शिक्षा की लौ को मंद नहीं होने दे रहे सचिन

कोविड-19 के संक्रमण के दौरान जबकि सब कुछ थम सा गया था स्कूल-कॉलेजों में ताले लग गए लेकिन ऐसे में भी सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक करते हुए होडल कस्बे के सचिन तोमर ने शिक्षा की लौ को मंद नहीं पढ़ने दिया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 06 Jun 2020 07:35 PM (IST) Updated:Sun, 07 Jun 2020 06:21 AM (IST)
शिक्षा की लौ को मंद नहीं होने दे रहे सचिन
शिक्षा की लौ को मंद नहीं होने दे रहे सचिन

संजय मग्गू, पलवल

कोविड-19 के संक्रमण के दौरान जबकि सब कुछ थम सा गया है, स्कूल-कॉलेजों में ताले लग गए हैं, लेकिन ऐसे में भी सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक करते हुए होडल कस्बे के सचिन तोमर ने शिक्षा की लौ को मंद नहीं पड़ने दिया। जब खुद की शोध की पढ़ाई को कोरोना ने ब्रेक लगा दिया तो अपने आसपास के बच्चों के लिए ज्ञान की गंगा बहानी शुरू कर दी। लॉकडाउन-एक के दौरान सचिन द्वारा आसपास के बच्चों को विज्ञान के फार्मुले सिखाने का शुरू किया गया सिलसिला अब अनलॉक-वन शुरू होने तक लगातार जारी है तथा 50 से अधिक बच्चे ज्ञान की गंगा में गोते लगा रहे हैं। होडल की आदर्श कॉलोनी निवासी सचिन तोमर दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के हंसराज कॉलेज से एमएससी तथा एमफिल तक शिक्षित हैं। आजकल सचिन डीयू से ही शोध की पढ़ाई (पीएचडी) कर रहे हैं। सचिन बताते हैं कि 24 मार्च को लॉकडाउन-वन के आगाज के साथ जब कॉलेज व यूनिवर्सिटी बंद हो गई तथा आवागमन पर रोक लग गई तो घर रहना मजबूरी बन गया है। पहले दो दिन तो वे घर पर खाली ही रहे तथा केवल अपनी पुस्तकों तथा ऑनलाइन से अपनी शिक्षा से संबंधित ज्ञान अर्जित करते रहे, लेकिन जब पड़ोस के बच्चों जिनमें कि आठवीं से लेकर 12 तक के छात्र शामिल थे, की पढ़ाई को बाधित होते देखा तो उन्हें पढ़ाने का फैसला कर लिया। अपने घर के ही एक कमरे को क्लास रूम का रुप दिया, ब्लैक बोर्ड लगाया तथा बच्चों को मुफ्त पढ़ाना शरू कर दिया। पठन-पाठन के इस कार्य में नियमों की उल्लंघना न हो, इसका भी विशेष ध्यान रखा तथा शारीरिक दूरी के नियम के साथ पहला ग्रुप शुरू हो गया। बच्चे बढ़ने शुरू हुए तो कक्षा के हिसाब से अलग-अलग बैच बना दिए। आज वह दिन हैं कि सचिन का दिन कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता। वे बच्चों को उनकी स्कूली शिक्षा में मदद करने के साथ-साथ विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञानवर्धक जानकारी भी उपलब्ध कराते हैं। बड़ी बात यह है कि उनके पास पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे साधन संपन्न नहीं हैं तथा घर में एंड्राइड मोबाइल उपलब्ध न होने के चलते वे ऑनलाइन शिक्षा से भी मरहूम चल रहे थे।

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ऐसे में जबकि डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य-सफाई व पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं तो मैं समझता हूं कि सभी को अपना दायित्व निभाना चाहिए। बच्चों को पढ़ाने से मेरा टाईम पास भी हो जाता है तथा उन बच्चों के काम भी आ पा रहा हूं जो कि साधन न होने के चलते पढ़ाई में पिछड़ सकते थे। आठवीं से 12 वीं के बच्चों के अलग-अलग ग्रुप बन गए हैं तथा मेरा प्रयास है कि विज्ञान विषय में उन्हें पिछड़ने न दूं।

- सचिन तोमर

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