Tokyo Olympics: मां के हाथ के पूड़े साथ लेकर गई हरियाणा की पहलवान सोनम, जीत के लिए पिता ने मांगी ये मन्‍नत

टोक्‍यो पहुंचने वाली सोनम पहलवान के पिता राजेंद्र को भी अपनी बेटी नाज है कहते हैं कि मैं बड़ा पहलवान नहीं बन सका अब बेटी ने ओलिंपिक में पहुंचकर मेडल की उम्मीद बढ़ा दी है। सोनम को आलू के परांठे दही मक्खन बेहद पसंद है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 10:36 AM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 10:36 AM (IST)
Tokyo Olympics: मां के हाथ के पूड़े साथ लेकर गई हरियाणा की पहलवान सोनम, जीत के लिए पिता ने मांगी ये मन्‍नत
पिता राजेंद्र नहीं बन सके बड़े पहलवान, ओलिंपिक में पहुंच पिता का सोनम ने किया सपना पूरा

अरुण शर्मा, रोहतक। इसे खेल के प्रति दीवानगी ही कहेंगे। 19 साल की महिला पहलवान सोनम मलिक करीब चार साल से रिश्तेदारियों से लेकर दूसरे सगे संबंधियों के यहां शादियों में भी शिरकत करने नहीं जा सकीं। सोनम की ननिहाल रोहतक के अजायब में है। वह सोनीपत के मदीना की रहने वाली हैं। 80 साल की चांदी देवी को इंतजार है कि सबकी लाडली सोनम मेडल जीतकर आएगी। फिर अपने ननिहाल जरूर आएगी। मां-पिता ने भी बेरी मंदिर में मन्नत मांग रखी है। बाहर का भोजन कम पसंद है। इसलिए सोनम टोक्यो जाते वक्त अपने मां के हाथों से तैयार पूड़े भी ले गईं।

पिता को भी अपनी बेटी नाज है कहते हैं कि मैं बड़ा पहलवान नहीं बन सका, अब बेटी ने ओलिंपिक में पहुंचकर मेडल की उम्मीद बढ़ा दी है। सोनम के पिता राजेंद्र 10वीं पास हैं। दो किले खेती है। बेटी को आलू के परांठे, दही, मक्खन बेहद पसंद है। इसलिए मां मीना दूध का इंतजाम सही से हो सके, घर पर भैंस रखती हैं। पहलवान बनने के पीछे की कहानी बताते हुए राजेंद्र ने कहा कि मैं भी शुरूआत से पहलवानी करता था।

सफल नहीं हो सका। अक्सर मन में यही बात सामने होती कि मैं मेडल क्यों नहीं ला सका। असफला के डर से बेटी और बेटे को खेलों से दूर रखने का मन था। हालांकि दोस्त अजमेर सेना से रिटायर होकर वापस लौटे। गांव में ही कुश्ती सिखाने एकेडमी खोली। एक बार दोस्त अजमेर ने कहा कि बेटी को मेरे पास ला। उस वक्त बेटी छठीं क्लास में पढ़ती थीं। फिर बेटी ने मुड़कर नहीं देखा। 10 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में शिरकत की और आठ बार मेडल लेकर लौंटी।

पहलवान सोनम मलिक के माता पिता जो रोहतक में दैनिक जागरण के सम्‍मान समारोह में पहुंचे थे

पिता बोले, ऐसा जज्बा है घुटने में असहनीय दर्द था फिर भी हार नहीं मानी

हर परिस्थिति से जूझने में माहिर सोनम के दो किस्से बताते हुए पिता भावुक हो गए। दैनिक जागरण के कार्यक्रम देश को जिताएगा हरियाणा में पिता राजेंद्र ने बेटी सोनम के जज्बे की कहानी सुनाई। ओलिंपिक में क्वालिफाई मुकाबले में कजाकिस्तान की पहलवान से मुकाबला था। घुटने में असहनीय दर्द था। कोच ने भी रोका कि अगली बार देखेंगे इस बार मुकाबले से बाहर हो जाओ। कोच ने खूब समझाने का प्रयास किया। चोट के बावजूद बेटी मैदान में फिर से लौटी और 9-6 से मुकाबला जीता। इसी तरह से साल 2012-2013 में कंधा चोटिल हुआ और एक से हाथ-बांह लटक गए। कुछ चिकित्सकों ने कह दिया कि अब हाथ ठीक नहीं होगा। रोहतक के एक निजी अस्पताल में इलाज चलता रहा, बेटी इस दौरान भी चिकित्सक की मनाही के बावजूद अभ्यास करती रहीं। 2015 में इसी जज्बे के दम पर गुजरात के गांधी नगर में 14 साल की उम्र में पहला मेडल लाकर इरादे जाहिर कद दिए थे।

चार बार साक्षी मलिक को हराया

रिओ ओलंपिक में मेडल जीतने वाली साक्षी मलिक को सोनम चार बार हरा चुकी हैं। चार जनवरी को लखनऊ में ट्रायल के दौरान हराया। दोबारा से 26 फरवरी 2020 को ट्रायल में पटखनी दी। उत्तर प्रदेश के आगरा में इस साल मुकाबले में हराया। लखनऊ में आयोजित हुए राष्ट्रीय कैंप में चौथी बार पटखनी दी। हालांकि सोनम आज भी साक्षी का बड़ी बहन की बराकर सम्मान करती हैं और उन्हें कुश्ती में आदर्श मानती हैं।

अपने साथ टोक्यो में दो किग्रा पूड़े लेकर गईं

बाहर का खाना सोनम को कम ही भाता है। इसलिए सोनम टोक्यो में जाते समय मां के हाथों से दो किमी पूड़े बनवाकर ले गईं। इन्होंने यह भी बताया कि बाहर का खाना कम खाना पड़े इसलिए पिता अक्सर साथ रहते हैं। वही रोटी, सब्जी तैयार करते हैं। यही कारण है कि शुगर मिल गोहाना में स्टोर ब्वाय की नौकरी में कम ही ध्यान दे पा रहे हैं। एक तरह से कहें तो पिता एक तरह से साए की तरह साथ रहते हैं। सोमन के बड़े भाई मोहित भी राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में कुश्ती लड़ चुके हैं।

पदक जीतने पर मां-पिता झज्जर के बेरी मंदिर में करेंगे दर्शन

पिता राजेंद्र कहते हैं कि बेटी पदक लाती है तो झज्जर के बेरी स्थित माता के मंदिर में जाएंगे और दर्शन करेंगे। एक लाख रुपये का दान भी करेंगे। गांव के मंदिर में भी पूजा-अर्चना करेंगे।

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