आज बचा रहे जल, काम आएगा कल

घटते जलस्तर के चलते डार्कजोन की तरफ बढ़ रहे क्षेत्र के गांवों में जलसंरक्षण की दिशा में लोगों ने काम शुरू कर दिया है। हसनपुर खंड के गांव भिडूकी के एमबीए तक शिक्षित सरपंच सत्यदेव गौतम में जोहड़ के नाम अलॉट गांव की करीब चार एकड़ जमीन को अवैध कब्जा तथा गंदगी से मुक्त कराकर उसमें तालाब की खोदाई करवा दी है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Jun 2020 05:58 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 06:21 AM (IST)
आज बचा रहे जल, काम आएगा कल
आज बचा रहे जल, काम आएगा कल

संजय मग्गू, पलवल

घटते जलस्तर से डार्कजोन की तरफ बढ़ रहे क्षेत्र के गांवों में जल संरक्षण की दिशा में लोगों ने काम शुरू कर दिया है। हसनपुर खंड के गांव भिडूकी के एमबीए कर चुके सरपंच सत्यदेव गौतम में जोहड़ के नाम अलॉट गांव की करीब चार एकड़ जमीन को अवैध कब्जा तथा गंदगी से मुक्त कराकर उसमें तालाब की खोदाई करवाई है। पिछले कुछ दिनों में आई बारिश का पानी तालाब में जाकर यह संदेश भी दे रहा है कि अगले दिनों में बारिश के पानी से लबालब होकर तालाब गांव के जलस्तर को पूर्णतया पटरी पर लाएगा। इससे पूर्व गांव पंचायत द्वारा वाल्मीकि बस्ती, कन्या राजकीय विद्यालय तथा उपस्वास्थ्य केंद्र में वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगवाकर जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय पहल की जा चुकी है। तीन स्थानों पर लगाए वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम :

गांव की वाल्मीकि बस्ती के निवासी, राजकीय स्कूल के छात्र तथा उपस्वास्थ्य केंद्र के समीप की बस्ती बरसाती सीजन में होने वाले जलभराव से परेशान थे। बस्तीवासी चाहते थे कि सड़क को ऊंचा उठाया जाए, लेकिन गांव की सरकार के दिमाग में कुछ और ही योजना थी। यदि सड़क को ऊंचा उठाया जाता, तो स्कूल भवन व लोगों के मकान नीचे हो जाते। इससे बरसाती पानी स्कूल परिसर व लोगों के घरों में घुसने लगता। पंचायत ने समस्या के समाधान को तीनों स्थानों पर वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगाकर जलभराव तथा बस्ती में खारे पानी की समस्या दोनों का समाधान कर दिया। इस तकनीक से किया भू-जल को मीठा

गांव के भूजल को मीठा करने के लिए जलशोधन तकनीक अपनाई गई है। गांव में जहां हार्वेस्टिग सिस्टम लगे हैं, उनके चारों तरफ नाली बनी है। जल गुणवत्ता बनी रहे तथा जमीन के अंदर गैरजरूरी अवयव जाकर धरती की उपजाऊ क्षमता प्रभावित न करें, इसके लिए फिल्टरयुक्त दो टैंक बने हैं। बारिश आने पर सारा पानी नालियों के रास्ते पहले टैंक में जाता है। इस टैंक में 45 से 65 एमएम के मेटल स्टोन (सफेद पत्थर के छोटे रोड़े) डाले गए है। इससे अगले टैंक को भी फिल्टरयुक्त किया गया है तथा इसमें छोटी बजरी डाल कर पक्का किया गया है। दूसरे टैंक में से 10 इंच की पाइप से बरसाती पानी को धरती में 100 फीट नीचे छोड़ा जाता है। पलवल में जनस्वास्थ्य विभाग के कार्यकारी अभियंता रहे संजीव कुमार बताते हैं कि इस पद्धति से पानी में टीडीएस की मात्रा 20 से 30 फीसद तक कम हो जाती है। पानी हल्का होने के साथ-साथ इसमें खारापन भी कम हो जाता है। वर्जन..

बरसाती पानी धरती में जाए, इसके लिए गांव में पहले तीन हार्वेस्टिग सिस्टम लगवाए गए थे। अब चार एकड़ में तालाब बनाया गया है। जल संरक्षण की दिशा में गांव में किसानों को धान की जगह कपास, दलहनी तथा बागवानी फसलों की बुआई के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है।

- सत्यदेव गौतम, सरपंच

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