घर की रार से इनेलो के गढ़ रहे हलकों में लगेगी सेंध

जागरण संवाददाता, करनाल घर की रार से इनेलो के गढ़ की दीवारें दरकने के आसार बन रह

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Nov 2018 02:21 AM (IST) Updated:Sat, 17 Nov 2018 02:21 AM (IST)
घर की रार से इनेलो के गढ़ रहे हलकों में लगेगी सेंध
घर की रार से इनेलो के गढ़ रहे हलकों में लगेगी सेंध

जागरण संवाददाता, करनाल

घर की रार से इनेलो के गढ़ की दीवारें दरकने के आसार बन रहे हैं। करनाल जिले के पांच में चार विधानसभा क्षेत्र में इनेलो की पैठ खासी मजबूत रही है, लेकिन बदली परिस्थितियों में स्थानीय नेता भी असमंजस में है कि दो गुट में बंटी पार्टी में से किस गुट की ओर रुख करे। घर में पड़ी दरार का असर हलकों की राजनीति पर आना शुरू हो गया। ऐसे में जहां जहां अकेली इनेलो मजबूत नजर आती थी, वहीं अब दो गुटों में उसकी ताकत पर निश्चित तौर पर असर आएगा। कार्यकर्ताओं की संख्या बंटेगी तो साथ ही नेताओं की संख्या भी। जाहिर तौर पर पार्टी के पुराने मतदाताओं को अपनी अपनी करने के लिए कार्यकर्ताओं व नेताओं को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।

करनाल जिले के तहत आने वाले पांच हलकों में से करनाल विधानसभा को छोड़कर अन्य चार हलकों में इनेलो की टिकट पर नेताओं को विधानसभा में पहुंचने का अवसर मिलता रहा है। सबसे ज्यादा बार असंध की जनता ने इनेलो उम्मीदवारों को जीत दिलाई है। नीलोखेड़ी, इंद्री और घरौंडा से भी इनेलो प्रत्याशियों ने बड़ी कामयाबी दर्ज की है। इस क्षेत्र से पार्टी को मिलने वाली बढ़त का नतीजा रहा है कि इनेलो को सरकार बनाने का अवसर मिला। इस क्षेत्र से मिलने वाली बढ़त के पीछे एक अहम वजह यहां कि पुराने वर्कर रहे हैं। अब यही वर्कर दो गुटों में जुदा-जुदा होंगे तो निश्चित तौर पर इसका असर जमीनी पकड़ पर आएगा। असंध से रहा है चौटाला परिवार का लगाव

इनेलो का सबसे मजबूत दुर्ग असंध विधानसभा क्षेत्र रहा है। यहां से वर्ष 1982 और 1987 के विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी मनफूल ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद वर्ष 1991, 1996, 2000 और 2006 में कृष्णलाल पंवार ने इनेलो की टिकट पर चुनाव जीता। इस हलके से पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का लगाव भी जगजाहिर है।

घरौंडा से चार बार इनेलो प्रत्याशी कर चुके हैं जीत दर्ज

घरौंडा हलके से चार बार इनेलो प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके हैं। जाहिर है कि यहां के मतदाताओं का भरोसा इनेलो पर रहा है। यही वजह है कि इंद्री हलके से टिकट के चाहवान रहे युवा नेता नरेंद्र सांगवान को वर्ष 2000 में घरौंडा हलके की टिकट थमा दिया गया। यह हलका उनके लिए नया था, लेकिन पार्टी के वोट बैंक के सहारे वह चुनाव जीत गए थे। इससे पहले 1987 में पार्टी उम्मीदवार इरू राम, 2000 में रमेश राणा और 2005 में रेखा राणा ने इनेलो के टिकट पर जीत दर्ज की थी। नीलोखेड़ी हलके में रही है सशक्त उपस्थित

इनेलो की सशक्त उपस्थित नीलोखेड़ी हलके में रही है। नए परिसीमन के बाद जुंडला हलके को समाप्त कर इसके क्षेत्र को नीलोखेड़ी व असंध हलके में कर दिया गया। यहां से इनेलो के टिकट वर्ष 2000 में नफे ¨सह और वर्ष 2009 में मामू राम गोंदर ने चुनाव जीता था। 1987 में जुंडला हलके से पार्टी प्रत्याशी रिसाल ¨सह ने जीत दर्ज की थी। इंद्री हलके में रही है पुरानी पकड़

इंद्री विधानसभा क्षेत्र में इनेलो की पुरानी पकड़ रही है। यहां से इनेलो की टिकट पर विधानसभा जाने की राह आसान मानी जाती रही है। लोकदल की टिकट पर देसराज कांबोज और लक्ष्मण ¨सह कांबोज ने चुनाव जीता था। लक्ष्मण ¨सह कांबोज यहां से दो बार जीत चुके हैं। जबकि वर्ष 2009 में डा. अशोक कश्यप ने जीत दर्ज की थी। इससे जाहिर है कि इस हलके में इनेलो की पैठ रही है।

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