कपिलमुनि की धरती से ओझल हो गई प्राचीन दृष्टवति नदी
कपिलमुनि की धरती सरस्वती और दृष्टवति नदी का प्रवाह क्षेत्र रही है। पिछले लंबे समय से सरकारें जल संकट से निपटने के लिए नदियों की तलाश में लगी हैं। वर्ष 2006 से श्री कपिल मुनि सरोवर में सरस्वती की जलधारा फूटने का सिलसिला जारी है।
संवाद सहयोगी, कलायत : कपिलमुनि की धरती सरस्वती और दृष्टवति नदी का प्रवाह क्षेत्र रही है। पिछले लंबे समय से सरकारें जल संकट से निपटने के लिए नदियों की तलाश में लगी हैं। वर्ष 2006 से श्री कपिल मुनि सरोवर में सरस्वती की जलधारा फूटने का सिलसिला जारी है। वैज्ञानिकों ने मौका स्थल का दौरा करते हुए इस बात की पुष्टि की थी कि रेतीले सुनहरी कणों के साथ सरोवर में फूटी जलधारा सरस्वती है। प्राचीन सरस्वती नदी के शोध के लिए कलायत में सेमिनार भी हुआ था, लेकिन नदी को विकसित करने का सपना अभी हकीकत में नहीं बदल पाया है।
दृष्टवति नदी का अस्तित्व इलाके में पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है। श्री कपिल मुनि धाम के पुजारी श्याम गौतम, कृष्ण गौतम और संजय शास्त्री बताते हैं कि कलायत के प्राचीन सरोवर तट पर सांख्य दर्शन प्रवर्तक भगवान कपिल मुनि ने अपनी माता देवहुति को सांख्य दर्शन का ज्ञान करवाया था। उस दौरान नदियों का प्रवाह क्षेत्र कलायत रहा।
सरस्वती और दृष्टवति के बीच हुआ महाभारत का धर्म युद्ध
सरस्वती और दृष्टवति के बीच के क्षेत्र को ही महाभारत युद्ध भूमि का संभाग माना जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार ²ष्टवति को मौसमी नदी का दर्जा हासिल है। उत्तरी भारत इसका प्रमुख प्रवाह क्षेत्र रहा है। सरस्वती नदी की अलग-अलग चार शाखाएं रही है जो अलग-अलग क्षेत्रों में बहती रही है। दृष्टवति इनमें से ही एक है। इसका संबंध राजस्थान के अजमेर के पास स्थित पुष्कर लेक से है।
दृष्टवति नदी तट पर हुई ऋग्वेद की रचना
दृष्टवति नदी तट पर ही अधिकांश आश्रम स्थापित थे। यहीं ऋषिमुनियों ने ऋग्वेद की रचना की। नदी का पानी हिसार स्थित बीहड़ में जाता था। श्री कपिल मुनि मंदिर के पुजारियों का कहना है कि कपिल मुनि सरोवर में वर्षों से सरस्वती की धारा फूटती आई है। कलायत को पूर्व में कपिलायत से जाना जाता था। महाभारत काल के अनुसार कुरू राज्य का दक्षिणी संभाग गुरू द्रोणाचार्य आश्रम तक था। वर्तमान में इस इलाके में गुरूग्राम, रोहतक और झज्जर शामिल हैं। उत्तरी भारत में दृष्टवति नदी का प्रवाह क्षेत्र करीब 200 किलोमीटर में फैला था। इस प्रकार के तथ्य वैज्ञानिकों को सरस्वती के साथ-साथ दृष्टवति को जीवित करने की मांग करते है।