तीसरे और चौथे नवरात्र का बना संयोग
नवरात्र इस बार आठ दिन के होने की वजह से देवी मां के दो स्वरूपों की एक साथ पूजा की गई। प्रसिद्ध प्राचीन देवी मंदिर मां चंद्रघंटा व कुष्मांडा के जयकारों से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने माता के समक्ष मत्था टेका और अपने परिवार में सुख-शांति व समृद्धि की कामना की।
संवाद सहयोगी, घरौंडा : नवरात्र इस बार आठ दिन के होने की वजह से देवी मां के दो स्वरूपों की एक साथ पूजा की गई। प्रसिद्ध प्राचीन देवी मंदिर मां चंद्रघंटा व कुष्मांडा के जयकारों से गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने माता के समक्ष मत्था टेका और अपने परिवार में सुख-शांति व समृद्धि की कामना की। आचार्य मणिप्रसाद गोतम ने भी माता के दोनों स्वरूपों को लेकर प्रवचन किए और तीसरे व चौथे नवरात्रि के महत्व से अवगत करवाया। उन्होंने बताया कि नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है। माता रानी का चंद्रघंटा स्वरूप भक्तों पर कृपा करती है और निर्भय और सौम्य बनाता है। वहीं नवरात्रि के चौथे दिन जो भक्त कुष्मांडा की उपासना करते हैं, उनके समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता कुष्मांडा ने ही ब्रहांड की रचना की थी। इन्हें सृष्टि की आदि-स्वरूप, आदिशक्ति माना जाता है। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान ही है और इनका तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं।
आचार्य गौतम ने कहा कि नवरात्रि के तीसरे दिन मां भगवती की तृतीय शक्ति मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है, लेकिन हिदू पंचांग के अनुसार, इस बार तृतीया और चतुर्थी तिथि एक ही दिन पड़ रही है। जिसके कारण मां चंद्रघंटा और मां कुष्मांडा की पूजा का शुभ संयोग एक ही दिन बन रहा है। तृतीया और चतुर्थी एक ही दिन होने के कारण इस बार नवरात्रि का समापन भी आठ दिन में हो जाएगा।