Womens week special: झज्जर की डॉक्टर ने कोरोना काल में ब्लड बैंक में नहीं होने दी रक्त की कमी, दो दफा कैंसर को दे चुकीं मात

डा. इंद्रा हसीजा झज्जर ब्लड बैंक की प्रभारी हैं। पिछले साल रक्तदान शिविर लगाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन ब्लड की जरूरत बिल्कुल वैसे ही रही। पिछले काफी समय से तैयार किए गए डाटा की मदद से वालंटियर को ब्लड बैंक तक आमंत्रित किया गया।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Fri, 05 Mar 2021 04:44 PM (IST) Updated:Fri, 05 Mar 2021 04:44 PM (IST)
Womens week special: झज्जर की डॉक्टर ने कोरोना काल में ब्लड बैंक में नहीं होने दी रक्त की कमी, दो दफा कैंसर को दे चुकीं मात
कोरोना काल में डा. इंद्रा हसीजा को चिंता थी कि अस्पतालों में खून की कमी से कैसे निपटा जाए।

हिसार/ झज्जर [अमित पोपली]। कोरोना के डर से एक समय पर हर व्यक्ति अपने घर पर था। हालात देखते हुए रक्तदान शिविर तक लगाने की अनुमति नहीं थी। विषम परिस्थिति के इस दौर में भी डिमांड की कमी नहीं हो रही थी। झज्जर ब्लड बैंक प्रभारी डा. इंद्रा हसीजा और टीम को यह चिंता थी कि अस्पतालों में खून की कमी से कैसे निपटा जाए। सुखद बाद यह रही कि झज्जर ब्लड बैंक की टीम ने पूरे प्रदेश में शानदार प्रदर्शन कर दिखाया। पिछले मार्च से अभी तक 3800 से करीब चार हजार तक यूनिट वालंटियर की मदद से एकत्र की गई है। एक कॉल की दूरी पर रहने वाले वालंटियर ने हमेशा जरूरत के हिसाब से ब्लड बैंक में 100 फीसद सहयोग दिया। कुल मिलाकर, एक दिन भी किसी भी ब्लड ग्रुप की ब्लड बैंक में शॉर्टेज नहीं हुई। डा. इंद्रा हसीजा की टीम में 10 लोग है। जो कि हमेशा अपने कार्यों के लिए तैयार रहते है। ऐसे में जिला के रक्तदाताओं सहित ब्लड बैंक की टीम को एक थैंक्यू तो बनता ही है, जिनके कारण कोरोना के संक्रमण काल के दौरान भी रक्त की कमी नहीं हुईं। रक्तदान करने वालों में व्यापारी, वकील, समाजसेवी, अधिकारी और खुद लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टर, युवा, शिक्षक आदि शामिल हैं।

दो दफा दी कैंसर को मात, अब बचा रही लोगों की जिंदगी

ब्लड बैंक प्रभारी डा. इंद्रा हसीजा अपनी दृढ़ संकल्प शक्ति के बूते दो दफा कैंसर को मात दे चुकी हैं। पति डा. संजीव हसीजा वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी हैं। जिन्हें कोरोना काल में कोविड सेंटर का नोडल अधिकारी बनाया गया तो अब वह वैक्सीनेशन के नोडल अधिकारी है। बेटा अभिषेक कक्षा 9वीं का छात्र है। मुश्किल के इस दौर में चिकित्सक दंपति ने एक दिन भी ड्यूटी से अवकाश नहीं लिया। ब्लड बैंक की बात करें तो औसतन साल भर में शिविर लगाकर 3500 से चार हजार तक यूनिट रक्त एकत्र किया जाता है। क्योंकि, पिछले साल रक्तदान शिविर लगाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन, ब्लड की जरूरत बिल्कुल वैसे ही रही। पिछले काफी समय से तैयार किए गए डाटा की मदद से वालंटियर को ब्लड बैंक तक आमंत्रित किया गया। जिन्होंने प्रक्रिया का हिस्सा बनते हुए रक्तदान किया और हजारों जिंदगियों को नया जीवन दान दिया।

कमजोरी बनने की बजाय मजबूत हुआ बेटा अभिषेक

इधर, चिकित्सक दंपति का बेटा अभिषेक भी काफी मजबूत हो गया है। कक्षा 9 वीं में पढ़ने वाला अभिषेक मम्मी की किचन में मदद कराता है। मम्मी-पापा के घर पहुंचने से उनके खाने की तैयारी भी करवाकर रखता था। हालांकि, अभी वह अपनी परीक्षाओं की तैयारी में लगा हुआ है। लेकिन, माता-पिता के कार्य और उनकी कार्यशैली में बड़े बढ़िया ढंग से स्वयं को ढाल लिया है। जिस पर चिकित्सक दंपति को भी अपने बेटे पर नाज है।

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