संतान की लंबी आयु के लिए माताओं ने रखा अहोई अष्टमी का व्रत

शाम के समय महिलाएं अहोई माता की कहानी सुनती हैं और विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार कर भोग लगाकर चांद को अ‌र्घ्य देकर व्रत खोलती हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 07:26 PM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 07:26 PM (IST)
संतान की लंबी आयु के लिए माताओं ने रखा अहोई अष्टमी का व्रत
संतान की लंबी आयु के लिए माताओं ने रखा अहोई अष्टमी का व्रत

जागरण संवाददाता, पलवल: जिले में बृहस्पतिवार को अहोई अष्टमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। माताओं ने अपनी संतान की सुख समृद्धि, उनकी दीर्घायु, सौभाग्य, आरोग्य, यश कीर्ति, वैभवता एवं के लिए व्रत रखकर पूजा अर्चना की। इस दिन माताएं घर की दीवारों पर अहोई अष्टमी की तस्वीर रखकर पूजा-अर्चना करती हैं। शाम के समय महिलाएं अहोई माता की कहानी सुनती हैं और विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार कर भोग लगाकर चांद को अ‌र्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। कहावत के अनुसार माता अहोई अष्टमी के पूजन के साथ ही दीपावली एवं गोवर्धन पूजा और विभिन्न त्योहार का भी शुभारंभ हो जाता है। पहले कच्चे रंगों और खड़िया गेरू से बनाई जाती थी अहोई अष्टमी की आकृति

वर्षों पहले महिलाएं घर की दीवारों पर गेरू, खड़िया और अन्य कच्चे रंगों से अहोई अष्टमी की आकृति तैयार करती थीं, जिसके लिए महिलाएं एक सप्ताह पहले ही तैयारी करना शुरू कर देती थीं, लेकिन आधुनिक जमाने में घर की दीवारों पर मंहगे रंग रोगन होने के कारण और मेहनत से बचने के लिए महिलाओं ने अहोई माता का कैलेंडर लगाकर उसकी पूजा अर्चना शुरू कर दी है। परंपरा के अनुसार करवाचौथ और अहोई अष्टमी महिलाओं के लिए दो विशेष पर्व हैं। इन दोनों उत्सवों में जहां परिवार के कल्याण की भावना निहित होती है, वहीं सास के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लेने की प्राचीन परंपरा आज भी दिखाई देती है। इस व्रत को संतान वाली स्त्रियां करती हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अहोई अष्टमी का व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, जिसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं। बच्चों की सुख समृद्धि एवं उनकी दीर्घायु के साथ परिवार की उन्नति के लिए के लिए माता की अष्टमी का व्रत करती हैं। पूजा-अर्चना के बाद ही तारों की छांव में व्रत खोला जाता है।

- सोनिका गोयल अहोई माता का पूजन विधि विधान के साथ करते हैं। माता सबकी मन्नतें पूरी करती हैं। सांय के समय विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार कर माता अष्टमी की कहानी सुनते हैं। उसके बाद व्रत खोलते हैं।

- संगीता गर्ग

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