौटाला व प्रकाश सिंह बादल एक साथ नजर आ सकते हैं। दोनों की दोस्ती काफी पुरानी है। सुखबीर बादल और अभय सिंह के बीच की दोस्ती भी किसी से छिपी नहीं है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 01:16 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 01:16 PM (IST)
अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने से हरियाणा में फिर दोस्ती की पींगें बढ़ा सकते बादल और चौटाला
2014 जींद रैली में प्रकाश सिंह बादल व ओम प्रकाश चौटाला। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच 22 साल पुराने राजनीतिक रिश्ते टूटने के बाद अब बादल परिवार न केवल पंजाब और दिल्ली बल्कि हरियाणा की राजनीति में भी खुलकर ताल ठोंकने को तैयार नजर आ रहा है। पिछले सालों में अकाली दल और इनेलो की राजनीतिक दोस्ती रही है। अकाली दल पंजाब में भाजपा के साथ और हरियाणा में इनेलो के साथ मिलकर चुनाव लड़ता रहा है। भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद अब अकाली दल के सामने हरियाणा में स्वयं खुलकर खेलने अथवा अपने पुराने साथी इनेलो के साथ सिर जोड़कर भाजपा-जजपा गठबंधन तथा कांग्रेस को चुनौती देने के विकल्प खुले हैं।

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल के पारिवारिक संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। दोनों परिवारों के राजनीतिक कदम अलग-अलग मौकों पर भले ही अलग-अलग रहे हैं, लेकिन पारिवारिक रिश्तों में कभी खटास नहीं आई है। इनेलो जब दो फाड़ हुई और जननायक जनता पार्टी का जन्म हुआ, तब बादल ने इस परिवार को टूटने से बचाने की लाख कोशिश की, लेकिन उनके प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाए। इन प्रयासों के सिरे नहीं चढ़ पाने का ही नतीजा है कि अब इनेलो और जजपा अलग-अलग मुद्दों को लेकर राजनीति के मैदान में दम दिखा रहे हैं।

2012 में जालंधर में एक कार्यक्रम के दौरान प्रकाश सिंह बादल व ओम प्रकाश चौटाला। (फाइल फोटो)

बड़े चौटाला और बड़े बादल की दोस्ती की तरह सुखबीर बादल और अभय सिंह के बीच भी मित्रता है। हरियाणा में इनेलो व अकाली दल मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं। अकाली दल ने अंबाला व सिरसा जिले में अपने विधायक भी जिताए, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें नहीं देने पर भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए अकाली दल ने खुद ही ताल ठोंक दी थी, जिसके बाद माना जाने लगा था कि अकाली दल व भाजपा के रिश्ते ज्यादा लंबे चलने वाले नहीं हैं।

कृषि विधेयकों पर हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बाद दोनों दलों के बीच टूटे गठबंधन को इसके परिणाम के रूप में देखा जा रहा है। अब अकाली दल के पास हरियाणा में खुलकर राजनीति करने का मौका है। हरियाणा में पांच लोकसभा सीटों के अंतर्गत करीब दो दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जो सिख बाहुल्य हैं। इन सीटों पर अकाली दल अक्सर अपना दावा करता है। अब अकाली दल की इन सीटों पर सीधी निगाह होगी।

अकाली दल ने अकेले सफर शुरू किया तो चुनौतियां भी कम नहीं

अगर अकाली दल शुरू से ही अपने बूते हरियाणा में राजनीतिक शुरुआत करेगा तो उसके सामने अपार चुनौतियां खड़ी दिखाई दे सकती हैं। ऐसे में सूत्रों का कहना है कि अकाली दल और इनेलो के बीच हरियाणा में राजनीतिक रिश्ते फिर से जुड़ सकते हैं। इसकी वजह है कि यह गठबंधन भाजपा व कांग्रेस को चुनौती देना चाहेगा। भाजपा के साथ चूंकि अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला की जजपा सरकार में साझीदार है, इसलिए इस बात की बिल्कुल भी संभावना नहीं है कि अकाली दल हरियाणा में जजपा की किसी तरह की मदद करेगा। उल्टा, हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफा देने से जजपा नेताओं पर राजनीतिक दबाव बढ़ा है। ऐसे में अभय चौटाला व सुखबीर बादल की दोस्ती परवान चढ़ सकती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अकाली दल को खुद के लिए जमीन तैयार करने में खासी मशक्कत उठानी पड़ सकती है। अकाली दल व इनेलो का गठजोड़ हो या नहीं, दोनों स्थिति में भाजपा के लिए यहां मुश्किल है।

कई पूर्व विधायकों की घर वापसी का बन सकता माहौल

विधानसभा चुनाव से पहले करीब दो दर्जन विधायक और पूर्व विधायक भाजपा में टिकट के लिए शामिल हुए थे, अब यदि इनेलो व अकाली दल की दोस्ती होती है तो उनके सामने अपना राजनीतिक भविष्य चुनने का विकल्प नजर आ सकता है। अभी तक यह विधायक पार्टी में पूछ नहीं होने की बात कहते हुए अपनी पीड़ा तो जाहिर कर रहे थे, लेकिन उनके सामने कांग्रेस में जाने अथवा इनेलो में लौटने की हिचकिचाहट थी। जजपा में इसलिए वह नहीं जा सकते थे, क्योंकि उनके द्वारा जब भाजपा में ही सम्मान नहीं मिलने का दावा किया जा रहा है तो जजपा में जाने का उन्हेंं कोई राजनीतिक फायदा नजर नहीं आएगा। ऐसे में यदि इनेलो व अकाली दल के बीच किसी तरह का गठबंधन होता है तो टिकट की चाह में इनेलो छोडऩे वाले कई पूर्व विधायकों की घर वापसी हो सकती है।

भाजपा व जजपा को बरकरार रखना होगा एक-दूसरे का भरोसा

हरियाणा, दिल्ली और पंजाब समेत कई राज्य ऐसे उदाहरण बन चुके हैं, जहां भाजपा को अब राजनीतिक बैसाखियों की जरूरत नहीं है। ऐसे में भाजपा किसी तरह से अकाली दल के दबाव में आएगी, इसकी संभावना कम ही है। भाजपा को हरियाणा में जजपा के रूप में एक मजबूत साझीदार मिला हुआ है, लेकिन किसानों के मुद्दे पर खलनायक बन चुकी जजपा में यदि सब कुछ ठीक नहीं चला तो भाजपा को मुश्किल हो सकती है। यही स्थिति जजपा के साथ भी बनने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। 

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