सरकार की नीति के अनुसार कलायत में कुंभकारों को नहीं मिल पाई पांच एकड़ जमीन
दीपावली पर हर घर को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीप बनाने वाले कुंभकार समस्याओं के अंधकार से घिरे हैं। कलायत के कुंभकारों को आसपास बर्तन बनाने के लिए मिट्टी नहीं मिल पा रही है।
संवाद सहयोगी, कलायत : दीपावली पर हर घर को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीप बनाने वाले कुंभकार समस्याओं के अंधकार से घिरे हैं। कलायत के कुंभकारों को आसपास बर्तन बनाने के लिए मिट्टी नहीं मिल पा रही है। पंजावे की जमीन की व्यवस्था न होने के कारण कुंभकार घरों-गलियों में बर्तन बनाने को मजबूर हैं। कच्चे बर्तन पकाने के लिए घरों की छत और आंगन में व्यवस्था करनी पड़ती है। राधेश्याम प्रजापति, पूर्व पार्षद गुलाब सिंह, बोहती देवी, काला राम, कृष्ण का कहना है कि पहले प्राचीन श्री कपिल मुनि सरोवर से बर्तन बनाने के लिए आसानी से मिट्टी उपलब्ध हो जाती थी। सरोवर को पक्का करने के बाद अब मिट्टी की व्यवस्था नहीं हो पाती। ऐसे में मिट्टी के लिए लंबी जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसके चलते उनका मिट्टी बर्तन तैयार करने का पारंपरिक रोजगार संकट की मार झेल रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल निरंतर आत्म निर्भर अभियान के तहत स्व रोजगार को बढ़ावा देने की योजनाओं को प्रभावी बनाने पर बल देते आए हैं। जमीनी स्तर पर कहीं न कहीं इस प्रकार की योजनाओं को सुनिश्चित करने की दरकार है।
पांच एकड़ जमीन मुहैया करवाने की बनाई गई थी नीति
सरकार ने कुंभकारों के पारंपरिक कामकाज को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक गांव में पांच एकड़ जमीन उपलब्ध करवाने की नीति तैयार की थी। कुंभकारों को बर्तन बनाने के लिए मिट्टी हासिल करने, बर्तन सूखाने, बर्तन पकाने और संबंधित कार्य को कुशलता से पूरा करने के लिए घोषणा की थी। कलायत शहर के साथ-साथ लंबी फेहरिस्त ऐसे गांवों की है, जिनमें कुंभकारों को जमीन की दरकार है।
कुंभकारों के लिए सुविधा जरूरी : रानौलिया
हरियाणा माटी कला बोर्ड पूर्व चेयरमैन कर्ण रानौलिया ने कहा कि कुंभकारों के हित में सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं। इसके तहत जनसंख्या के आधार पर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करने वाले वर्ग को दो से पांच एकड़ तक जमीन ग्राम पंचायत और नगर पालिकाओं के माध्यम से उपलब्ध करवाने की नीति तय की गई। कलायत और अन्य गांवों में कुंभकारों को जमीन और जरूरी सुविधाओं के लिए उनके सतत प्रयास रहे हैं।