हरियाणा में 900 करोड़ के स्ट्रीट लाइट टेंडर में घपला, बैकफुट पर शहरी निकाय अधिकारी

हरियाणा में 900 करोड़ के स्ट्रीट लाइट के टेंडर में घपलेबाजी हुई है। स्ट्रीट लाइट टेंडर पहले से अधिक रेट में दिया गया। मामला पकड़ में आने के बाद अफसर बैकफुट पर आ गए हैं। अब सस्ते में करने के लिए मौखिक मोलभाव चल रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Thu, 23 Sep 2021 06:22 PM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 07:21 AM (IST)
हरियाणा में 900 करोड़ के स्ट्रीट लाइट टेंडर में घपला, बैकफुट पर शहरी निकाय अधिकारी
हरियाणा में स्ट्रीट लाइट टेंडर में घपला। सांकेतिक फोटो

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में स्ट्रीट लाइट के टेंडर में हुई घपलेबाजी के बाद शहरी निकाय विभाग के अधिकारी बैकफुट पर आ गए हैं। करीब 600 करोड़ का काम 900 करोड़ रुपये में कराने संबंधी टेंडर छोड़ने के बाद प्रदेश सरकार ने शहरी निकाय विभाग के अधिकारियों से जवाब मांग लिया है। हैरानी की बात यह है कि शहरी निकाय विभाग ने जिन कंपनियों को यह टेंडर दिया है, वह पहले ही संदिग्ध प्रवृत्ति की हैं और उनके खिलाफ जांच चल रही है। अब इन कंपनियों से टेंडर खुलने के बावजूद 900 करोड़ का काम इससे कम राशि में करने के लिए मोलभाव किया जा रहा है।

नियम यह है कि यदि सरकार को टेंडर में गोलमाल लगता है तो उसे रद कर नए सिरे से टेंडर जारी किया जा सकता है। शहरी निकाय विभाग का एक उच्चाधिकारी अपने तबादले से ठीक एक दिन पहले स्ट्रीट लाइट का टेंडर जारी कर निकल गया था। इस टेंडर में घपलेबाजी की आशंका छोटी कंपनियां शुरू से जता रही थी। उनकी आशंका दूर करने के लिए प्रदेश सरकार ने फाइनेंशियल एवं टेक्नीकल जांच के लिए एक नौ सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही उसे भंग कर दिया गया और मनपसंद कंपनियों को लाभ देने की मंशा से उन्हें टेंडर अलाट कर दिया गया। छोटी कंपनियां 900 करोड़ के टेंडर का यह काम करीब 600 करोड़ में करने को तैयार थीं, लेकिन टेंडर की मात्र एक शर्त की वजह से वह दौड़ से बाहर हो गई।

शहरी निकाय विभाग के अधिकारियों ने पहले ही अपनी मनपसंद कंपनियों को टेंडर देने की भूमिका तैयार कर ली थी। टेंडर में शर्त लगा दी गई थी कि वही कंपनी इसमें भाग ले सकती है, जिसकी टर्नओवर 1150 करोड़ रुपये की है। शहरी निकाय विभाग के इस फैसले से छोटी कंपनियां अपने आप ही टेंडर भरने की दौड़ से बाहर हो गई हैं। कांग्रेस विधायक दल की पूर्व नेता किरण चौधरी, फरीदाबाद एनआइटी के कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा और राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने जब इसका विरोध किया तो शहरी निकाय विभाग के अधिकारी बीच का रास्ता खोजने में जुट गए हैं। बीच का रास्ता भी ऐसे खोजा जा रहा है, जो नियमों के विपरीत है। विभाग के मौजूदा अधिकारी भी अब इस मामले में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। उन्हें डर है कि शहरी निकाय मंत्री अनिल विज ने रिपोर्ट तलब कर ली तो उन्हें जवाब देना भारी हो जाएगा।

डिफाल्टर कंपनियों से हो रही सौदेबाजी

शहरी निकाय विभाग के जिस अधिकारी पर टेंडर में गड़बड़ी के आरोप हैं, वह रोहतक में एक अवैध निर्माण की बाबत एक सांसद से उलझ चुका है। मामला उच्च स्तर पर भी पहुंचा, जिस वजह से इस अधिकारी को शहरी निकाय विभाग से चलता कर दिया गया, लेकिन जाते-जाते वह खेल कर गया है। पीडब्ल्यूडी के बाद शहरी निकाय विभाग ऐसा डिपार्टमेंट है, जिसमें ठेकेदारों, अधिकारियों व कंपनियों की लंबी चेन है। इस चेन को आज तक तोड़ा नहीं जा सका है। पेंच फंसने के बाद अब उन संदिग्ध कंपनियों के साथ सौदेबाजी की जा रही है, जिन्हें डिफाल्टर की श्रेणी में होने के बावजूद 900 करोड़ रुपये का काम सौंप दिया गया है। इन कंपनियों को बुलाकर कहा जा रहा है कि 900 करोड़ के काम को कुछ सस्ते में किया जाए। टेंडर जारी होने के बाद ऐसी सौदेबाजी नियमों के विपरीत है।

अनिल विज के दरबार में पहुंचेगा मामला

विधायक किरण चौधरी, नीरज शर्मा और अशोक बुवानीवाला ने कहा कि टेंडर ओपन होने के बाद नेगोशिएशन (मोल-भाव) करने का कोई मतलब नहीं है। प्रदेश सरकार को चाहिये कि इस टेंडर को रद कर छोटी कंपनियों को भी नए टेंडर की प्रक्रिया में शामिल होने का मौका दिया जाए। प्रदेश सरकार की मंशा छोटी औद्योगिक इकाइयों को चलाने की होनी चाहिये। अशोक बुवानीवाला ने इस केस में जहां शहरी निकाय मंत्री अनिल विज को पत्र लिखने की बात कही है, वहीं शहरी निकाय विभाग के उच्चाधिकारियों ने चुप्पी साध ली है।

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