वर्ष 1954 में चरवाहों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के बाद खुली थी खडालवा गांव में पाठशाला

प्रदेश के मानचित्र पर बे-चिराग गांव के रूप में पहचान रखने वाले कलायत के गांव खडालवा की धरती पर वर्ष 1954 में शिक्षा की लौ जगाने के लिए ग्रामीणों को बड़ी मुश्किलों की डगर तय करनी पड़ी थी। प्राथमिक पाठशाला से वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल सफर के साक्षी 80 वर्षीय बुजुर्ग टेक राम मौण इस अध्याय के एक-एक अक्षर को जहन में याद रखें है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 11 Aug 2021 07:00 AM (IST) Updated:Wed, 11 Aug 2021 07:00 AM (IST)
वर्ष 1954 में चरवाहों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के बाद खुली थी खडालवा गांव में पाठशाला
वर्ष 1954 में चरवाहों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के बाद खुली थी खडालवा गांव में पाठशाला

संवाद सहयोगी, कलायत : प्रदेश के मानचित्र पर बे-चिराग गांव के रूप में पहचान रखने वाले कलायत के गांव खडालवा की धरती पर वर्ष 1954 में शिक्षा की लौ जगाने के लिए ग्रामीणों को बड़ी मुश्किलों की डगर तय करनी पड़ी थी। प्राथमिक पाठशाला से वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल सफर के साक्षी 80 वर्षीय बुजुर्ग टेक राम मौण इस अध्याय के एक-एक अक्षर को जहन में याद रखें है। वे उस जमाने के दसवीं जमात तक पढ़े व्यक्ति हैं। वे बताते हैं कि निरक्षरता की समस्या को देखते हुए मटौर गांव के लोगों ने बढ़सीकरी गांव स्थित सिचाई विभाग की आजादी से पहले निर्मित लाल कोठी पर संयुक्त पंजाब के तत्कालीन मंत्री के समक्ष पाठशाला खुलवाने की मांग रखी थी। उस दौरान टेक राम तीसरी जमात के विद्यार्थी थे। मंत्री ने शिष्टमंडल को प्राथमिक पाठशाला के लिए 60 विद्यार्थियों की हाजिरी सुनिश्चित करने का तर्क दिया था।

उस समय पढ़ाई के लिए इतने विद्यार्थी इच्छुक नहीं थे। दो-चार युवा ही पास-पड़ोस और दूरदराज स्थित स्कूलों में पढ़ाई कर रहे थे। ग्रामीणों ने विशेष जागृति अभियान चलाकर चरवाहों को भी स्कूल में प्रवेश करने के लिए राजी किया। आखिरकार आंकड़ा पूरा हो गया और मंत्री ने वादे अनुसार स्कूल खुलवाने का निर्णय लिया। पड़ोसी गांव बढ़सीकरी के लोगों से इस विषय को लेकर जब चर्चा की गई तो खडालवा प्राचीन शिव मंदिर के पास पाठशाला शुरू हो गई।

पहले सत्र में 14 विद्यार्थियों ने पास की थी पांचवीं की परीक्षा

खडालवा में शुरू हुई सरकारी पाठशाला के प्रथम सत्र में 14 विद्यार्थियों ने पांचवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके बाद भी पढ़ाई-लिखाई एक अभियान ही बन गया। वर्तमान बढ़सीकरी और मटौर गांव की बेटी और बेटे उच्च तालीम हासिल कर विभिन्न क्षेत्रों में नित कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। दसवीं तक पढ़े टेक राम शिक्षा के प्रति बेहद गंभीर हैं। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने एक नई पहल की थी। उनकी पत्नी का वर्ष 2007 में निधन हो गया। इनकी रस्म पगड़ी पर होने वाले अनाप-शनाप व्यय पर अंकुश लगाते हुए श्री कपिल मुनि महिला कालेज में एक कमरा निर्माण का निर्णय लिया था।

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