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बिना विद्यार्थियों के खुले कॉलेज वाह कोरोना तेरा जवाब नहीं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 04:16 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 05:22 PM (IST)
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ज्ञान प्रसाद, नारनौल:

बिना विद्यार्थियों के खुले कॉलेज

वाह कोरोना तेरा जवाब नहीं। जो शिक्षण संस्थान विद्यार्थियों की वजह से नाम कमा रहे थे वहां वीरानी छाई है। अब कर्मचारियों को बिना काम किए वेतन भी कितने दिन दें। इसलिए स्कूल के बाद अब कॉलेज भी बिना विद्यार्थियों के खुल गए। जिन कक्षाओं में विद्यार्थियों की भीड़ होनी चाहिए उनमें गिने चुने शिक्षक मोबाइल पर व्यस्त नजर आ रहे हैं। जो शिक्षक विद्यार्थियों की हाजिरी पूरी नहीं होने पर जुर्माना लगाते थे आज उन्हीं शिक्षकों को अपनी शत प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करानी पड़ रही है। इन्हें जो काम दिया जा रहा है उसमें पूरे साल के पाठ्यक्रम की समय सारणी बनाने होंगे। यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को घर पर रहकर पढ़ना है। ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करने के निर्देश जिसमें दिसंबर तक 70 फीसद तक कवर किया जा सके। विद्यार्थियों की अनुपस्थिति में पाठ्यक्रम कैसे तैयार होगा इसके लिए पढ़ाने वालों को ही माथापच्ची करनी पड़ रही है।

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फीस भरो तभी पढ़ाएंगे ऑनलाइन

इन दिनों स्कूल, अभिभावक और विद्यार्थियों के बीच अजीब स्थिति बनी है। उच्च न्यायालय के आदेश आने के बाद जहां निजी स्कूल संचालकों में महीनों से रुकी हुई फीस की राशि मिलने की उम्मीद जगी तो अभिभावकों को निराशा मिली है। अभिभावकों को उम्मीद थी कि उनके बच्चों की कई माह से लंबित भारी भरकम फीस भरने से राहत मिलेगी। न्यायालय द्वारा मासिक फीस लेने की छूट देने के बाद स्कूल संचालकों ने अभिभावकों को फीस भरने के लिए फोन करना शुरू कर दिया है। कुछ अभिभावकों ने फीस भर भी दिया। उन अभिभावकों को ज्यादा दिक्कत है जिनकी लॉकडाउन के दौरान भी कामकाज ठीक रहने के बाद भी फीस भरने में कतरा रहे हैं। ऐसे अभिभावकों के बच्चों को स्कूल संचालकों ने ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित करना शुरू कर दिया है। स्कूल संचालकों का मानना है कि ऑनलाइन पढ़ा रहे शिक्षकों को वेतन इसी फीस से देना पड़ता है।

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ऑनलाइन प्रतियोगिताओं से बचा रहे अस्तित्व:

भले स्कूलों में विद्यार्थी नहीं आ रहे हों लेकिन कुछ निजी स्कूल अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए ऑनलाइन तकनीक का बेहतर ढंग से सदुपयोग कर रहे हैं। कहीं बच्चे अन्यत्र न चले जाएं इसलिए बच्चों के साथ अभिभावकों को भी ऑनलाइन प्रतियोगिताओं से जोड़े हुए हैं। कुछ स्कूल संचालक गीत, संगीत, नृत्य, भाषण सहित विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन कर सोशल मीडिया के माध्यम से खूब प्रचार प्रसार कर रहे हैं। प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन के लिए प्रसस्ति पत्र भी ऑनलाइन प्रदान कर रहे हैं ताकि बच्चों के साथ अभिभावकों का स्कूल से संबंध बना रहे। अभिभावकों के लिए भी कुछ स्कूल कोई न कोई कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। कुछ स्कूलों ने विज्ञान और तकनीक का सदुपयोग करना सीख लिया है। इस मामले में कोई तकनीकी रूप से पारंगत हो गया है तो अधिकांश विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूल प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

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चुनाव नहीं इसलिए दिखाई नहीं दे रहा धरना :

अभी विधानसभा या लोकसभा के चुनाव का मौसम नहीं है। इसलिए सुनवाई करने सरकार नहीं आ रही है। इसका प्रमाण 50 से अधिक दिनों से 2010 में नियुक्त बर्खास्त शारीरिक शिक्षकों का चल रहा धरना व अनशन है। यह प्रदर्शन न तो सरकार को और न ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दिखाई दे रहा है। अगर चुनाव होते तो कोई न कोई आश्वासन जरूर मिल जाता। अभी इन शिक्षकों और उनके परिजनों के वोट की जरूरत किसी को नहीं है। इसलिए इनके रोष प्रदर्शन से सरकार को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। यही कारण है कि सरकार और शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी आंदोलन कर रहे बर्खास्त शारीरिक शिक्षकों की सुध लेने नहीं आ रहा है। विद्यालयों में भी विद्यार्थी नहीं हैं तो इनकी कमी महसूस नहीं हो रही है। ऐसे में त्योहार या अवकाश में भी आंदोलन करते रहें कोई सुनवाई करने आनेवाला नहीं है।

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