खारा पानी होने से खेती में नुकसान हुआ तो किसान फकीर चंद ने शुरू किया मधुमक्खी पालन व्यवसाय

सातवीं पास गांव कैलरम के प्रगतिशील किसान फकीर चंद आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। कपास व धान की खेती में जब ज्यादा मुनाफा नहीं हुआ तो इस फसल के साथ-साथ मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया। इस धंधे से मुनाफा होने लगा तो काम और ज्यादा बढ़ा लिया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 12 Aug 2021 05:11 PM (IST) Updated:Thu, 12 Aug 2021 05:11 PM (IST)
खारा पानी होने से खेती में नुकसान हुआ तो किसान फकीर चंद ने शुरू किया मधुमक्खी पालन व्यवसाय
खारा पानी होने से खेती में नुकसान हुआ तो किसान फकीर चंद ने शुरू किया मधुमक्खी पालन व्यवसाय

सोनू थुआ, कैथल : सातवीं पास गांव कैलरम के प्रगतिशील किसान फकीर चंद आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। कपास व धान की खेती में जब ज्यादा मुनाफा नहीं हुआ तो इस फसल के साथ-साथ मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया। इस धंधे से मुनाफा होने लगा तो काम और ज्यादा बढ़ा लिया। अब 100 के करीब बक्से रखकर मधुमक्खी पालन कर रहा है। इससे सालाना करीब चार लाख की कमाई हो रही है। किसान फकीर चंद के इस कार्य को देखते हुए दूसरे लोगों ने भी इस व्यवसाय को अपनाया है।

किसान फकीरचंद बताते हैं कि वह कृषि विज्ञान केंद्र कैथल से वर्ष 2006 में जुड़ा था। पहले मधुमक्खी पालन के व्यवसाय की ट्रेनिग ली। इसके बाद साल 2007 में 10 बक्से रखकर काम शुरू कर दिया। शुरूआत में बक्सों का खर्च निकालकर दस हजार रुपये की बचत हुई। धीरे-धीरे आमदनी में बढ़ोतरी हुई तो काम भी बढ़ा लिया। फूलों वाले क्षेत्र में रखे जाते हैं बक्से

किसान फकीरचंद ने बताया फूलों वाले इलाकों में बक्से रखता है। सरसों के फूलों में सबसे ज्यादा आमदनी होती है। सरसों के सीजन में करीब पांच किलो शहद एक बक्से से प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि सरसों नवंबर से फरवरी माह तक रहती है। फिर फरवरी से अप्रैल तक बक्सों को जांडी व सफेदे के पास रखते हैं, क्योंकि उन पर फूल आते हैं। इन फूलों का रस चूसकर मक्खी शहद बनाती है। फिर अप्रैल से सितंबर तक बाजरा, तिल में मधुमक्खी के बक्से रखते हैं, जिन से अच्छा शहद प्राप्त हो जाता है। यहां-यहां रखे गए हैं बक्से

किसान ने बताया कि नवंबर व दिसंबर के महीने में कैथल में बक्से रखते हैं। दिसंबर के अंतिम व जनवरी माह की शुरूआत में भिवानी महेंद्रगढ़, बाढ़डा में बक्से लेकर जाते हैं, क्योंकि प्रदेश में सरसों की फसल सबसे ज्यादा उस क्षेत्र में होती है। मार्च के महीने में नहरों के आसपास तो अप्रैल व जून के महीन में शाहबाद के एरिया में सुरजमुखी की फसल उगने पर वहां बक्से रखे जाते हैं। खुद की मार्केटिग करते हैं फकीर चंद

फकीर चंद बताते हैं कि शुरुआत में शहद की अधिक मार्केटिग न होने के कारण रेट कम मिलने से उनको काफी निराशा हुई, फिर उन्होंने अपने शहद की खुद ही मार्केटिग शुरु की। अब अपना शहद स्वयं तैयार कर दिल्ली, करनाल, सिरसा, भिवानी, कैथल, जींद के व्यापारी लेकर जाते है। जिससे उन्हें अच्छा भाव मिल जाता है। शहद की खासियत ये है कि जैविक शहद तैयार करते है। पूरा पका होने के बाद ही शहद को बक्से से निकालते है। किसान ने बताया कि शुरूआत में साइकिल पर शहद बेचकर काम धंधा शुरू किया था। आमदनी में इजाफा हुआ तो अब एक पिकअप गाड़ी अपनी शहद की कमाई से खरीदी है। वर्जन-

काफी समय से फकीर चंद मुधमक्खी का पालन कर रहे है। खेती के साथ-साथ अतिरिक्त कमाई किसान शहद के बक्से रखकर कर सकता है। किसानों का रूझान शहद की तरफ बढ़ा है। सरकार समय-समय पर सब्सिडी दे रही है।

-रमेश चंद्र, मुख्य विज्ञान केंद्र समन्वयक।

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