Stubble problem diagnosis: हरियाणा दो युवाओं का दर्द, पराली से बनाया कोयला मगर सरकार ने नहीं दिया ध्यान

हिसार के युवा विज्ञानी विजय श्योराण व मनोज नहरा ने फसल अवशेष और गोबर से फार्मर कोल तैयार किया था। जो सामान्य कोयले से अधिक ज्वलनशील है और अधिक समय तक चलता है। इस कोयले के आने से सामान्य कोयले की खपत कम होती मगर ध्‍यान नहीं दिया गया

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 05:28 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 05:28 PM (IST)
Stubble problem diagnosis: हरियाणा दो युवाओं का दर्द, पराली से बनाया कोयला मगर सरकार ने नहीं दिया ध्यान
पराली से कोयला बनाने के बावजूद इस प्रोजेक्‍ट पर ध्‍यान नहीं देने से दो युवा दुखी हैं

जागरण संवाददाता, हिसार। हरियाणा के दो युवाओं ने पराली का समाधान निकाला और प्रदेश से पराली की समस्या को खत्म करने का दावा भी किया मगर केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक ने युवाओं को बात नहीं सुनी अब युवा अपनी हिम्मत हारते दिख रहे हैं। दरअसल हिसार के युवा विज्ञानी विजय श्योराण व मनोज नहरा ने फसल अवशेष और गोबर से फार्मर कोल तैयार किया था। जो सामान्य कोयले से अधिक ज्वलनशील है और अधिक समय तक चलता है। इस कोयले के आने से सामान्य कोयले की खपत कम होती, पराली का समाधान भी निकलता।

इसके लिए इन युवा विज्ञानियों ने जो भी लैब में परीक्षण संभव थे वह सब कराए। जिसमें काेयला बनाने में सफल भी हुए। भट्ठों, ढाबों सहित जिन स्थानों पर कोयला प्रयोग होता है उन सभी स्थानों पर कोयला जलवाया जिसके सकारात्मक परिणाम है। युवा विज्ञानियों को उम्मीद थी कि सरकार उनके इस प्रोजेक्ट में मदद करेगी मगर सरकार ने कोई मदद नहीं की। लिहजा अब विज्ञान हिम्मत हार चुके हैं और आखिरी बार सरकार से उनके प्रयोग को कम से कम एक बार देखने के लिए कह रहे हैं।

सभी मंत्रालयों को लिखा मगर नहीं मिली प्रतिक्रिया

विज्ञानी विजय श्योराण व मनोज नहरा बताते हैं कि अपने इस प्रोजेक्ट को लेकर उन्होंने सभी मंत्रालयों को पत्र लिखा। दिल्ली के दर्जनों चक्कर काटे। मगर कोई भी समय नहीं देता। जब समय देते हैं तो फोन नहीं उठाते। युवा विज्ञानियों ने कहा कि सरकार पराली प्रबंधन के लिए करोड़ों रुपये की सब्सिडी मशीन खरीदने के लिए दे रही है, लाखों रुपये जागरुकता के नाम पर बहाए जा रहे हैं मगर जो प्रयोग पराली से मुक्ति दिला सकता है उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

विभागीय अधिकारी भी कहते हैं कल आना

युवा विज्ञानियों ने बताया कि जब वह विभागों में अपने प्रोजेक्ट को लेकर जाते हैं तो जवाब मिलता है कल आना, जब कल जाते हैं तो कहतें हैं हम कुछ नहीं कर सकते। अभी तक इस प्रोजेक्ट के लिए दोनों युवा अपने घर से पूंजी लगा रहे थे। मगर अब इस प्रोजेक्ट को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए उन्हें सरकार की मदद की दरकार है। उन्होंने कहा कि सरकार नए प्रयोगों पर गौर नहीं कर रही है जबकि दूसरी तरफ किसानों पर हर साल एफआईआर दर्ज कराई जा रही हैं। कम से कम उन्हें समाधान तो दिया जाए।

इस उद्देश्य से किया था प्रयोग

इस कोयले को तैयार करने वाले विज्ञानी विजय श्योराण व मनोज नहरा बताते हैं कि धान की फसल के बाद पराली को लेकर अभी तक सरकार व किसानों के बीच खींचतान रहती थी। किसानों को अगली फसल के लिए जमीन तैयार करने के लिए पराली जलाना फायदेमंद लगता था, वहीं सरकार पराली जलाने से होने वाले प्रदुषण को लेकर चिंतित थी। इसी समस्या को देखते हुए उन्होंने पराली प्रबंधन की दिशा में यह कदम उठाते हुए शोध कार्य किया और फॉर्मर कोल के रूप में एक अलग तरीके का कोयला तैयार किया है। उनके इस शोध में सुभाष गोयल का पूरा सहयोग रहा।

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