25 देशों के प्रतिनिधि मृदा सुधार, जलवायु परिवर्तन पर करेंगे मंथन
केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की स्वर्ण जयंती पर सात से नौ फरवरी को अंतरराष्ट्रीय सेि
प्रदीप शर्मा, करनाल
अगले माह करनाल में भविष्य के भारत की पटकथा लिखी जाएगी। इसके लिए सात से नौ फरवरी तक केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में आयोजित सेमिनार में 25 देश भाग होंगे। इससे पहले 1980 में संस्थान के स्थापना दिवस पर भी ये देश एकजुट हुए थे। ये सभी देश अफ्रीकन-एशियन रूरल डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन, इकबा और झिरकास जापान तीनों संगठन के हिस्सा हैं। इसमें भविष्य में एशियाई देशों का स्वरूप कैसे होगा। खासकर मृदा सुधार, जलवायु परिवर्तन विषय पर मंथन होगा। तीनों संगठनों के इंडिया, जापान, अफगानिस्तान, दुबई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, अलगेरिया, चाइना इजिप्ट, इथोपिया, घाना, इराक, जोर्डन, कीनिया, कोरिया, लेबनान, लाइबिरिया, लिबिया, मलेशिया, फिली¨पस, सीरिया, सूडान, तूनिशिया और वियतनाम जैसे देश यहां पहुंचेंगे। ये रहेंगे मंथन के दो केंद्र
1. मृदा सुधार
अब तक तीनों संगठनों के 15 देशों ने मिलकर मृदा सुधार की दिशा में काम किया है। जहां तक भारत की बात है 67.30 लाख हेक्टेयर क्षारीय और लवणीय भूमि है। इसमें ज्यादा 37.70 लाख हेक्टेयर क्षारीय है और 29.60 लवणीय भूमि है। 1980 में मृदा सुधार की दिशा में जो तकनीक विकसित की थी उसके अनुसार मृदा सुधार पर काम शुरू किया गया। संस्थान ने अब तक 20 लाख हेक्टेयर क्षारीय और 70 हजार लवणीय भूमि में सुधार किया है। इसमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और कर्नाटक शामिल हैं, लेकिन अब समय के साथ तकनीक में बदलाव की जरूरत भी है, इसलिए संस्थान के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर फिर से यह 25 देश एकजुट होकर मृदा सुधार की दिशा में नई तकनीक विकसित करने पर मंथन करेंगे। 2. जलवायु परिवर्तन
मौसम की परिस्थितियां बदल रही हैं। इस असर दिखना शुरू हो गया है। हर साल औसत बारिश तो उतनी ही हो रही है, लेकिन बारिश का समय कम हो गया है। 10 से 12 साल पीछे जाए तो 365 दिनों में से 110 दिन बरसात होती थी, लेकिन अब यह 365 में से 80 दिन बारिश होती है। बारिश का समय भी घट गया है, लेकिन कुल बरसात में फर्क नहीं आया। जब बरसात हुई तो बाढ़ की स्थिति बन गई। पहले धीरे-धीरे बारिश का सिलसिला लंबा चलता था। यह संकेत ठीक नहीं हैं। अब ऐसे में बाढ़ ओर सूखा दोनों झेलने पड़ रहे हैं। तापमान में भी बढ़ोतरी हुई है। मौसम की इन परिस्थितियों में कैसे अपने आपको को ढाल पाएंगे और कैसे इन परिस्थितियों के अनुसार हमारी फसलें ठहरेंगी, शोध में कितनी गुंजाइश है? इस पर भी विस्तार से बातचीत होगी। वर्जन
यह संस्थान के लिए गौरव की बात है कि स्थापना दिवस के बाद पहली बार अंतरराष्ट्रीय सेमिनार होने जा रहा है। भविष्य में एशियाई देश कैसे जलवायु परिवर्तन की परिस्थितियों से निपटेंगे और हमारी क्षारीय और लवणीय भूमि में आधुनिक तकनीक से कैसे सुधारेंगे यह बड़े विषय हैं। इसके अलावा स्टेक होल्डर्स भी शामिल होंगे। क्षारीय और लवण प्रभावित क्षेत्रों से दो-दो किसानों को भी बुलाया गया है। हमारी तरफ से तैयारियां जोरों पर चल रही है। हमें उम्मीद है कि हम भविष्य के भारत को ओर सुनहरा बनाएंगे, देश को खाद्यान्न की कमी नहीं रहेगी। अन्न के भंडार भरने में कामयाब रहेंगे।
डॉ. प्रबोध चंद्र, शर्मा, निदेशक, केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल।