कभी Ring के बाहर बजाते थे तालियां, मौका मिला तो एक पंच में National Champion को कर दिया था ढेर
अर्जुन अवार्डी सेरा जयराम ने राष्ट्रीय चैंपियन थापा को पहले ही राउंड में ऐसा पंच मारा कि उसे स्ट्रेचर पर ले जाना पड़ा था। कैसा रहा उनका सफर उनके बातचीत पर आधारित अंश।
करनाल [पवन शर्मा]। 1980 का वो दौर अकसर याद आता है, जब मैं बॉक्सिंग रिंग के बाहर खड़ा होकर तालियां बजाता था। किसी खिलाड़ी को मिनटों में प्रतिद्वंद्वी को ढेर करते देखता था तो लगता कि यह तो मैं भी कर सकता हूं। जैसे ही पहला मौका मिला तो उस दौर के नेशनल चैंपियन थापा से भिड़ंत हुई। पूरी ताकत बटोर मैंने उसके राइट अपर हेड पर नॉक किया और धराशायी कर दिया। उसे अचेत अवस्था में स्ट्रेचर पर लेकर जाना पड़ा। फिर मैं चारों तरफ देर तक अपने लिए तालियों का शोर सुनता रहा। खुशी है कि इस खेल में चार दशक के लंबे सफर में आज तमाम बेशकीमती अनुभव मेरे खाते में हैं।
अर्जुन अवार्डी सेरा जयराम ने दैनिक जागरण से खास बातचीत में जज्बात साझा किए। ऑल इंडिया पुलिस रेसलिंग क्लस्टर में बतौर तेलंगाना पुलिस के स्पोर्ट्स ऑफिसर शिरकत कर रहे जयराम ने बताया कि 1980 में वह सेना में शामिल हुए। तब ट्रेनिंग के लिए जबलपुर की वन कोर सब सिग्नल में जाना हुआ तो वहां मुक्केबाजी के कई मुकाबले देखे। उस दौर के दिग्गज कोच बीआर बलियानी व कैप्टन भगवान सिंह ने आर्मी टीम में मौका दिया। छह माह में वाइएमसी चैंपियन, तीन वर्ष में नेशनल चैंपियन बना। उस दौर में राष्ट्रीय चैंपियन थापा को पहले ही राउंड में ऐसा पंच मारा कि उसे स्ट्रेचर पर ले जाना पड़ा। तीन बोतल ग्लूकोज चढ़ाना पढ़ा। बाद में थापा और मैं नेशनल टीम में भी खेले। लेकिन बहुत हंसी आती थी, जब मेरा सामना होते ही थापा तुरंत रफूचक्कर हो जाता था।
जयराम बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1983 में हार के बाद अगले ही साल कलकत्ता में नेशनल चैंपियन बना। सेफ गेम्स में सिल्वर जीता। पूरे करियर में 15 इंटरनेशनल टूर किए और पांच गोल्ड सहित तीन-तीन सिल्वर व ब्रॉन्ज झटके। 1988 में सेना की तीनों कोर का सबसे बड़ा बेस्ट सर्विसमैन अवार्ड मिला। नायब सूबेदार पद पर प्रमोशन हुआ। 1989 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण के हाथों अर्जुन अवार्ड मिला। 1990 में विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा गया। बीस साल सेवा के बाद ऑनरेरी कैप्टन पद से अवकाश प्राप्त किया। 2001 में आंध्र पुलिस में सीधे एसआइ पद पर नियुक्ति मिली। पहले ही वर्ष पांच पदक जीते और गत वर्ष रिटायरमेंट तक पुलिस सेवा के पूरे कैरियर में 35 मेडल बटोरे। अब तेलंगाना पुलिस के लिए स्पोर्ट्स ऑफिसर की जिम्मेदारी निभाते हुए उभरते मुक्केबाजों की प्रतिभा तराश रहा हूं।
मलाल तो नहीं, मगर अच्छा होता...
जयराम बोले - राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरे जी-जान से सेवा करने के बावजूद नेशनल टीम का कोच नहीं बनाया गया। इसका मलाल तो नहीं है लेकिन इसका फायदा खिलाडिय़ों को मिलेगा। 1991 में एनआइएस पटियाला से डिप्लोमा किया तो चंडीगढ़ में बेहतर जॉब भी ऑफर हुई लेकिन सेना और देश के प्रति अपने जज्बे के मद्देनजर स्वीकार नहीं की।
याद आते हैं तमाम चेहरे
जयराम को नेशनल टीम के चीफ कोच जीएस संधू, ई. चिरंजीवी, ओमप्रकाश भारद्वाज से विरासत में मिले दांव-पेच अभी तक बखूबी याद हैं। अपने शिष्यों में शामिल गिरधारी सिंह, केएल घोष, पीआर स्वामी, बीएस रावत और राजेंद्र सिंह सरीखे तमाम चेहरों को भी कभी नहीं भूलते। ये रिश्ते-नाते ही तो मेरी असली दौलत है, जिनसे बहुत कुछ सीखा और सिखाने का प्रयास भी किया।
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