आचार, चटनी, मुरब्बा की ट्रेनिग ले महिलाएं बन रही स्वावलंबी

लगातार बढ़ रही आबादी से जहां नई-नई चुनौतियां सामने आ रही हैं जिनमें जनसंख्या नियोजन भी प्रमुख चुनौती है। आबादी बढ़ने के साथ ही रोजगार की समस्या भी उभरकर सामने आती है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Jan 2020 06:50 AM (IST) Updated:Thu, 02 Jan 2020 06:50 AM (IST)
आचार, चटनी, मुरब्बा की ट्रेनिग ले महिलाएं बन रही स्वावलंबी
आचार, चटनी, मुरब्बा की ट्रेनिग ले महिलाएं बन रही स्वावलंबी

प्रदीप घोघड़ियां, जींद

लगातार बढ़ रही आबादी से जहां नई-नई चुनौतियां सामने आ रही हैं, जिनमें जनसंख्या नियोजन भी प्रमुख चुनौती है। आबादी बढ़ने के साथ ही रोजगार की समस्या भी उभरकर सामने आती है। जींद जिले की आबादी 14 लाख के करीब जा चुकी है और रोजगार के अवसर अपेक्षाकृत कम हैं। जींद में बागवानी का फूड एंड टेक्नोलॉजिस्ट विभाग जनसंख्या नियोजन में अहम भूमिका निभा रहा है। इस विभाग में हर साल 1200 महिलाओं को रोजगार के काबिल बनाया जा रहा है। विभाग द्वारा महिलाओं को छोटे घरेलू उत्पादों की ट्रेनिग दी जा रही है, ताकि महिलाएं खुद का कामधंधा स्थापित कर सकें।

प्रदेश के केवल तीन जिलों जींद, सफीदों, कुरुक्षेत्र में ही फूड एंड टेक्नोलॉजिस्ट विभाग हैं, जहां महिलाओं को स्वरोजगार की ट्रेनिग दी जाती है। जींद में बस अड्डे के सामने स्थित बागवानी विभाग के तहत काम करने वाले फूड एंड टेक्नोलोजिस्ट विभाग में महिलाओं को चार दिवसीय ट्रेनिग दी जाती है। यहां पर महिलाओं को आचार, चटनी, मुरब्बा, जैम, शॉस जैसे छोटे घरेलू उत्पाद बनाने सिखाए जाते हैं। चार दिनों तक महिलाओं को सुबह 10 से शाम 4 बजे तक सैद्धांतिक और प्रेक्टिकली घरेलू उत्पाद बनाने की विधि के बारे में बारीकी से समझाया जाता है।

हर महीने 100 महिलाएं हो रही घरेलू उत्पाद बनाने में दक्ष

फूड एंड टेक्नोलॉजिस्ट विभाग में ट्रेनिग कर हर महीने 100 महिलाएं घरेलू उत्पाद बनाने में दक्षता हासिल कर रही हैं। इसके बाद यह महिलाएं अगर चाहें तो लघु उद्योग स्थापित कर अपना खुद का कामधंधा शुरू कर सकती हैं। जींद के फूड एंड टेक्नोलॉजिस्ट विभाग ने साल 2018-19 सत्र में 825 महिलाओं को स्वरोजगार की ट्रेनिग दी थी और 2019-20 के लिए 1200 महिलाओं को ट्रेनिग देने का टारगेट मिला है। विभाग द्वारा अब तक 925 महिलाओं को ट्रेनिग दी जा चुकी है और मार्च-अप्रैल तक 275 महिलाओं को और ट्रेनिग दी जाएगी।

आंगनबाड़ी वर्कर्स, आशा वर्कस की मदद से किए जाते हैं बैच तैयार

महिलाओं को ट्रेनिग देने वाले ट्रेनर अमित का कहना है कि गांवों से जो महिलाएं ट्रेनिग के लिए पहुंचती हैं, इनमें 25 महिलाओं का एक बैच होता है। बैच तैयार करने के लिए आंगनबाड़ी वर्कर्स और आशा वर्कर्स तथा दूसरे समाज सेवियों की मदद ली जाती है। ट्रेनिग के अंतिम दिन महिलाओं को सर्टिफिकेट और एक गिफ्ट भी दिया जाता है।

ट्रोसपोर्ट का किराया भी विभाग द्वारा किया जाता है वहन

फूड एंड टेक्नोलॉजिस्ट डॉ. रविद्र ढांडा ने कहा कि जो भी महिलाएं ट्रेनिग ले रही हैं, उनका ट्रांसपोर्ट से लेकर चाय, पानी का खर्च भी विभाग द्वारा ही वहन किया जाता है। रविद्र ढांडा ने बताया कि विभाग द्वारा ज्यादा से ज्यादा 50 रुपये तक किराए के रूप में दिया जाता है। ट्रेनिग ले रही महिलाओं को दिन में लंच, चाय, स्नेक्स भी विभाग द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है। हर साल 1200 महिलाएं ट्रेनिग लेती हैं, जिनमें से 200 से ज्यादा महिलाएं खुद का लघु उद्योग या रोजगार स्थापित करती हैं, बाकी महिलाएं अपने घर में ही इन उत्पादों को बनाती हैं।

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