Tokyo Olympics: पिता टेलर, मां फैक्ट्री में करती थी मजदूरी, बेटी को बनाया भारतीय हॉकी टीम की डिफेंडर

भारतीय महिला हॉकी टीम की डिफेंडर निशा के संघर्ष की कहानी प्रेरणादायी है। सोनीपत के कालूपुर की रहने वाली हैं। पिता पैरालाइज हुए तो परिवार के खाने के लाले पड़ गए थे। जूते और किट खरीदने तक के पैसे नहीं थे। लेकिन संघर्ष नहीं छोड़ा।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 05:40 PM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 05:40 PM (IST)
Tokyo Olympics: पिता टेलर, मां फैक्ट्री में करती थी मजदूरी, बेटी को बनाया भारतीय हॉकी टीम की डिफेंडर
निशा को बेसन के लड्डू पसंद हैं। मां ने टोक्यो में लड्डू साथ भेजे हैं।

अरुण शर्मा, रोहतक। अपने संघर्ष के दम पर नए रास्ते खुद बनाए जाते हैं। सोनीपत के कालूपुर निवासी सोहराव अहमद की बेटी निशा वारसी ने भी अपने संघर्ष और जज्बे से कामयाबी की इबारत लिखी है। एक वक्त था जब टेलर पिता सोहराव के पास स्पोर्ट्स शूज व स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। अपने संघर्ष के दम पर नए मुकाम पाने वाली निशा के संघर्ष की कहानी से हर कोई प्रेरित है। साल 2016 में सोहराव को पैरालिसिस हुआ और चारपाई पर आ गए। आर्थिक तंगी इतनी सामने आई कि मां मेहरून फाम बनाने वाली फैक्ट्री में मजदूरी करने लगीं।

दैनिक जागरण के देश को जिताएगा हरियाणा कार्यक्रम में बुधवार को रोहतक शिरकत करने के लिए पहुंचे सोहराव ने संघर्ष के किस्से साझा किए। महिला हॉकी टीम की डिफेंडर निशा के पिता सोहराव कहते हैं कि पैरालिसिस हुआ तो परिवार भुखमरी के कगार पर आ गया। तीन बेटियों नगमा, साहिस्ता और निशा के साथ ही बेटे रेहान की परवरिश प्रभावित होने लगी। नगमा और साहिस्ता की बाद में शादी भी की। अल्लाह का शुक्रिया करते हुए सोहराव कहते हैं कि पैरालिसिस हुआ उसी के चार-पांच माह बाद ही बेटी निशा को खेल कोटे से रेलवे में क्लर्क पद पर नौकरी मिल गई। तभी से बेटी ही घर का जिम्मा संभाल रही है। बेटी ने अपनी मां से भी मजदूरी का काम बंद करा दिया। बेटी हॉकी में मेडल जीतकर लाएगी तो सोनीपत के बस अड्डे के निकट मामू-भांजे की दरगाह पर चादर चढ़ाएंगे। यह भी कहा कि बेटी को बेसन के लड्डू बेहद पसंद हैं। मां ने बेटी को टोक्यो में मेडल लाने की बात कहते हुए लड्डू भी साथ भेजे हैं।

 

रोहतक में दैनिक जागरण के देश को जिताएगा हरियाणा कार्यक्रम में पहुंचे निशा के पिता को सम्मानित किया गया।

अब ताने मारने वाले ही आते हैं बधाइया देने

अपनी बेटी के हाकी खेलने को लेकर कहा कि हमें तो पता ही नहीं था कि बेटी कब हॉकी खेलने लगी। बीए की छात्रा निशा सोनीपत के टीकाराम गल्र्स कालेज में अपनी सहेली नेहा गोयल के साथ अभ्यास करती रहती। इससे पहले भी स्कूल में हॉकी खेलती रहती। पिता का कहना है कि बेटी को मां ने आगे बढ़ाया। हर रोज स्टेडियम में अभ्यास कराने के लिए लेकर जाना। यह भी कहते हैं कि जो पहले ताने मारते थे वही बधाई देने घर आ रहे हैं। अब सबकी बोलती बंद हो चुकी है।

ननिहाल वालों ने पिता का कराया इलाज, बेटी को दिलाई किट

सोहराव कहते हैं कि पैरालिसिस के बाद स्वजन दुखी थे। निशा के खरखौदा स्थित ननिहाल वालों ने हौसला बढ़ाते हुए इलाज पर करीब आठ-नौ लाख रुपये खर्च किए। अभी भी एक हाथ काम नहीं करता और ठीक तरह से बात नहीं कर पाते। सोहराव ने साल 2006 का किस्सा सुनाया। बेटी को एक बार पंजाब में खेलने जाना था। पहली बार किसी बड़ी प्रतिस्पर्धा में खेलने बेटी जा रही थी, इसलिए स्पोर्ट्स शूज के अलावा किट की जरूरत थी। बेटी और स्वजनों का मन उदास था। सोहराव ने संकोच के साथ ससुराल वालों से मदद मांगी। उस वक्त भी बेटी को जूते, स्टिक और किट दिलाने के लिए 15 हजार रुपये भेजे। तब बेटी खेलने जा सकी।

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