मटके का डिजाइन बिगड़ा तो बनी चांदनी, अब पूरे परिवार में चांदनी

-दूसरी कक्षा पास शोभाराम को उनकी दस्तकारी पर हाइफ है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Apr 2021 07:34 AM (IST) Updated:Thu, 01 Apr 2021 07:34 AM (IST)
मटके का डिजाइन बिगड़ा तो बनी चांदनी, अब पूरे परिवार में चांदनी
मटके का डिजाइन बिगड़ा तो बनी चांदनी, अब पूरे परिवार में चांदनी

जागरण विशेष---प्रदेश पेज---फोटो-1

-दूसरी कक्षा पास शोभाराम को उनकी दस्तकारी पर हाइफा से मिली डी-लीट की उपाधि

-शोभाराम के आगे बच्चों और उनकी बहुएं भी संभाल रही काम

--नंबर गेम---

-11 सदस्य बर्तन और टेराकोटा बनाने में लगे

जगमहेंद्र सरोहा, कुरुक्षेत्र। गलती काम करते समय अक्सर हो जाती है। अगर इसको सुधार लें तो पूरा जीवन ही बदल जाता है। ऐसा ही कुछ किया पानीपत के गांव गढ़ सरनाई निवासी शोभाराम ने। शोभाराम से मटका बनाते समय गलती हो गई। उन्होंने उसको फेंकने की बजाय उसका वहीं से नया रूप दे दिया। मटके का डिजाइन बदलते ही खुद के साथ पूरे परिवार की दशा और दिशा दोनों बदल गई। अब परिवार के 11 सदस्य उनकी राह पर टेराकोटा (मिट्टी के डिजाइनर बर्तन) बनाने में लगे हुए हैं। प्रदेश के अलावा देश के कई हस्तशिल्प मेलों में अपने डिजाइनों से पहचान बनाए हुए हैं।

शोभाराम के बेटे कर्मचंद प्रजापति कुरुक्षेत्र स्थित हरियाणा कला परिषद के कार्यालय में गांधी शिल्प मेले में अपने डिजाइनों से खास पहचान बनाकर रहे। यह मेला 17 से 27 मार्च तक चला। कर्मचंद प्रजापति ने बताया कि उनके पिता शोभाराम गांव में मिट्टी से मटके व अन्य सामान्य बर्तन बनाते थे। इससे गुजर बसर चला रहे थे। एक दिन मटका बनाते समय डिजाइन बिगड़ गया। वे इसको दोबारा बनाना चाहते थे, लेकिन काम की अधिकता के चलते उसको एक तरफ रख दिया। कुछ देर बाद देखा तो वह डिजाइन कुछ अलग नजर आया। उन्होंने मटकों के साथ उसको भी तैयार किया। इस डिजाइन को चांदनी के नाम से पहचान मिली। एक दिन एक महिला ने वह डिजाइन पसंद आया और अपने घर सजावट के लिए ले गई। इसके बाद उनके पिता ने मटकों के साथ अलग-अलग डिजाइन के टेराकोटा (मिट्टी के डिजाइनर बर्तन) बनाने शुरू कर दिए।

अवार्डी बना पूरा परिवार

कर्मचंद ने बताया कि उनके पिता शोभाराम दूसरी कक्षा तक पढ़े थे। उनके डिजाइनों को देखकर हाइफा ने उनको डी-लिट की उपाधि दी। पिता की तीन साल पहले मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके बड़े भाई धर्मबीर और अशोक ने काम संभाला। धर्मबीर की पत्नी शशीबाला को बुनकर में प्रदेश स्तर का अवार्ड मिला है। उनके परिवार को 24 स्टेट और एक नेशनल अवार्ड मिल चुका है।

पांच गुना अधिक कमाई

कर्मचंद प्रजापति ने बताया कि सामान्य पुस्तैनी काम करने से पूरा दिन में एक हजार का काम कर पाते हैं। वे टेराकोटा में पांच हजार रुपये तक का काम कर देते हैं। टेराकोटा में समय कुछ अलग जरूर लगता है। एक गमला 300 रुपये तक जाता है। हाथी स्टैंड के साथ गमला 1500 रुपये तक है। इसमें हाथी स्टैंड, गमला, उरलिया, डिजाइनिग पॉट, कॉर्नर पॉट, सेंटर टेबल पॉट, गार्डन स्टैंड सहित 800 आइटम हैं।

लॉकडाउन में दीये और मटके बनाए

कर्मचंद प्रजापति ने बताया कि लॉकडाउन में शिल्प मेले बंद हो गए थे। पूरा परिवार घर पर ही था। उन्होंने घर पर दीये और मटके बनाने शुरू कर दिए। लॉकडाउन में मटकों की मांग शुरू हो गई। उन्होंने गांव और आसपास के अलावा शहर में भी मटकों की मांग को पूरा किया। अनलॉक में यमुना एंक्लेव के पास स्टॉल लगाना शुरू किया।

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