उन्मुक्त हूं मैं, तुम मुक्त कर दो, बहने दो मस्त हवाओं में

उन्मुक्त हूं मैं तुम मुक्त कर दो। बहने दो मस्त हवाओं में देखूं तो जीकर जीना। डा.संध्या आर्य की इन पंक्तियों ने मंझे हुए कवियों और लेखकों के बीच खूब वाहवाही लूटी। साहित्य सभा की मासिक काव्य गोष्ठी डा. हरीश झंडई की अध्यक्षता में जवाहर पार्क स्थित सेवा संघ भवन में आयोजित की गई।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 06:26 AM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 06:26 AM (IST)
उन्मुक्त हूं मैं, तुम मुक्त कर दो, बहने दो मस्त हवाओं में
उन्मुक्त हूं मैं, तुम मुक्त कर दो, बहने दो मस्त हवाओं में

जागरण संवाददाता, कैथल: उन्मुक्त हूं मैं, तुम मुक्त कर दो। बहने दो मस्त हवाओं में, देखूं तो जीकर जीना। डा.संध्या आर्य की इन पंक्तियों ने मंझे हुए कवियों और लेखकों के बीच खूब वाहवाही लूटी। साहित्य सभा की मासिक काव्य गोष्ठी डा. हरीश झंडई की अध्यक्षता में जवाहर पार्क स्थित सेवा संघ भवन में आयोजित की गई। गोष्ठी का संचालन डा. प्रद्युम्न भल्ला और रिसाल जांगड़ा ने किया। खास बात यह है कि साहित्य सभा की गोष्ठियों में अब महिलाएं भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। यह खूब प्रशंसा बटोर रही हैं। गोष्ठी का आरंभ दिनेश बंसल के इस शेर से हुआ, खिला हुआ है जो, मुद्दत से आंगन में, मेरे खयालों में खुशबू उसी गुलाब की है। संसार में फंसे इंसान को भगवान नहीं मिल सकता। यह भाव रिसाल जांगड़ा के शेर में दिखा। सपनों पर पहरा न लगाने का आग्रह राजेश भारती ने अपनी रचना में कुछ यूं किया, सपनों पर पहरा मत लगाओ रिवाजों, फैलने दो सपनों को, आजाद पंछी की तरह। रवींद्र रवि ने कहा अगर गम का खजाना चाहिये था। किसी से दिल लगाना चाहिये था। ईश्वर चंद गर्ग ने अपनी कविता में रोते हुए बच्चों को सीने से लगाने की अपील की। डा. तेजिद्र ने कहा हे नारद, पृथ्वी पर मत आना। जहां हो, वहीं ठहर जाना। पृथ्वी पर आओगे तो यहां की भीड़ में, तुम भी संक्रमित हो जाओगे। कमलेश शर्मा की संवेदनायें इन शब्दों में व्यक्त हुई, अपनी क्या पूछो हो, धूप-छांव की बस कहानी, कभी अमराइयों के मखमली साये, कभी तपते मरु, नंगे पांव लांघ आये। दिनेश शर्मा ने कहा, सच है नहीं जला रावण, होलिका भी नहीं जली, दोनों आज भी जिदा हैं, प्रत्यक्ष या परोक्ष, सकारात्मकता जिदा रहनी चाहिये।

डा. प्रद्युम्न भल्ला ने कहा, जरूरी नहीं होता शब्दों का कागज पर उकेरा जाना, जा सकते हैं शब्द तो, मन से मन तक बिना बोले। काव्य गोष्ठी में डाडहरीश झंडई ने एक गुमनाम शहीद वीरांगना का जीवन-वृत्त अपनी ओजस्वी कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया। इनके अतिरिक्त सतीश शर्मा, दिलबाग अकेला, सूबे सिंह राविश, श्याम सुंदर शर्मा, डा.चतरभुज बंसल सौथा, कर्मचंद केसर, पंकज खोसला, लहणा सिंह अत्री, महेंद्र पाल सारस्वत, सोहन लाल सोनी, ओमपति मोर, प्रीतम लाल शर्मा ने भी अपनी-अपनी रचनाएं पढ़ीं।

chat bot
आपका साथी