कस्बे का कृषि रकबा इस बार ओढ़ेगा पीली चादर, पहले से दोगुणा होगा सरसों का रकबा : डा. रामेश्वर
कस्बे का कृषि रकबा इस बार सरसों के फूलों से महकेगा। पिछले वर्ष किसानों ने 450 हेक्टेयर में सरसों की बिजाई की थी। इस बार इसका क्षेत्र बढ़कर 750 हेक्टेयर पर पहुंच गया है।
संवाद सहयोगी, कलायत : कस्बे का कृषि रकबा इस बार सरसों के फूलों से महकेगा। पिछले वर्ष किसानों ने 450 हेक्टेयर में सरसों की बिजाई की थी। इस बार इसका क्षेत्र बढ़कर 750 हेक्टेयर पर पहुंच गया है। सरसों की तरफ किसानों का रुख बढ़ने का मुख्य कारण सरसों के तेल के दामों में वृद्धि और 4650 रुपये एमएसपी माना जा रहा है। निजी क्षेत्र में इसके भाव 5500 से 6000 रुपये तक पहुंच रहे हैं। इस फसल को तैयार करने में अपेक्षाकृत खर्च कम रहता है। खंड कृषि अधिकारी डा. रामेश्वर श्योकंद ने बताया कि सरसों की उन्नत खेती के लिए चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार ने आरएच 749 और 725 को प्रमाणित किया है। इसके अलावा निजी क्षेत्र में भी सरसों की कई किस्में बाजार में आई हैं। सरसों की फसल को तैयार करने के लिए केवल दो बार पानी लगाने की आवश्यकता है। पहला पानी सरसों के पौधे पर फूल और दूसरा फली आने पर दिया जाता है। अनावश्यक सिचाई से किसान बचें। इसका फसल उत्पादन पर विपरीत असर रहता है।
बेहतर उत्पादन के लिए बिरला और तुड़ाई विधि को अपनाए किसान
सरसों की मशीन से की गई बिजाई में पौधों की दूरी अपेक्षाकृत कम रहती है। इसलिए कृषि विभाग के सुझाव अनुसार पौधों को एक दूसरे से दूरी पर विकसित करने के लिए बिरला विधि यानी के पौधों को अलग-अलग करना आवश्यक है। समय-समय पर सरसों की तुड़ाई से पौधों का विकास बढ़ता है। मधु मक्खियों के बाक्स रखने से सरसों के उत्पादन में बड़ी वृद्धि होती है। क्षेत्र में लोग रबी के सीजन में मुख्यत: गेहूं के उत्पादन के तरफ ज्यादा प्रेरित रहे हैं। कृषि विभाग भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए फसल चक्र अपनाने पर बल देता आया है।