किसान फसल अवशेषों का समुचित प्रबंधन करने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का करें उपयोग : उपायुक्त
डीसी निशांत कुमार यादव ने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जिला के गांव-गांव में पहुंचकर किसानों को खेतों में फसल अवशेष न जलाने बारे जागरूक किया जा रहा है।
जागरण संवाददाता, करनाल : डीसी निशांत कुमार यादव ने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जिला के गांव-गांव में पहुंचकर किसानों को खेतों में फसल अवशेष न जलाने बारे जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे फसल अवशेषों का समुचित प्रबंधन करने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करें, कहीं पर भी खेतों में फसल अवशेष न जलाएं।
डीसी ने फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि मानव स्वास्थ्य से जुड़े इस मुद्दे को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय, एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण विभाग गंभीर है और ऐसे मामलों में भारी जुर्माना और सजा का प्रविधान कर दिया है। अगर कोई फसल अवशेष जलाया पाया जाता है तो वह पर्यावरण के नुकसान की भरपाई देने के लिए उत्तरदायी होगा। उन्होंने बताया कि दो एकड़ भूमि तक 2500 रुपये प्रति एकड़ घटना, 2 से 5 एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपये प्रति घटना, 5 एकड़ से ज्यादा भूमि 15 हजार रुपये प्रति एकड़ घटना का प्रविधान है।
उन्होंने बताया कि खेतों में आग लगाने वाले लोग नासमझी करते हैं, जिससे जमीन की सेहत और पर्यावरण दोनों बिगड़ते हैं, और भी कई तरह के नुकसान हैं। इन सब बातों को देखते हुए सरकार फसल अवशेष प्रबंधन पर करोड़ों रूपये खर्च कर किसानों को ऐसी कृषि मशीनरी के साथ जोड़ रही है, जिसमें ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं और अवशेष मिट्टी में ही मिलकर जमीन में पोटाश और नाइट्रोजन की मात्रा को संतुलित बना देते हैं। बड़ी संख्या में कस्टम हायरिग सेंटर या कृषि बैंक खोले जा चुके हैं, जहां से कोई भी किसान बहुत ही वाजिब किराए पर इन यंत्रों को लेकर अपने खेतों में प्रयोग कर सकता है। उन्होंने बताया कि प्रशासन ने एक ओर कदम बढ़ाकर पंचायतों को हैप्पी सीडर, एमबी प्लो, रोटावेटर और मल्चर जैसे कृषि यंत्र दिए हैं, जहां से कोई भी किसान जरूरत अनुसार पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर अपना ट्रैक्टर लाकर निश्शुल्क रूप से खेत में ले जा सकता है। फसल अवशेष प्रबंधन से जुड़े कृषि यंत्रों पर सरकार द्वारा 50 फीसद से लेकर 80 फीसद तक सब्सिडी दी जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि पराली की गांठे बनाने पर प्रति एकड़ 1 हजार रुपये का अनुदान दिया जा रहा है।