दो वर्ष में 162 लोगों की मोक्षदायिनी बनी 'करुणामयी'

जिले में हादसों या दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले उन लोगों की जिनकी शिनाख्त नहीं होने के चलते लावारिस घोषित हो जाते हैं की सामाजिक संस्था करुणामयी सोसायटी वारिस बनकर उनके लिए मोक्ष का द्वार खोलने का कार्य कर रही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Sep 2020 04:49 PM (IST) Updated:Sun, 13 Sep 2020 04:49 PM (IST)
दो वर्ष में 162 लोगों की मोक्षदायिनी बनी 'करुणामयी'
दो वर्ष में 162 लोगों की मोक्षदायिनी बनी 'करुणामयी'

संजय मग्गू, पलवल

सनातन संस्कृति में गर्भाधान से लेकर मौत के बाद अंतिम संस्कार तक कुल 16 संस्कार माने जाते हैं, जिनका धार्मिक मान्यताओं में काफी महत्व है। माना जाता है कि मृत्यु उपरांत जिनका विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार नहीं होता, उनकी सद्गति नहीं होती। सामाजिक संस्था करुणामयी सोसायटी जिले में हादसों या दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले उन लोगों की जिनकी शिनाख्त नहीं होने के चलते लावारिस घोषित हो जाते हैं, की वारिस बनकर उनके लिए मोक्ष का द्वार खोलने का कार्य कर रही है। संस्था द्वारा अपने गठन के दो वर्ष में 162 शवों का अंतिम संस्कार कराया जा चुका है। इसके अलावा संस्था के सदस्य रक्तदान व मरणोपरांत नेत्रदान के सामाजिक कार्य में भी बखूबी अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

संस्था के सदस्य, हादसों में जान गंवाने वाले ऐसे लोगों के शव जो कि कानूनी प्रक्रिया के तहत 72 घंटे यानी तीन दिन तक अपनों का इंतजार करते हैं को सद्गति प्रदान करने का बीड़ा संभालते हैं। मृतकों को सद्गति मिल सके शव को चार कंधों पर रखकर मोक्षधाम में लाया जाता है, जहां पर्याप्त लकड़ी, घी व सामग्री के साथ गायत्री मंत्र के जाप के बीच अंतिम संस्कार किया जाता है। संस्कार के तीसरे दिन संस्था के सदस्य श्मशान में जाकर अस्थि चयन करते हैं तथा उन्हें सुरक्षित रखा जाता है।

पूर्व में हादसों में जान गंवाने वाले अज्ञात लोगों के शवों का अंतिम संस्कार संबंधित थानों की पुलिस द्वारा तथा रेल हादसों में मरने वाले नामालूम लोगों का अंतिम संस्कार नगर परिषद के सफाई कर्मचारियों से कराया जाता था। क्योंकि सरकार द्वारा बहुत ही मामूली राशि दी जाती थी तो दोनों ही स्थितियों में शवों का अंतिम संस्कार विधान के अनुरूप नहीं हो पाता था। कई बार तो परिषद के कर्मचारी रबड़ के टायर तक से अंतिम संस्कार करा देते थे, जिसकी वजह से आस्था भी प्रभावित होती थी तथा पर्यावरण भी प्रदूषित होता था। संस्था द्वारा दो वर्ष पूर्व इस नेक प्रकल्प को करने का बीड़ा उठाया गया था तथा वर्ष 2018 के पितृपक्ष से लगातार हादसों में जान गंवाने वाले अज्ञात लोगों के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य संस्था कर रही है। नेत्रदान व रक्तदान की भी चला रखी है मुहिम: संस्था के पदाधिकारी व सदस्य मनोज छाबड़ा, अनिल गोसांई, रणधीर चौहान, सतेंद्र चौहान कुल्लू, वेदपार नागर, यतिन कालड़ा, उमाशंकर, संगीता गर्ग, रेणु छाबड़ा, कुसुम मंगला, सतीश गर्ग, रंजन सेठ, पंकज मुखीजा, राकेश चौधरी व संदीप भारद्वाज शवों के अंतिम संस्कार के साथ-साथ मरणोपरांत नेत्रदान व रक्तदान की भी मुहिम चला रखी है। दो वर्ष में 22 रक्तदान शिविर लगाए जा चुके हैं, जिनमें 1100 से अधिक यूनिट रक्त एकत्रित किया गया। सात स्वास्थ्य जांच शिविर लगाए गए, जिनका एक हजार से अधिक लोगों ने लाभ उठाया। मरणोपरांत तीन लोगों के नेत्रदान कराए गए तथा दर्जन भर लोगों को प्लाजमा डोनेट किया गया। नवजात बच्चियों के अंतिम संस्कार कराते कांपे हाथ :

संस्था की महिला सदस्य संगीता गर्ग, कुसुम मंगला व रेणु छाबड़ा बताती हैं कि वे ज्यादातर अंतिम संस्कार के मौके पर मोक्षधाम में जातीं हैं। अभी तक जो अंतिम संस्कार कराए गए उनमें नौ नवजात के थे, जिनमें से आठ बच्चियों के शव थे। 20 अगस्त को भी होडल से मिली एक नवजात बच्ची के शव का अंतिम संस्कार कराया गया तो उस समय हाथ कंपकंपाने लगे। संस्था की महिला सदस्य बताती हैं कि उन बच्चियों की तो किस्मत खराब थी ही जो कि जन्म लेने के साथ ही या फिर अजन्मे ही काल का ग्रास बन गईं, उन मांओं का भी इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता, जिन्होंने कि जन्म देकर अपने जिगर के टुकड़ों को मरने के लिए छोड़ दिया। लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए हमारी संस्था काफी समय से प्रयासरत थी, जिसकी मंजूरी दो वर्ष पूर्व मिली। इस कार्य में समाज के कई सज्जनों का सहयोग मिल रहा है। जिला प्रशासन व सामाजिक संस्थाओं द्वारा कई बार सम्मानित किया जा चुका है।

- मनोज छाबड़ा, संयोजक करुणामयी धर्मानुसार अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है तथा अस्थि चयन कराया जाता है। यदि किसी की शिनाख्त हो जाती है तो स्वजनों को अस्थियां सौंप दी जाती हैं तथा जिनके कोई अपने नहीं आते, उनकी अस्थियों का गंगा जी में विसर्जन कराते हैं।

- अनिल गोंसाई, सदस्य करुणामयी

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