आपातकाल के वो दिन, थाने में माथे से बहने लगा खून तो घबरा गए थे पुलिसकर्मी
सिरसा निवासी ओमप्रकाश वधवा ने आपातकाल में सहे थे जुल्म। बिजली विभाग में करते थे नौकरी ड्यूटी के दौरान किया था गिरफ्तार।
सिरसा, [महेंद्र सिंह मेहरा]। 26 जून 1975। सिरसा में ट्रांसफार्मर पर चढ़कर लाइन ठीक कर रहा था। इसी दौरान साइकिल पर दो पुलिसकर्मी वहां आए और नीचे उतरने को कहा। मेरे नीचे उतरते ही कहा, थाने में चलो। थाने में ले पहुंचते ही मुझे उल्टा लेटा दिया। लकड़ी के रोलर पर दो पुलिस कर्मचारी चढ़ गये। जब पुलिस कर्मचारी चढ़े तो मैंने दर्द के मारे जोर से फर्श पर माथा दे मारा। इससे मेरे माथे पर खून बहने लगा। फर्श पर खून ही खून देखकर पुलिसकर्मी घबरा गये। मैं दर्द से चिल्लाने लगा। ये कहते हुए सिरसा के बाटा कॉलोनी निवासी ओमप्रकाश ने माथा पर हाथ रखकर दो मिनट के लिए चुपी साध ली। फिर लंबी सांस लेकर कहा, आपातकाल के दिनों में सही पीड़ा ताउम्र नहीं भूल सकता।
अधिकारी साथ न देते तो नौकरी भी जाती
ओमप्रकाश ने बताया कि उनका जन्म पंजुआना गांव में 1951 को हुआ। दसवीं कक्षा की परीक्षा पास करने के बाद आइटीआइ से डिप्लोमा किया। भारत-पाक के बीच 1971 की लड़ाई लड़ी गई। युद्ध के दौरान 1971 में वायु सेना में अस्थायी नौकरी मिली। जब लड़ाई खत्म हो गई तो बिजली विभाग में 1972 में टेक्नीशियन के पद नौकरी मिल गई। मैं जनसंघ से जुड़ा हुआ था। इसी को लेकर पुलिस कर्मचारी मेरे पीछे पड़े हुए थे। विभाग के अधिकारियों से लिखित में पूछताछ करने की बात कह पुलिस थाने ले गई थी, मगर थाने में लेकर जाकर बुरी तरह से पीटा गया। इस घटना के बाद विभागीय अधिकारियों मेरे पक्ष में आ गए। उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की और परिवार की भांति साथ दिया। डेढ़ महीने जेल के बाद मैं घर लौटा तो अगले दिन से ही मुझे नौकरी पर बुला लिया गया।
आज भी दिन है याद
आपातकाल के दौरान बहुत कष्ट झेलने पड़े थे। वह दिन आज भी याद हैं। अगर विभाग के अधिकारी साथ नहीं देते तो नौकरी पर भी खतरे में चली गई थी। मैं जेई के पद पर 2009 में रिटायर्ड हुआ।
ओमप्रकाश वधवा, सिरसा।