अब ग्रामीण अंचलों में भी नजर नहीं आते कौवे

संवाद सहयोगी तावडू पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण के लिए धार्मिक अनुष्ठान के साथ कौवों को भ

By JagranEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 06:59 PM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 06:59 PM (IST)
अब ग्रामीण अंचलों में भी नजर नहीं आते कौवे
अब ग्रामीण अंचलों में भी नजर नहीं आते कौवे

संवाद सहयोगी, तावडू : पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण के लिए धार्मिक अनुष्ठान के साथ कौवों को भोजन खिलाना हिदू संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन, अब ग्रामीण अंचलों में भी कौवे नजर नहीं आते हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई व कंक्रीट के बढ़ते जंगलों को इसका कारण माना जाता है। ऐसे में तर्पण करने वालों के लिए कौवों का नहीं मिलना बड़ी समस्या बन गई है। जबकि, हिदू संस्कृति में धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के दिनों में कौवों को भोजन खिलाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

कुछ वर्ष पहले तक क्षेत्र में कौवों के अच्छे-खासे झुंड दिख जाते थे, लेकिन हरे-भरे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई और कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के कारण उनका अस्तित्व भी अब समाप्त होता जा रहा है। विकास के नाम पर जहां वृक्षों की बलि दी जा रही है, वहीं इस वजह से पक्षियों की कई अन्य प्रजातियां भी विलुप्ति के कगार पर हैं।

नगर पुरोहित आचार्य श्याम सुंदर शास्त्री के अनुसार श्राद्ध में कौवों का महत्व कहीं अधिक बढ़ जाता है। मान्यता है कि व्यक्ति की जब मृत्यु होती है तो वह सबसे पहले कौवे की योनि में जन्म लेता है। यही कारण है कि लोग अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए उनके श्राद्ध दिवस पर कौवों को भोजन खिलाते हैं। आचार्य ने बताया कि कौवे न मिलने पर श्राद्ध वाले दिन गाय को भोजन कराना भी उत्तम माना गया है, क्योंकि गाय के शरीर में भी 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं।

वही वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो कौवों का प्रकृति को बचाने में भी बड़ा महत्व है। कौवे अक्सर पीपल व बड़ के फल खाते हैं। उसके उपरांत जब वह अलग-अलग स्थानों पर मल त्याग (बीट) करते हैं, वहीं बड़ व पीपल के पौधे उग जाते हैं। इनमें पीपल जहां चौबीसों घंटे आक्सीजन देता है, वहीं बड़ का वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर माना गया है। इनके मल द्वारा उगाए गए पौधे प्रकृति की एक नई संरचना को जन्म देते हैं। इसलिए प्रकृति को बचाने के लिए भी विलुप्त होने की कगार पर जा रही कौवे की प्रजाति को बचाना अनिवार्य है।

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