क्या पहले सुना है, कपास फसल की लकड़ी से भी तैयार कर सकते हैं जैव संवर्धित खाद, मिलेगा फायदा
लकड़ी जलाने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। इसके साथ भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कमजोर होती है। कपास की लकड़ी से किसान अच्छी खाद भी तैयार कर सकते हैं। इससे किसानों को दो फायदे एक भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी। वहीं महंगे दामों पर रासायनिक खाद भी नहीं खरीदनी पड़ेगी।
जागरण संवाददाता, सिरसा : कपास की चुगाई के बाद किसान लकड़ी को जला देते हैं। इससे जहां पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। इसी के साथ भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कमजोर होती है। कपास की लकड़ी से किसान अच्छी खाद भी तैयार कर सकते हैं। इससे किसानों को दो फायदे एक भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी। वहीं महंगे दामों पर रासायनिक खाद भी नहीं खरीदनी पड़ेगी। प्रदेश में सबसे अधिक कपास की बिजाई सिरसा जिले में होती है। जिले में कपास की 2 लाख 8 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई होती है।
ये होते हैं तत्व
कपास की लकड़ी से तैयार खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम की मात्रा अधिक होती है। इस खाद का प्रयोग करने से लंबे समय तक इसका मिट्टी में असर रहता है। खाद पोषक तत्वों और पौधों को बढ़ावा देने वाले सूक्ष्म जीवों से समृद्ध होती है। गोबर की खाद की कमी को देखते हुए कपास की लकड़ी से तैयार खाद, मिट्टी की उर्वरता प्रबंधन के लिए एक व्यावहारिक समाधान है। खेत में ही कपास फसल के चक्र के प्रबंधन का कारगर तरीका है। उच्च गुणवत्ता वाले खाद की वजह से किसानों को अतिरिक्त आय होगी। क्योंकि रासायनिक खाद नहीं खरीदनी पड़ेगी। इससे सबसे बड़ा फायदा ये भी होगा कि कपास की लकड़ी जलने से बहुत प्रदूषण होता है। नरमा की लकड़ी से खाद बनाने से किसान जागरूक हो गये तो इससे प्रदूषण काफी कम हो जाएगा।
वैज्ञानिकों ने किया हुआ है शोध
केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान सिरसा के वैज्ञानिकों ने करीब चार साल पहले कपास की लकड़ी जैव संबंधित खाद पर शोध किया। इस खाद को तैयार करने के लिए 60 दिन का समय लगा। इसके बाद खाद का प्रयोग किया गया। जिस भूमि पर ये खाद डाली गई। वैज्ञानिक डा. हमीद हसन ने बताया कि कपास की लकड़ी के छोटी छोटी टूकड़ बना ले। इसके बाद इसमें कास्टिक सोडे गोबर के घोल को मिलाया जाता है। जीवाणु युक्त कल्चर को मिलाकर इसका ढेर बना दिया जाता है। इसके बाद पालीथीन से ढक दी जाती है। इसके बाद हर सप्ताह इसको पलटना होता है।