Rohtak historical well: 14वीं सदी का बंजारा वाला कुआं, दिल्ली व लाहौर के व्यापारियों का होता था पड़ाव

बंजारा वाला कुआं का इतिहास खास रहा है। यह गांव के बसने से पहले निर्मित है। कुएं का निर्माण 14वीं सदी के शुरुआती वर्षों में बंजारों (व्यापारियों) ने कराया था। दिल्ली और लाहौर के व्यापारी यहां रूककर कुएं के शीतल जल से कंठ को तृप्त करते थे।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Thu, 09 Sep 2021 09:02 AM (IST) Updated:Thu, 09 Sep 2021 09:02 AM (IST)
Rohtak historical well: 14वीं सदी का बंजारा वाला कुआं, दिल्ली व लाहौर के व्यापारियों का होता था पड़ाव
रोहतक में खरावड़ गांव बसने से पहले का है बंजारा वाला कुआं, दूर-दराज के व्यापारी बुझाते थे प्यास

केएस मोबिन, रोहतक : खरावड़ गांव का बंजारा वाला कुआं, अपने मीठे पानी के लिए आसपास के क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय था। आज अनदेखी के चलते कुआं अपनी पहचान खो चुका है। जिस जगह कभी महफिल सजती थी उसे वीरान हालत में छोड़ दिया गया है। 'बंजारा वाला कुआं' का इतिहास खास रहा है। यह गांव के बसने से पहले निर्मित है। कुएं का निर्माण 14वीं सदी के शुरुआती वर्षों में बंजारों (व्यापारियों) ने कराया था। दिल्ली और लाहौर के व्यापारी यहां रूककर कुएं के शीतल जल से कंठ को तृप्त करते थे।

गांव की पूर्व दिशा में स्थित इस कुएं का निर्माण बंजाराें के कराए जाने पर ही इसका नाम बंजारा वाला कुआं पड़ा। गांव के रिटायर्ड कैप्टन जगवीर मलिक बताते हैं कि पुराने समय में इस क्षेत्र में पीने के पानी के स्त्रोत कम हुआ करते थे। लोग जोहड़ (तालाब) के पानी पर ही निर्भर थे। किसी साल बरसात नहीं होने पर पीने के पानी के लाले पड़ जाते थे। कुआं, दिल्ली और लाहौर के व्यापारियों का पड़ाव हुआ करता था। लाहौर से हापुड़ व्यपार मार्ग पर यह कुआं स्थित था। व्यापारी समूह में ऊंटों व घोड़ा गाड़ी से चलते थे।

किसी एक व्यापारी समूह ने यहां कुएं का निर्माण कराया था। कुएं पर पानी की व्यवस्था होने से व्यापारी यहां रात्रि ठहराव करते थे। लाहौर से कसूरी मेथी, लाल मिर्ची व अन्य मसालों काे बेचने के लिए व्यापारी फिरोजपुर, डिब्बावली, हांसी, सिरसा, रोहतक, बहादुरगढ़ व दिल्ली के रास्ते हापुड़ को जाते थे। इसी तरह हापुड़ से गुड़, खांड व अन्य सामान लेकर इसी रास्ते दिल्ली व आसपास के क्षेत्र के व्यापारी लाहौर को प्रस्थान करते थे।

गांव के इतिहास को समेटे है कुआं

कैप्टन जगवीर ने बताया कि कि खरावड़ के साथ कारौर, नौनंद, गांधरा, चुलियाना व अन्य क्षेत्रों के लोग भी कुएं से पानी भरने को आते थे। गांव में बहुत कम ही ऐसे लोग हैं जिन्हें आज कुएं के सुनहरे इतिहास की जानकारी है। कुएं का जीर्णोद्धार के प्रति उदासीनता है। कुआं गावं के एक पूरे इतिहास को समेटे हुए है। नई पीढ़ी के युवाओं को कुओं के महत्व की जानकारी नहीं रही है। कुओं का गांव की परंपरा व रीति-रिवाजों से गहरा नाता होता हैं।

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