कोरोना काल में बेसहारों का सहारा बनी असमर्थ महिला कल्याण समिति

कोरोना काल के शुरुआती दिनों में लॉकडाउन का समय उन लोगों के लिए काफी कष्टदायी था जिनके पास रोजी-रोटी का कोई सहारा नहीं था।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Jan 2021 09:00 AM (IST) Updated:Tue, 26 Jan 2021 09:00 AM (IST)
कोरोना काल में बेसहारों का सहारा बनी असमर्थ महिला कल्याण समिति
कोरोना काल में बेसहारों का सहारा बनी असमर्थ महिला कल्याण समिति

कर्मपाल गिल, जींद

कोरोना काल के शुरुआती दिनों में लॉकडाउन का समय उन लोगों के लिए काफी कष्टदायी था, जिनके पास रोजी-रोटी का कोई सहारा नहीं था। रोज कमाकर खाने वालों के सामने बड़ा संकट था। असमर्थ महिला कल्याण समिति ऐसे बेसहारा लोगों का सहारा बनी। समिति ने शहर और आसपास के 32 गांवों की 124 विधवा महिलाओं के घर जाकर एक-एक क्विटल अनाज दिया।

समिति के अध्यक्ष डा. धर्मदेव विद्यार्थी ने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में घर से बाहर निकलने की पाबंदी थी। उन हालात में विधवा महिलाओं के सामने बड़ा संकट था। घर में राशन की भी कमी थी। समिति के सदस्यों ने विधवा महिलाओं के घर जाकर राशन बांटने का फैसला लिया। जींद प्रशासन से अनुमति नहीं मिली तो सफीदों के एसडीएम मनदीप सिंह से मंजूरी ली। पिडारा में जरूरतमंद विधवा को अनाज देकर अभियान की शुरुआत की। इसके बाद गांव पिडारा, लोहचब, तलोड़ा, ढाठरथ, सिधवी खेड़ा, बराह, रामराय, ईक्कस, पोंकरी खेड़ी, अहिरका सहित 32 गांवों में 124 विधवा महिलाओं को अनाज दिया। इस अभियान में उनके अलावा संरक्षक पंडित रामनिवास, तेलूराम, राम सिंह सूबेदार, सुभाष बैरागी, सुलतान धीमान आदि शामिल रहे। इसके बाद दशहरे पर फिर 60 महिलाओं को एक-एक क्विटल गेहूं दिया। 50 महिलाओं को राजइयां बांटी। कुछ महिलाओं को चप्पल, तौलिये व अन्य जरूरत का सामान दिया। डा. विद्यार्थी ने बताया कि राशन बांटने के लिए 60 साल से ऊपर की उन विधवाओं का चयन किया था, जिनके पास आमदनी का कोई साधन नहीं था। समिति द्वारा पिछले 21 साल से हर वर्ष करीब 3 लाख रुपये का अनाज विधवाओं को बांटा जा रहा है। अनाज के अलावा चावल, मसाले, आलू, चप्पल आदि भी देते हैं।

21 साल से सेवा कर रही संस्था, 1 क्विंटल गेहूं से बनाते हैं मेंबर

डा. धर्मदेव विद्यार्थी ने बताया कि असमर्थ महिला कल्याण समिति वर्ष 2000 से विधवा व जरूरतमंद महिलाओं की मदद के लिए काम कर रही है। यह ऐसी अनोखी संस्था है, जिसमें नकद रुपये लेने के बजाय सिर्फ एक क्विटल गेहूं लेकर सदस्य बनाया जाता है। समाज के छोटे लोग इस संस्था से जुड़े हैं। जिस विधवा के पास आमदनी का कोई साधन नहीं है और बच्चों की उम्र 18 साल से कम है, समिति की तरफ से उनकी मदद की जाती है। उनके बच्चों की शिक्षा का भी प्रबंध किया जा रहा है। करीब 100 विधवा महिलाओं की बेटियों की शादी भी करवा चुके हैं। हर साल दो बार दशहरे व मई में एक-एक क्विटल अनाज देते हैं। अब तक 3060 महिलाओं की मदद कर चुके हैं।

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