520 आंगनबाड़ी वर्करों के दूसरे बैच की ट्रेनिग शुरू
जिला महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत प्ले स्कूलों को संचालित करने को लेकर जिलेभर की आंगनबाड़ी वर्करों के प्रशिक्षण का दूसरा बैच सोमवार को शुरू हो गया।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : जिला महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत प्ले स्कूलों को संचालित करने को लेकर जिलेभर की आंगनबाड़ी वर्करों के प्रशिक्षण का दूसरा बैच सोमवार को शुरू हो गया। झांसा रोड स्थित जनता पब्लिक स्कूल परिसर में कार्यक्रम में जिला परियोजना अधिकारी (डीपीओ) नीतू रानी मुख्य रूप से शामिल हुई। प्रशिक्षण शिविर में 520 आंगनबाड़ी वर्करों ने भाग लिया।
डीपीओ नीतू रानी ने बताया कि प्री स्कूलिग (पूर्व प्राथमिक शिक्षा) के अंतर्गत प्रारंभिक बाल्यावस्था में बच्चों की उचित देखभाल, पोषण और उनका सर्वांगीण विकास महत्वपूर्ण है। इस आयु वर्ग में बच्चों को बौद्धिक व शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है। इसके लिए बच्चों को पर्याप्त अवसर व प्रोत्साहन का माहौल मिलना जरूरी है। आंगनबाड़ी केंद्रों में जल्द ही प्ले स्कूलों में तब्दील कर दिया जाएगा। ऐसे में बच्चों से संबंधित सभी जानकारियां आंगनबाड़ी वर्करों को होनी चाहिए। इसी उद्देश्य से यह पांच दिवसीय प्रशिक्षण करवाया जा रहा है। प्रशिक्षण शिविर में आंगनबाड़ी वर्कर पूरी लगन से सभी गतिविधियों को सीखे। जिससे स्कूल जाने से पहले आंगनबाड़ी प्ले-स्कूलों में आने वाले बच्चों को स्कूल में जाने के लिए ट्रेंड किया जा सके।
कार्य करवाते समय धैर्य बहुत जरूरी
मास्टर ट्रेनर एवं आंगनबाड़ी सुपरवाइजर पूजा ने बताया कि प्रत्येक बच्चे के सीखने की क्षमता व गति अलग-अलग होती है व प्रत्येक बच्चा अपनी गति से ही सीखता है। वहीं कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जिन पर विशेष तौर पर ध्यान देने की साथ विशेष गतिविधियां कराने की आवश्यकता है। इन्हें विशेष आवश्यकता वाले बच्चे कहते हैं। इसलिए आप इन बच्चों को भी आंगनबाड़ी में होनी वाली गतिविधियों में शामिल करने के साथ समानता का व्यवहार करें और शिक्षक होने के नाते उनके साथ कार्य करते समय धैर्य बनाए रखें।
ऐसे बढ़ेगी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता
सुपरवाइजर पूजा ने बताया कि आंगनबाड़ी में गतिविधियां शुरू करने से पहले व दिन के अंत में बच्चों को गोल घेरे में बैठाएं और एक मिनट तक आंख बंद करने को कहे। इस समय आंगनबाड़ी केंद्र या प्ले स्कूल में शांति हो ताकि बच्चे अपनी आसपास होने वाली आवाजों को सुन पाएं। फिर बच्चों को ध्यान अपनी खुद की सांसों पर केंद्रित कराएं। ऐसा रोजाना करने पर आशा है कि धीरे-धीरे बच्चों के ध्यान देने की क्षमता विकसित होगी।