पशुओं को मुंह खुर की बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं, चारे में भी करें बदलाव

गर्मी के मौसम में पशुओं में मुंह-खुर व गलघोंटू आदि बीमारियों का होना आम बात है। इसलिए पशुपालन व्यवसाय से जुड़े किसान इससे बचाव के लिए अपने दुधारू पशुओं को इसका टीका अवश्य लगवाएं। अप्रैल और मई का महीना पशुओं के टीकाकरण का सबसे उपयुक्त समय है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 06:31 AM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 06:31 AM (IST)
पशुओं को मुंह खुर की बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं, चारे में भी करें बदलाव
पशुओं को मुंह खुर की बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं, चारे में भी करें बदलाव

जागरण संवाददाता, करनाल : गर्मी के मौसम में पशुओं में मुंह-खुर व गलघोंटू आदि बीमारियों का होना आम बात है। इसलिए पशुपालन व्यवसाय से जुड़े किसान इससे बचाव के लिए अपने दुधारू पशुओं को इसका टीका अवश्य लगवाएं। अप्रैल और मई का महीना पशुओं के टीकाकरण का सबसे उपयुक्त समय है। इसके साथ ही उनके चारे में भी थोड़ा बदलाव करना जरूरी है। गर्मी आते ही हरे चारे की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में उनके चारे में दनीर या दाने की मात्रा बढ़ानी चाहिए। दाने में गेहूं और जौ की मात्रा बढ़ाना आवश्यक है। हरे चारे में मक्का लोबिया या ज्वार लोबिया को शामिल करना चाहिए।

यह जानकारी करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआइ) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बृजेश मीणा ने दी। वह मंगलवार को रेडियो ग्रामोदय के कार्यक्रम वेकअप करनाल में पशुपालन, डेयरी व्यवसाय एवं पशुओं की देखभाल से जुड़े विषयों पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान से चर्चा कर रहे थे। इस दौरान पशुओं की नस्ल सुधारने से लेकर उनके रखरखाव तक कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।

डा. चौहान ने कहा कि पशुपालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधानों के लिए एनडीआरआइ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विख्यात है और यह लगातार चार वर्षों से देश के कृषि विश्वविद्यालयों में शीर्ष स्थान पर है। उन्होंने पशुपालन और खेती के तौर तरीकों में निरंतर बदलाव करते रहने का सुझाव दिया।

एनडीआरआइ के कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डा. मीणा ने बताया कि यह एक डीम्ड विश्वविद्यालय है जहां पशुपालन से जुड़े विभिन्न विषयों पर कोर्स करवाए जाते हैं और इच्छुक किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके लिए किसानों से फीस के तौर पर कुछ धनराशि भी ली जाती है। संस्थान में प्रशिक्षण के लिए रहने खाने से लेकर अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध कराई जाती हैं।

डा. बृजेश मीणा ने बताया कि संकर प्रजाति के पशु तैयार करने और उनकी नस्ल सुधारने में एनडीआरआइ का विश्व भर में नाम है। वर्ष 1991 में इस संस्थान ने विश्व का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बफेलो (भैंस) पैदा करने का श्रेय प्राप्त किया था। संस्थान की ओर से पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए अनुसंधान कार्य निरंतर जारी है। वर्ष 2008 में क्लोनिग की दिशा में भी कदम बढ़ाया गया और विश्व की पहली क्लोन भैंस भी यहीं तैयार की गई।

डॉ. मीणा ने बताया कि एनडीआरआइ की स्थापना एक जुलाई 1923 को बेंगलुरु में हुई थी जिसे 1955 में करनाल मुख्यालय में स्थापित किया गया। यहां बीटेक, एमएससी और पीएचडी के कोर्स करवाए जाते हैं और कोर्स पूरा होते ही नौकरी मिल जाती है। संस्थान में करीब 25 कर्मचारी हैं और दो हजार के करीब उन्नत नस्ल की गायें और भैंसें हैं।

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