श्रेष्ठ आचरण का नाम धर्म है : स्वामी श्रद्धानंद
वैदिक धर्म प्रचारिणी सभा के प्रवक्ता स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने कहा कि जो विचार पूर्वक कार्य करें वे मनुष्य कहलाते हैं और जो बिना विचार व्यवहार और कर्म करे वह मनुष्य नहीं हो सकता है।
जासं, पलवल: हाउसिंग बोर्ड कालोनी में शनिवार को आयोजित सत्संग में वैदिक धर्म प्रचारिणी सभा के प्रवक्ता स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने कहा कि जो विचार पूर्वक कार्य करें वे मनुष्य कहलाते हैं और जो बिना विचार व्यवहार और कर्म करे वह मनुष्य नहीं हो सकता है। वैदिक धर्म प्रचारिणी सभा के प्रवक्ता ने बताया कि वसुधैव कुटुंबकम की भावना हमारे आचरण में होनी चाहिए। वेद कहता है कि मित्र की दृष्टि से हम संसार को देखें। उन्होंने बताया कि ईश्वर सबका माता पिता और न्यायाधीश है। मानव जब दिव्य गुणों को धारण कर लेता है वह देवता बन जाता है। श्रेष्ठ स्वभाव वाले को आर्य और दुष्ट विचारों वाले को दस्यु कहते हैं, दस्यु का नाश और विश्व को आर्य बनाने के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी।
स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने कहा कि जो ईश्वर की आज्ञा को न मानकर अपनी मनमानी करता है, वह कभी भी धार्मिक नहीं हो सकता है। धर्म की रक्षा शस्त्र, शास्त्र, सत्य और अहिंसा से होती है। उन्होंने बताया कि श्रेष्ठ आचरण का नाम धर्म है। मनु ने धर्म के दंश लक्षण और महर्षि दयानंद ने ग्यारह लक्षण कहे, क्योंकि स्वामी दयानन्द ने अहिसा को भी परमधर्म माना है।
उन्होंने कहा कि ईश्वर की सृष्टि में धर्म और जाति के नाम पर नफरत फैलाने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि ईश्वर का आदेश है हम सब एक दूसरे से द्वेष नहीं प्रेम करें। उन्होंने कहा कि ईश्वर पूर्ण है, उसकी रचना भी पूर्ण है और ईश्वर प्रदत्त वेद ज्ञान भी पूर्ण है। सभी मनुष्यों को उस पूर्ण परमात्मा की ही उपासना करनी चाहिए। इस अवसर पर सत्संग में मौजूद लोगों ने हवन यज्ञ में आहुति भी डाली। इस अवसर पर नरेन्द्र शास्त्री, सुरेन्द्र कुमार चौहान, चन्द्रमुनी, रमेश कुमार आर्य,राजदेव आर्य, राहुल बैंसला, देवीलाल, करतार सिंह भाटी, यशपाल आर्य, अनिल कुमार आर्य, नरकेश शास्त्री, कर्ण सिंह चौहान, अजय सिंह आदि मौजूद रहे।