बड़े व्यापारी की जेब में जा रहा पैसा, किसान के उत्पादों के पिटने लगे दाम

दिल्ली सहित अन्य बाहरी केंद्रों से आने वाले माल में व्यापारियों ने दाम इस हद तक बढ़ा दिए है कि सब्जी मंडी में खरीदारी करने वाले लोगों का दम निकलने लगा हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 07:00 AM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 07:00 AM (IST)
बड़े व्यापारी की जेब में जा रहा पैसा, किसान के उत्पादों के पिटने लगे दाम
बड़े व्यापारी की जेब में जा रहा पैसा, किसान के उत्पादों के पिटने लगे दाम

जागरण संवाददाता, झज्जर :

दिल्ली सहित अन्य बाहरी केंद्रों से आने वाले माल में व्यापारियों ने दाम इस हद तक बढ़ा दिए है कि सब्जी मंडी में खरीदारी करने वाले लोगों का दम निकलने लगा हैं। अच्छे ब्रांड की कीवी का एक पीस मंडी में ही 100 रुपये तक हो गया है। मौसमी थोक में 75 रुपये किलोग्राम, पपीता 80 रुपये किलो में बिक रहा है। मौजूदा समय में प्राय: हर घर में फ्रूट की डिमांड बढ़ी हैं। लेकिन, दाम कम नहीं हो रहे। इधर, लोकल किसान के सामान के दाम एक दफा फिर से पिटने लगे हैं। मंडी में टमाटर की क्रेट का दाम गिरने की वजह से मंडी में मात्र छह से सात रुपये किलो ग्राम तक बिक रहा हैं। तरबूज और खरबूजा के दाम भी काफी गिर गए हैं। आने वाले दिनों में किसान के स्तर पर और हालात खराब होते दिख रहे हैं। क्योंकि, लॉकडाउन लागू होने के बाद से सब्जी मंडी की व्यवस्था एक दफा फिर से चरमराने लगी है। किसान के उत्पादों के पिटने लगे दाम : लोकल उत्पादों की बात करें तो इन दिनों में टमाटर के दाम एकदम से जमीन पर आ गए हैं। क्योंकि, सप्लाई चेन के टूटने की वजह से बिक्री पर इसका असर पड़ा है। सुबह के समय में मंडी में आढ़तियों के बीच में लगने वाली बोली में किसान का उत्पाद 50 से 100 रुपये क्रेट तक बिक रहा है। जो कि मंडी की खुदरा बिक्री में छह से सात किलोग्राम तक बिकता है और फिर बाजार में इससे महंगा। जबकि, किसान की बात हो तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं आ रहा। हालांकि, जिला प्रशासन की ओर से ग्राहकों के लिए टमाटर की बिक्री का दाम दस से 15 रुपये किलोग्राम तक किया गया है। कुल मिलाकर, ऐसा ही हाल किसानों के अन्य उत्पादों के साथ देखने को मिल रहा है। मासाखोरों के हटने और बाजार के बंद रहने से बनी अव्यवस्था : मौजूदा समय में मंडी से मासाखोरों को हटाए जाने के बाद मंडी में आने वाले किसानों के उत्पादों की डिमांड पहले से कम हो गई हैं। जबकि, दिल्ली की मंडियों से जो उत्पाद आ रहे हैं, उनके दामों में किसी भी तरह की गिरावट नहीं हैं। खास तौर पर फल-फ्रूट। ऐसी स्थिति में स्थानीय मंडी में भी इस बात की चिता है कि बड़े व्यापारी की जेब में खूब पैसा जा रहा है। जिसकी सबसे अधिक मार आम आदमी और किसान पर पड़ी हैं।

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