प्रो. नीलम सांगवान ने पारंपरिक चिकित्सकीय पौधों का महत्व बताया
कोरोना संकट के बाद से एकाएक परंपरागत चिकित्सा पद्धति की बढ़ती मांग को अब समूचा विश्व स्वीकार कर रहा है।
संवाद सहयोगी, महेंद्रगढ़ :
कोरोना संकट के बाद से एकाएक परंपरागत चिकित्सा पद्धति की बढ़ती मांग को अब समूचा विश्व स्वीकार कर रहा है। भारतीय संस्कृति में वर्णित ऐसे ही उपायों और उससे संबंधित शोध, अनुसंधान को राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रमुखता के साथ महत्व दिया जा रहा है। ऐसे ही एक प्रयास के अंतर्गत ग्यारहवें इंडिया-जापान साइंस एंड टेक्नोलाजी सेमिनार का आयोजन श्री चित्रा मेडिकल साइंसेज इंस्टीट्यूट, केरल में हुआ। जिसमें हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेंवि), महेंद्रगढ़ के शोध अधिष्ठाता प्रो. नीलम सांगवान ने ट्रेडिशनल मेडिशनल प्लांट्स फ्राम क्रूड ड्रग्स टू मालिकुलर मेडिसन के क्षेत्र में उपलब्ध संभावनाओं व अवसर विषय पर विचार व्यक्त किए। विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने इस प्रकार के आयोजनों को समय की मांग बताया और कहा कि अवश्य ही भविष्य में भी विश्वविद्यालय के शिक्षक अपनी क्षमताओं के अनुरूप ऐसे आयोजनों के माध्यम से देश-दुनिया के समक्ष उपलब्ध विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेंगे। प्रो. नीलम सांगवान ने बताया कि इस व्याख्यान श्रृंखला में नोबेल लारयेट प्रो. तासुको होन्गो भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजय राघवन, आइआइटी, दिल्ली के प्रो. वी. रामगोपाल राव सरीखे विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रो. नीलम सांगवान ने बताया कि उन्होंने भी अपने संबोधन में ट्रेडिशनल मेडिशनल प्लांट्स फ्राम क्रूड ड्रग्स टू मालिकुलर मेडिसन के क्षेत्र में उपलब्ध संभावनाओं व विषय पर विचार प्रस्तुत किए और बताया कि किस तरह से यह चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोगी साबित हो सकते हैं।