महालय अमावस्या के दिन वे लोग करें तर्पण, जो अपने पूर्वजों की तिथि नहीं जानते

इस साल पितृपक्ष सोमवार यानी 24 सितंबर से शुरू हो रहा है। 24 सितंबर से शुरू होने वाला पितृपक्ष 8 अक्टूबर सर्वपितृ अमावस्या यानी महालय अमावस्या के साथ खत्म हो जाएगा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 21 Sep 2018 01:47 AM (IST) Updated:Fri, 21 Sep 2018 01:47 AM (IST)
महालय अमावस्या के दिन वे लोग करें तर्पण, जो अपने पूर्वजों की तिथि नहीं जानते
महालय अमावस्या के दिन वे लोग करें तर्पण, जो अपने पूर्वजों की तिथि नहीं जानते

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : इस साल पितृपक्ष सोमवार यानी 24 सितंबर से शुरू हो रहा है। 24 सितंबर से शुरू होने वाला पितृपक्ष 8 अक्टूबर सर्वपितृ अमावस्या यानी महालय अमावस्या के साथ खत्म हो जाएगा। महालय अमावस्या के दिन खासतौर से वह लोग जो अपने पूर्वजों की तिथि नहीं जानते, वे इस दिन तर्पण करा सकते हैं।

ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण या ¨पडदान नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है। इससे मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय पितरों का श्राद्ध कराना है। श्राद्ध करने के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

क्यों जरूरी है ¨पडदान

गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के संचालक पंडित रामराज कौशिक ने बताया कि इंसान जब तक जीता है कई रिश्ते-नाते उसके साथ चलते हैं, लेकिन मृत्यु पश्चात खुद के सगे-संबंधी तक उन्हें अधिक दिनों तक याद नहीं रखते। इंसान भले ही इस संसार में अकेला आता है, लेकिन विषय और संसारिक मोह के बंधनों में बंधकर वह कई रिश्तों की कड़ी बन जाता है, लेकिन मरने के बाद सिर्फ शरीर समाप्त होता है। उसकी आत्मा समाप्त नहीं होती, उसकी आत्मा का आगे का सफर तभी बढ़ता है, जब उसकी कर्मो का सारा हिसाब किताब हो जाता है। आत्मा के इसी सफर को आसान बनाने के लिए कर्मकांडों की व्यवस्था की गई है। उसमें सबसे अहम श्राद्ध और ¨पडदान को माना जाता है। अपने पितरों को तर्पण और निमित अर्पण करना उनकी आत्मा की शांति के लिए सबसे जरूरी माना गया है।

क्या है ¨पडदान :

पिपली के दुर्गा देवी मंदिर के संचालक सुरेश मिश्रा का कहना है कि अमावस्या या पितृपक्ष का समय अपने मृत पूर्वजों का श्राद्ध करने का सबसे उत्तम समय माना गया है। ¨पड शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी वस्तु का गोलाकार रूप होता है। प्रतिकात्मक रूप में शरीर को भी ¨पड ही माना जाता है। ¨पडदान के लिए पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर एक ¨पड का रूप दिया जाता है। फिर उसे उन्हें अर्पित किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान मृत व्यक्ति अपने पुत्र और पौत्र से ¨पडदान की आशा रखते हैं। भाद्रपद के कृष्णपक्ष के 15 दिन पितृपक्ष कहलाते हैं। पितृ ऋण से मुक्ति पाने का यह श्रेष्ठ समय होता है। शास्त्रों की यह मान्यता है कि पूर्वजों को याद किया जाने वाला ¨पडदान उन तक सीधे पहुंचता है और उन्हें स्वर्गलोक लेकर जाता है।

chat bot
आपका साथी