वचनों से किया घाव कभी भरने का नाम नहीं लेता : मुनि पीयूष
जागरण संवाददाता करनाल श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर में उपप्रवर्तक पीयूष मुनि महाराज
जागरण संवाददाता, करनाल : श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर में उपप्रवर्तक पीयूष मुनि महाराज ने कहा कि वाणी से बोले जाने वाले वचनों से ही सज्जन तथा दुर्जन की परख होती है और व्यक्ति की आन्तरिक भावनाओं का पता चलता है। जब प्रेम तथा प्यार से ही सारा काम चल सकता है तो फिर जोर-जबरदस्ती तथा दवाब की कोई जरूरत नहीं है। बाणों से बिधा वृक्ष फिर उग सकता है, तलवार से काटे पेड़ का भी पुन: उगना सम्भव है अर्थात तलवार तथा तीर से किया जख्म भर सकता है परन्तु वचनों से बींधा हुआ तथा घृणित वाणी से किया घाव कभी भी भरने का नाम नहीं लेता। अपने मुखदोष से तोता तथा मैना बंधन को प्राप्त होते हैं परन्तु बगुले को कोई भी कभी पिजरे में नहीं डालता। इस प्रकार सिद्ध होता है कि मौन सभी अर्थों का साधक है।
उन्होंने कहा कि बोलते समय पांच बातों का ध्यान रखना जरूरी है कि तुम किससे बात कर रहे हो, किसके बारे में बात कर रहे हो, कब, कहां और कैसे बोल रहे हो। वाणी का विवेकपूर्ण प्रयोग वाणी से सुख और शान्ति की उपलब्धि सम्भव कराता है। बोलते समय ओछे तथा घटिया शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। घटिया वचन बोलना वक्ता की असभ्यता और अकुलीनता का परिचायक होता है। आज मानव ने खाने-पीने, रहने-सहने तथा पहचानने की सभ्यता में बहुत तरक्की की है परन्तु बोलने की सभ्यता में वह पिछड़ गया है, ऐसा प्रतीत होता है। वाणी से मनुष्य की कुलीनता का पता चलता है। रंग-रूप के आधार पर तो कुलीन-अकुलीन में कोई भेद नहीं किया जा सकता और न ही कोई दूसरा विशेष लक्षण कुलीन व्यक्तियों में पाया जाता है। कुलीन के सिर पर सींग नहीं होते तथा कुलवान के हाथों में कमल नहीं खिलते। ज्यों-ज्यों व्यक्ति अपने मुंह से वचन रूपी बाण फैंकता है, त्यों-त्यों उनके आधार पर उसकी जातीयता तथा कुलीनता का पता चलता है। बोल अपना मोल स्वयं ही बता देते हैं।
मुनि ने कहा कि वाणी धर्ममय होनी चाहिए। धर्मरहित वाणी आत्महीन शरीर की भांति होती है। वाणी प्रकृति या पुण्य की महान से महान देन है। सत्य ही भगवान है। सत्य की उपासना करने वाला भगवान को प्राप्त करता है। सत्य ही संसार में सारभूत तत्त्व है। सत्य को अमृत के समान समझकर उसका सेवन करना चाहिए। असत्य के समान कोई पाप नहीं है। जैसे करोड़ों रत्तियों का ढेर सुमेरु पर्वत के समान नहीं होता, इसी प्रकार सारे पाप मिलकर झूठ का मुकाबला नहीं कर सकते। सत्य ही स्वर्ग की सीढ़ी है। सत्य से धर्म की उत्पत्ति होती है। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति सत्य को बहुत अधिक महत्ता देते हैं तथा उसे अपने प्राणों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। सत्य अमर और त्रुटि नश्वर है। असत्य का नाश होता है परन्तु सत्य तीनों कालों में बना रहता है क्योंकि वह शाश्वत तथा परब्रह्म है। वाणी की निपुणता सुनने वाले के मन को मोह लेती है। वाणी की चतुरता से उसकी मिठास बढ़ जाती है। वक्ता को ज्ञान होना चाहिए कि किस अवसर पर कौन सी बात कहनी है। बोलने के समय मौन रहना तथा मौन रहने के वक्त बोल पड़ना वक्ता की नासमझी का परिचायक है। पण्डित मदन मोहन मालवीय में बोलने की अनूठी कला थी जिसके प्रभाव से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। कई बार देखा जाता है कि बात वही होती है परन्तु कहने के तरीकों से उसके प्रभाव में अन्तर आ जाता है।