ऋगवेद में सुरक्षित है संसार का सबसे प्राचीन ज्ञान : डा. कामदेव

कुरुक्षेत्र डीएवी कालेज पिहोवा के प्राचार्य डा. कामदेव झा ने कहा कि संसार का सबसे प्राचीनतम ज्ञान संस्कृत भाषा में ऋगवेद के रूप में सुरक्षित है। संस्कृत भाषा सदियों से भारत के आम जनमानस से लेकर राज्य परंपरा तक वैचारिक आदान-प्रदान की भाषा रही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 06:35 AM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 06:35 AM (IST)
ऋगवेद में सुरक्षित है संसार का सबसे प्राचीन ज्ञान : डा. कामदेव
ऋगवेद में सुरक्षित है संसार का सबसे प्राचीन ज्ञान : डा. कामदेव

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : डीएवी कालेज पिहोवा के प्राचार्य डा. कामदेव झा ने कहा कि संसार का सबसे प्राचीनतम ज्ञान संस्कृत भाषा में ऋगवेद के रूप में सुरक्षित है। संस्कृत भाषा सदियों से भारत के आम जनमानस से लेकर राज्य परंपरा तक वैचारिक आदान-प्रदान की भाषा रही है। उन्होंने शनिवार को यह बात कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट आफ इंटिग्रेटेड एंड आनर्स स्टडीज के संस्कृति विभाग और संस्कृत भारती कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के समापन समारोह में बतौर मुख्यातिथि कही।

उन्होंने कहा कि संस्कृत एवं संस्कृति ही भारत की प्रतिष्ठा है। रामायण, महाभारत, उपनिषद, गीता एवं आयुर्वेद आदि की लंबी ज्ञान परंपरा को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य है। उन्होंने कहा की संस्कृत में नैतिक मूल्य, जीवन दर्शन एवं व्यक्तित्व विकास की असीम सामग्री प्राप्त होती है इसलिए सभी विद्यार्थियों को संस्कृत अवश्य पढ़नी चाहिए। समापन समारोह के अध्यक्षता डा. रामचंद्र ने की। उन्होंने कहा कि संस्कृत में वसुधैव कुटुंबकम का संदेश दिया गया है। संपूर्ण विश्व में मनाए जाने वाले योग दिवस का मूल आधार पतंजलि मुनि का योग दर्शन भी संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है। आने वाले समय में संस्कृत भाषा संपूर्ण विश्व में परिवर्तन की साक्षी बनेगी। आयुर्वेद से चिकित्सा में नई क्रांति का संचार होगा। पाणिनी की अष्टाध्यायी भाषा विज्ञान एवं कंप्यूटर के क्षेत्र में नई क्रांति को स्थापित करेगी। चाणक्य का अर्थशास्त्र राजनीति को नए सिरे से परिभाषित करेगा। मुख्य वक्ता डा. जितेंद्र कुमार ने कहा कि वर्तमान युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने के लिये संस्कृत को सभी पाठ्यक्रमों का हिस्सा अवश्य बनाना चाहिए।

संस्कृत संभाषण शिविर में डा. तेलूराम ने संयोजक का दायित्व निभाया। टेकचंद और गुरजीत प्रजापति ने शिक्षण का दायित्व निभाया। इस शिविर में नियति, काजल, सुनैना, अनमोल, रोहित, आशा व ममता ने भी प्रतिभागिता की।

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