बागवानी ने बढ़ाई आय और सम्मान
यदि प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल बनाकर चला जाए तो हमें बदले में बहुत कुछ मिलता है।
होशियार सिंह, कनीना:
यदि प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल बनाकर चला जाए तो हमें बदले में बहुत कुछ मिलता है। पौधे लगाने के साथ नियमित रूप से परवरिश की जाए तो आने वाले दिनों में ये आय कमाने का जरिया बन सकते हैं। अपनी बागवानी के लिए प्रसिद्ध महेंद्रगढ़ जिला के गांव करीरा निवासी महाबीर सिंह जहां बेरी की पैदावार से जिला ही नहीं प्रदेश और देश में प्रसिद्ध होने के साथ कई सम्मान प्राप्त कर चुके हैं वहीं गांव मोड़ी के किसान अजय कुमार किन्नू की खेती कर अपनी जीविका चलाकर दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हैं।
तीन लाख रुपये तक कमा लेते हैं बेर की खेती से:
गांव करीरा निवासी महाबीर सिंह उन्नत किस्म के बेर उत्पादन करते हुए प्रदेश सरकार से सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। कृषि विभाग ने उनके बेरों को प्रदर्शनी में भेजकर उनका सम्मान बढ़ाया है। महाबीर सिंह का मानना है कि बेर बेचकर प्रतिवर्ष तीन लाख रुपये तक कमा लेते हैं। इस बार मौसम की मार से थोड़ा नुकसान जरूर हुआ है। किसान महाबीर सिंह नियमित खेती के साथ बेहतर गुणवत्ता वाले बेर की खेती कर साबित किया है कि एक लाख रुपये प्रति एकड़ में अकेले बेर उत्पादन से अच्छा आय कमा सकते हैं। उन्होंने अपने खेत के
एक एकड़ में बेरी, लेहसुआ, जामुन, बेलगिरी, नींबू तथा दूसरे फलदार पौधे उगाकर बागवानी को भी बढ़ावा देने के साथ इन फलदार पौधों के नीचे मटर, दलहन, लहसुन, प्याज, चना, आलू तथा दूसरी फसलें उगाकर किसानों को नई राह दिखा ने का काम कर रहे हैं। वे इसके साथ केंचुआ पालन, डेयरी, फसल उत्पाद स्टोर आदि का काम भी कर रहे हैं। उन्होंने अपने खेत में करीब एक सौ बेर के पौधे उगाए हैं। इन पौधों पर कम से कम 60 ग्राम तक का बेर दूर दूर तक प्रसिद्ध है। वे कहते हैं कि प्रतिदिन करीब 80 किलो ग्राम बेरों का उत्पादन होता है और बाजार में बेचते हैं। वे कहते हैं कि अकेले बेरों से वे प्रतिवर्ष एक लाख के करीब कमा लेते हैं लेकिन गुड़ाई, स्प्रे, उर्वरक के अलावा देखरेख करने वाले पर 30 से 40 हजार रुपये खर्च आता है। फसल उत्पादन भी बेरों के बाग में करते हैं वहीं वे सब्जी भी उगाते हैं। वे कहते हैं कि दक्षिण हरियाणा के किसान दो प्रकार की बेरी उगा रहे हैं। एक छोटी आकार की तो दूसरी बड़े आकार की बेर का उत्पादन करते हैं। वे कहते हैं कि पहले किसान केवल अपने खेतों में पुराने तरीके से फसल पैदावार ही लेता था और आर्थिक स्थिति से उभर नहीं पाता था अब कृषि के आधुनिक उपकरणों व कृषि भी वैज्ञानिक ढंग से करते हुए बागवानी की ओर भी उसका रुझान बढ़ रहा है।
वे कहते हैं कि बेर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह कई दिनों तक खराब नहीं होता है। आवश्यकता पड़ने पर सुखाकर रखा जाता है। सूखाकर भी किसान इसे छुआरा के रूप में बेचता है। सूखे बेर मेवे का काम भी करते हैं।
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किन्नू उत्पादन कर बन रहे आत्मनिर्भर
इसी प्रकार गांव मोड़ी के किसान अजय हर वर्ष किन्नू उत्पादन ने न केवल आत्मनिर्भर हो रहे हैं बल्कि आयस्त्रोत भी बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अपने करीब दो एकड़ जमीन पर रबी व खरीफ की फसल के साथ सब्जी उत्पादन भी किया हुआ है। इतना ही नहीं उत्कृष्ट किस्म के किन्नू उत्पादन कर हर वर्ष 30 से 50 हजार रुपये के कीन्नू बेचते हैं। उनका कहना है कि वैसे तो फसल उत्पादन उनका मुख्य कार्य है और उसी से आय होती कितु किन्नू उत्पादन उनके लिए अतिरिक्त आय बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है। उन्हें देखकर दूसरे लोग भी फसल के साथ बागवानी करने लगे हैं।
उन्होंने बताया करीब चार साल पहले किन्नू उत्पादन शुरू हो गया था। प्रारंभ में काम के कम कीन्नू का उत्पादन हुआ जो बाद में धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ती चली गई।
वे कहते हैं कि आज फसल की बजाय किन्नू उत्पादन ज्यादा कारगर साबित हो रहा है। फल और सब्जी मार्केट में मांग होती है। इसलिए उन्होंने ये पौधे उगाए हैं। एक बार उगाया हुआ पौधा 15 से 20 सालों तक आमदनी देता है। वे कहते हैं कि दो एकड़ जमीन पर वे फसल के साथ फल उत्पादन कर आय स्त्रोत बढ़ाने में मददगार साबित होते हैं।