आर्थिक-सामाजिक-मानसिक अभावों से रक्षा को बांधें रक्षा सूत्र : डा. चौहान

भारतीय संस्कृति में रक्षा सूत्र के माध्यम से अपनी रक्षा के लिए सामने वाले को संकल्पित करने का चलन आदि काल से है। विशेष बात यह थी कि यह मात्र भाई बहन तक ही सीमित नहीं था अपितु इस प्रतीकात्मक रक्षा बंध को अनेक रूपों में एक दूसरे को बांधा जाता रहा था।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 05 Aug 2020 07:24 AM (IST) Updated:Wed, 05 Aug 2020 07:24 AM (IST)
आर्थिक-सामाजिक-मानसिक अभावों से रक्षा को बांधें रक्षा सूत्र : डा. चौहान
आर्थिक-सामाजिक-मानसिक अभावों से रक्षा को बांधें रक्षा सूत्र : डा. चौहान

संवाद सूत्र, निसिग : भारतीय संस्कृति में रक्षा सूत्र के माध्यम से अपनी रक्षा के लिए सामने वाले को संकल्पित करने का चलन आदि काल से है। विशेष बात यह थी कि यह मात्र भाई बहन तक ही सीमित नहीं था अपितु इस प्रतीकात्मक रक्षा बंध को अनेक रूपों में एक दूसरे को बांधा जाता रहा था। इसी भाव से प्रत्येक साम‌र्थ्यवान को विभिन्न आर्थिक-सामाजिक-मानसिक अभावों से रक्षा के लिए संकल्पित करने को रक्षा सूत्र बांधें। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष व निदेशक डा. वीरेंद्र सिंह चौहान ने रक्षाबंधन पर कवि सम्मलेन की अध्यक्ष के रूप में भाई-बहन के प्रेम को स्मरण करते हुए यह विचार रखे। मुख्यातिथि के रूप में कार्यक्रम में पधारे महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के उप-कुलपति डा. श्रेयांश द्विवेदी ने प्रेम व संस्कृत के महत्व पर अपने विचार रखे। कवयित्री राशि श्रीवास्तव के संचालन में मुंबई से कुंती नवल, मोहाली से नीरजा शर्मा, कैथल से मधु गोयल, कुरुक्षेत्र से सूबे सिंह सुजान, चंडीगढ़ से रजनी बजाज, पंचकूला से आभा मुकेश साहनी, सुनीता राणा, नीरू मित्तल 'नीर', शीला गहलावत सीरत ने रचनाएं प्रस्तुत की।

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