Tokyo Olympics: झज्जर के इस अखाड़े ने तराशे ओलंपियन पहलवान बजरंग और दीपक, कई पहलवानों ने यहां सीखे दाव-पेंच
झज्जर के छारा गांव में लाला दीवानचंद अखाड़ा है। इस अखाड़े ने देश को कई नामी पहलवान दिए हैं। दीपक और बजरंग ने बचपन में यहीं से कुश्ती के दाव-पेंच सीखे। तब शायद किसी को यह भान न था कि दोनों एक साथ ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे।
प्रदीप भारद्वाज, बहादुरगढ़। टोक्यो ओलंपिक में हर भारतीय के लिए पदक की उम्मीद बने पहलवान बजरंग पूनिया व दीपक पूनिया कभी झज्जर के एक ही अखाड़े में दाव-पेंच लड़ाते थे। यहां के बहादुरगढ़ के छारा गांव में स्थित लाला दीवान चंद अखाड़े ने ही इन दोनों पहलवानों को तराशा है। दोनों का बचपन यहीं पर अभ्यास करते हुए सफलता के परवान चढ़ा है।
इस अखाड़े ने देश-प्रदेश काे कई नामी पहलवान दिए हैं। बजरंग और दीपक को तो आज पूरी दुनिया जानती है। कुछ साल पहले तक जब दोनों झज्जर के इस अखाड़े के बाल पहलवानों में शामिल थे, तब शायद किसी को यह भान न था कि दोनों एक साथ ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। आज जब यह हकीकत है तो दोनों से देश को पदक की आस है।
बजरंग पूनिया झज्जर के गांव खुड्डन से हैं। दीपक पूनिया का गांव छारा है। दीपक का परिवार गांव में ही रहता है। बजरंग का परिवार फिलहाल सोनीपत में है। छारा में दाव-पेंच सीखने के बाद इन दोनों ने दिल्ली का रुख किया, लेकिन आज भी जब दोनों की उपलब्धियों काे गिना जाता है तो उसकी शुरुआत छारा के इसी अखाड़े से होती है। बजरंग जैसी प्रतिभा के बाद दीपक पूनिया सरीखा कुश्ती का सितारा यहीं से निकला। इस अखाड़े ने खूब नामी पहलवान दिए हैं। बाल्यकाल से दोनों यहां अभ्यास करके पदक जीतते रहे और आज ओलंपिक तक पहुंच गए।
अखाड़े में 2011 में बाल कुमार बने दीपक पूनिया। फोटो कोच वीरेंद्र आर्य ने उपलब्ध करवाए।
खेत के एक कोने से शुरू हुई थी व्यायामशाला
कभी छारा के इस अखाड़े की शुरुआत खेत के कोने में छोटी सी व्यायामशाला से हुई थी। वर्ष 1995 में कोच आर्य वीरेंद्र दलाल ने यह अखाड़ा शुरू किया था। बाद में उनकी लगन और गांव से खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को देखते हुई यह छोटी सी कोशिश सफल होने लगी। 1997 में लाला दीवान चंद कुश्ती एवं योगा केंद्र के नाम से संस्था रजिस्टर करवाई गई। उसी की देखरेख में यहां पर अखाड़ा शुरू हुआ। वर्ष 2003 में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने इस अखाड़े के परिणामों को देखकर इसे गोद ले लिया।
छारा के अखाड़े में बचपन में अभ्यास के दौरान ओलंपियन पहलवान दीपक पूनिया।
2004 में बजरंग को साई ने लिया था गोद
2004 में सबसे पहले भारतीय खेल प्राधिकरण ने आठ से 12 वर्ष के पहलवानों का यहां पर चयन किया और द्रोणाचार्य अवार्डी कोच ओमप्रकाश दहिया को यहां पर पहलवानों को गुर सिखाने के लिए तैनात किया। वर्ष 2004 में ही यहां के पहलवान बजरंग पूनिया को भी भारतीय खेल प्राधिकरण ने गोद लिया था। उसके बाद 2005 में दीपक पूनिया ने अखाड़े में प्रवेश पा लिया। कुछ समय बाद साई ने दीपक को भी गोद ले लिया था। यहीं से इन दोनों की कामयाबी की राह बनी। इसके बाद अनेकों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलवान यहां से निकलते रहे।
समय-समय पर अखाड़े में आते रहे हैं दोनों पहलवान
बीच-बीच में जब भी मौका मिला तो बजरंग और दीपक इस अखाड़े में पहुंचते रहे हैं और बाल पहलवानों को कुश्ती के गुर सिखाते रहे हैं। आज जब दोनों पहलवान देश के लिए पदक जीतने के इरादे के साथ मैट पर उतरने को तैयार हैं, तो सभी की नजरें उन पर टिकी हुई हैं। दोनों के मुकाबले अगस्त के पहले सप्ताह में होने हैं। दोनों के मुकाबले देखने के लिए खिलाड़ियों और कुश्ती प्रेमियों में जबरदस्त उत्साह है। दोनों के पहले कोच रहे वीरेंद्र आर्य कहते हैं कि सरकार सुविधाएं बढ़ाए तो और भी प्रतिभाएं निकल सकती हैं। उम्मीद है कि दोनों पहलवान देश के लिए पदक जीतेंगे।
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