Bhiwani News: लोहारू पहुंची हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम, बताया इन कारणों से आई ऊपज में कम

भिवानी के लोहारू क्षेत्र में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार से कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम पहुंची। इस दौरान वैज्ञानिकों ने किसानों मिट्टी से जुड़ी कई विशेष जानकारी उपलब्ध करवाई। साथ ही बताया कि कैसे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो रही।

By Naveen DalalEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 03:37 PM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 03:37 PM (IST)
Bhiwani News: लोहारू पहुंची हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम, बताया इन कारणों से आई ऊपज में कम
कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को दी जानकारी।

भिवानी/ढिगावा मंडी, जागरण संवाददाता। दुनिया में अनेकों प्रकार की मिट्टी है हर तरह की मिट्टी की एक खासियत होती है और उसमें उसके अनुरुप वाली ही फसलें उगती हैं। भिवानी के लोहारू क्षेत्र में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार से कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम पहुंच। इस दौरान डॉक्टर करमल मलिक ने बताया कि लोहारु क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि की उर्वरा शक्ति लगातार कम हो रही है।

हर साल होती है पानी व मिट्टी के नमूनों की जांच

भूमि में नाइट्रोजन, जिंक और फास्फोरस की मात्रा 190 फीसद होती है लेकिन मौजूदा समय में इस क्षेत्र में 108 से 110 फीसद की कमी दर्ज की गई है। हालांकि अच्छी उपज के लिए जरूरी अन्य तत्वों की स्थिति सामान्य है, लेकिन हमारी लापरवाही से इनमें भी कमी आने लगेगी और भूमि बंजर को होने में देर नहीं लगेगी। इस क्षेत्र की जल व मिट्टी जांच प्रयोगशाला में हर वर्ष मिट्टी और पानी के नमूनों की जांच की जाती है।

इन कारणों से फसलों की उपज में आई कमी

उसकी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 8 से 10 वर्षो में उर्वरा में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इसमें सबसे अधिक प्रभाव नाइट्रोजन, जिंक और फास्फोरस पर पड़ा है। इनमें तत्वों की क्षमता में 108 से 110 फीसद कमी आ गई है। इससे उर्वरा काफी कमजोर हो रही है, वहीं उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इसके लिए खेती में रासायनिक खाद, कीटनाशक व खरपतवार नाशक दवाओं के अधिक प्रयोग करने को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है। यहां की भूमि कपास की फसल के लिए उपयुक्त नहीं है।

क्या बरतें सावधानियां

1. खेतों में फसलों के अवशेष न जलाए।

2. अवशेष जलाने से भूमि के कीट मित्र मर जाते हैं।

3. कृषि वैज्ञानिकों से मिट्टी व पानी की नियमित जांच कराएं।

4. रसायनिक खाद के स्थान पर बायो व जैविक खाद का प्रयोग करें।

5. कीटनाशक व खरपतवार नाशकों का प्रयोग कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार करें।

मुख्य फसलें 

जिले में गेहूं, सरसों , कपास, दालें, सब्जी की पैदावार मुख्य रूप से होती है। इन फसलों के उत्पादन में पिछले पांच वर्षो में प्रति वर्ष 15 से 17 प्रतिशत कमी आ रही है। साथ ही पैदावार की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है। यही हाल रहा तो अगले पांच वर्षो में उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

डाक्टरों ने हाई ब्रीड बीज तैयार करने की दी सलाह 

डॉक्टर करमल मलिक ने बताया कि उर्वरा कम होने की वजह से कृषि विश्वविद्यालय चाहे कितने भी हाई ब्रीड के बीज तैयार कर ले., लेकिन उत्पादन पर प्रभाव निश्चित रूप से पड़ेगा। इसलिए उर्वरा को बढ़ाने के लिए खेतों में अधिक से अधिक हरी खाद डाली जानी चाहिए। इसके अलावा किसानों को गेहूं के बाद जेठाती मूंग व डेंचा बोना चाहिए। इसके लिए कृषि विभाग हर वर्ष सब्सिडी पर बीज देता है।

कपास की अच्छी पैदावार के लिए जलवायु और मिट्टी

कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल है और 21 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। कपास की अच्छी पौध वृद्धि के लिए बलुई दोमट एवं गहरी काली मिट्टी वाले ऐसे खेत जिसमें जीवांश की पर्याप्त मात्रा हो तथा बारानी दशाओं मे अच्छी पैदावार के लिए पर्याप्त जल संरक्षण के साथ उचित निकास की व्यवस्था हो, उपयुक्त रहते ही।

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