खाद तो उपलब्ध है पर कुछ तो लोचा है..
एसएसपी विकल्प होते हुए भी डीएपी को लेकर चली आ रही मारा-मारी अब लूटपाट तक पहुंच गई है।
बलवान शर्मा, नारनौल: एसएसपी विकल्प होते हुए भी डीएपी को लेकर चली आ रही मारा-मारी अब लूटपाट तक पहुंच गई है। यह स्थिति तो तब है, जब जिले में डीएपी खाद की उपलब्धता की कोई कमी नहीं है। लेकिन इसके बावजूद खाद की कमी खुद सवालों के घेरे में आ गई है। इसी को लेकर खाद की पड़ताल की गई तो स्थिति कुछ अलग ही मिली।
असल में महेंद्रगढ़ जिले में सरसों की बिजाई का लक्ष्य करीब दो लाख 50 हजार एकड़ है। एक एकड़ सरसों की फसल में डीएपी का एक बैग उपयोग होना होता है। हालांकि कृषि वैज्ञानिक स्पष्ट कर चुके हैं कि डीएपी का आधा बैग ही इस्तेमाल करना उचित रहेगा। एक बैग के हिसाब से भी जिले में अक्टूबर माह में छह हजार मीट्रिक टन खाद की आवश्यकता पड़ेगी। जबकि पूरे सीजन में 20 हजार मीट्रिक टन खाद की आवश्यकता है। कृषि अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि जिले में 2 हजार मीट्रिक टन डीएपी सीजन शुरू होने से पहले ही उपलब्ध थी। अभी तक 2600 मीट्रिक टन खाद आ चुकी है। जिले में कुल 4600 मीट्रिक टन डीएपी वितरित हो चुकी है।
खाद की कालाबाजारी होने की वजह से अचानक संकट खड़ा हो गया और नौबत अटेली में खाद के बैग लूटने तक की आ गई। प्रशासन ने स्थिति संभालने के लिए पीओएस मशीन के जरिये खाद वितरण की व्यवस्था भी की हुई है पर फिर भी हालात बेकाबू हो चुके हैं। सवाल उठता है कि कहीं डीएपी खाद को चोरी-छुपे तो नहीं बेचा जा रहा है। सीजन की शुरुआत में राजस्थान में खाद बेचने की बातें भी सामने आई थीं। जिन ग्रामीणों ने फसलों की बिजाई नहीं की, उनके आधार कार्ड पर डीएपी खरीद दर्शाकर भी गड़बड़ी की गई है।
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कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक एकड़ में आधा बैग डीएपी ही डालनी चाहिए, लेकिन किसान पूरा एक बैग डाल रहे हैं। बरानी फसलों में तो एक तिहाई बैग की इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद भी जिले में डीएपी की कोई कमी नहीं है। 22 अक्टूबर तक 600 मीट्रिक टन खाद और आ जाएगी। किसान एसएसपी का भी उपयोग नहीं कर रहे हैं। जबकि जिले में एसएसपी की कोई कमी नहीं है।
--डा. वजीर सिंह,
कृषि उपनिदेशक।