एक विवाह ऐसा भी... मानसिक दिव्यांगता को दी मात, अतीत याद नहीं, साथ गृहस्थ जीवन की शुरुआत

रोहतक अनोखी शादी का गवाह बना। यहां जनसेवा संस्थान में मानसिक दिव्यांगता को मात देकर जतिन और कविता ने नए जीवन की शुरुआत की। दोनों को अब भी अपना अतीत याद नहीं है। आश्रम में रहकर स्वस्थ हुए यहीं पर सेवा कार्य कर रहे हैं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 06:02 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 06:02 AM (IST)
एक विवाह ऐसा भी... मानसिक दिव्यांगता को दी मात, अतीत याद नहीं, साथ गृहस्थ जीवन की शुरुआत
जतिन और कविता को आशीर्वाद देते स्वामी डा. परमानंद, मनमोहन गोयल, उद्योगपति राजेश जैन।

रोहतक, केएस मोबिन। दोपहर के 12.30 बजे हैं। एक टेंट के नीचे किसी दावत की तैयारियां चल रही हैं। चंद कदमों पर मंडप सजा है। सेहरा पहने दूल्हा, पंडित जी का कहा सुन रहा है। आसपास 10-12 व्यक्ति बैठे हैं। अच्छी चहल-पहल है। सभी काफी खुश हैं।

नजारा, भिवानी रोड स्थित जनसेवा संस्थान का है। यहां आश्रित कविता और जतिन की शादी है। शहर के मौजिज लोग समारोह में शिरकत कर रहे हैं। मेयर मनमोहन गोयल, उद्योगपति राजेश जैन दूल्हा-दूल्हन को आशीर्वाद देने पहुंचे हैं। ग्रीन रोड निवासी कपड़ा व्यापारी सुशील मंगल ने पत्नी मीरा मंगल के साथ कन्या दान किया। संस्थान के संचालक स्वामी डा. परमानंद ने दूल्हे के पिता की रस्म निभाई। यह तीसरा मौका है जब संस्थान में ऐसी शादी हुई है।

अब भी याद नहीं अपना अतीत

जनसेवा संस्थान सही मायनों में बेसहारों का पुनर्वास कर रहा है। वीरवार को पिछले कई वर्षों से यहां आश्रित युवक-युवती की शादी कराई गई। यह शादी इस वजह से भी खास हैं क्योंकि जब दोनों को आश्रम लाया गया तो मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं थे। दोनों को अब भी अपना अतीत याद नहीं है। आश्रम में रहकर स्वस्थ हुए, यहीं पर सेवा कार्य कर रहे हैं। जतिन, आश्रितों की सेवा, वाशिंग मशीन आदि का कार्य करता है। कविता, रसोई के काम में हाथ बंटाती हैं।

चार साल पहले बहादुरगढ़ में मिला था जतिन

स्वामी डॉ. परमानंद ने बताया कि जतिन, चार वर्ष पहले बहादुरगढ़ में अस्त-व्यस्त हालात में मिला था। शारीरिक रूप से काफी कमजोर था। सिर्फ अपना नाम ही उसे याद था। कविता को रोहतक के आसपास के ग्रामीण आश्रम छोड़ गए थे। वह बहुत गुस्सैल थी। पत्थर मारने लगती थी। आश्रम में इलाज के बाद अब काफी हद तक दोनों मानसिक व शारीरिक तौर पर स्वस्थ हो चुके हैं। अब वे आश्रम में ही गृहस्थ जीवन बिताएंगे। नव जीवन की मंगल शुरुआत के लिए आश्रम में दोनों के हाथों से पौधारोपण कराया गया।

लक्ष्मण-सुनीता के दो बच्चे, पूरी तरह से स्वस्थ

जनसेवा संस्थान में माली का काम करने वाले लक्ष्मण की शादी सुनीता से हुई है। लक्ष्मण-सुनीता के दो बच्चे, छह वर्षीय कर्ण व पांच वर्षीय अर्जुन पूरी तरह से स्वस्थ हैं। सुनीता, को बातें समझने में थोड़ी देर लगती है पर बच्चों को अच्छे से संभालती हैं। यहां रसोई का काम करती है। लक्ष्मण ने बताया कि पानीपत में काम मजदूरी करते थे। एक हादसे में काफी चोट लगी। कोई जानने वाला नहीं था, किसी ने आश्रम पहुंचा दिया। यहां इलाज होकर पूरी तरह स्वस्थ हो गया। 10 वर्ष पहले स्वामी डा. परमानंद के कहने पर शादी की।

जानकी-पीयूष के लिए आश्रम ही पूरा संसार

थोड़ा ठहरकर बोल पा रहे 28 वर्षीय पीयूष ने बताया कि छह वर्ष की उम्र थी जब पिता उनको व बीमार मां को छोड़कर चले गए। पीलिया से मां की मृत्यु हो गई। जिसके बाद मामा उन्हें आश्रम में छोड़ गए। कभी-कभार मामा मिलने आ जाते हैं। यहां रहते 20 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं। आश्रम ही पूरा संसार है। यहां आश्रित 27 वर्षीय जानकी से उनका विवाह हुआ है। जानकी, थोड़े जिद्दी स्वभाव की है। तस्वीर खिंचवाना उसे पसंद नहीं। दोनों की पांच साल की बेटी तान्या है। पति-पत्नी आश्रम की रसोई के कार्य में मदद करते हैं।

आश्रितों की नहीं बन पा रही नई पहचान

जनसेवा संस्थान में ज्यादातर आश्रितों की पिछली पहचान ट्रेस नहीं हो पाने से नई पहचान भी नहीं बन पा रही। किसी का भी आधिकारिक पहचान पत्र नहीं है। स्वामी डा. परमानंद बताते हैं कि नए दस्तावेज बनवाने के लिए पुराने दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है। जोकि, किसी के पास नहीं है। ज्यादातर मानसिक दिव्यांग है, सही से खुद के बारे में बता भी नहीं पाते। हमारी कोशिश रहती है कि इन्हें आश्रम में ही सेवा कार्यों में लगाया जाए।

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