पेट्रोल-डीजल नहीं शिपिंग इंडस्ट्री ने किया बेहाल, इसलिए महंगाई बेकाबू, जानिए विशेषज्ञ क्या कहते हैं

इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टर व रोहतक के सेक्टर-1 निवासी सुमित भ्याना मानते हैं कि इस वक्त महंगाई की चपेट में भारत ही नहीं बल्कि विश्व है। जल्द ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसे नहीं रोका गया तो इसके दूरगामी परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 05:45 PM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 05:45 PM (IST)
पेट्रोल-डीजल नहीं शिपिंग इंडस्ट्री ने किया बेहाल, इसलिए महंगाई बेकाबू, जानिए विशेषज्ञ क्या कहते हैं
भारत में शिपिंग इंडस्ट्री के कारण बढ़ी महंगाई- एक्सपर्ट।

अरुण शर्मा, रोहतक। बढ़ती महंगाई को लेकर हर ओर चर्चा है। पेट्रोल-डीजल को इसके लिए जिम्मेदार ठहराकर सरकार की घेरेबंदी हो रही है। हालांकि शिपिंग कारोबारी महंगाई के लिए अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टर मानकर चल रहे हैं कि शिपिंग इंडस्ट्री में कुछ देशों के अप्रत्यक्ष दखल को विश्व अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। दरअसल, दूसरे लाकडाउन खुलने के बाद से अभी तक शिपिंग इंडस्ट्री में आठ से दस गुना तक माल ढुलाई बढ़ने से विश्व बाजार में खलबली मचाकर रख दी है।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसे रोकना जरूरी

इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टर व रोहतक के सेक्टर-1 निवासी सुमित भ्याना मानते हैं कि इस वक्त महंगाई की चपेट में भारत ही नहीं बल्कि विश्व है। जल्द ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसे नहीं रोका गया तो इसके दूरगामी परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इसे "ट्रेड वार'''' के रूप में भी देखा जा रहा है। इन्होंने बताया कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बाद बाजार खुले। कारोबार पटरी पर लौटे तो अचानक उत्पादों की डिमांड बढ़ी। उत्पादन की तुलना में आपूर्ति कम होने के लिए शिपिंग इंडस्ट्री बड़ी बाधा बन गई। दरअसल, पहले अमेरिकी देशों में 40 फुट वाले कंटेनर की ढुलाई पर दो से ढाई लाख रुपये का खर्चा आ रहा था। अब यही खर्चा बढ़कर 20 से 22 लाख रुपये हो गया है। दूसरे देशों की माल ढुलाई में भी भारी उछाल आया है।

चीन के बाद हमारे देश में साउथ एशिया के पांच देशों वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया व सिंगापुर से सर्वाधिक आयात-निर्यात होता है। यहां से रोजमर्रा के उपयोग वाली वस्तुएं, दवाएं, सजावटी सामान, फर्नीचर, कपड़ा, स्टील के कच्चे माल के साथ ही तैयार उत्पादों का आयात-निर्यात होता है। पहले इन देशों से माल मंगाने और भेजने में 40 फुट वाले कंटेनर के लिए चार से साढ़े पांच लाख रुपये तक का खर्चा आता था। अब माल ढुलाई चीन के बराबर यानी सात से आठ लाख रुपये तक हो चुकी है। विश्व के ज्यादातर देशों में आयात-निर्यात के लिए माल ढुलाई के लिए स्पेस भी नहीं मिल रहा, इसलिए चीन आर्डर बढ़ाता जा रहा है। कारोबारी कहते हैं कि चीन की इसे चालाकी कहें या फिर कोई बड़ी साजिश, लेकिन इससे भविष्य में अर्थव्यवस्था के लिए यह शुभ संकेत नहीं।

शिपिंग इंडस्ट्री में लीज ने किया बेड़ागर्क

कोविड-2019 की पहली लहर आते ही शिपिंग इंडस्ट्री में इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टरों व शिपिंग इंडस्ट्री की लीज खत्म करनी पड़ीं। कोरोना की पहली और दूसरी लहर का असर कम हुआ तो फिर से लीज के लिए संपर्क किया। शिपिंग इंडस्ट्री संचालकों ने स्पेस की मनमानी से लेकर लीज के दामों में कई गुना इजाफा कर दिया। मुंह-मांगे दामों में लीज पाने वाले इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टरों को महंगे दामों में माल ढुलाई का विकल्प मिला। दूसरी ओर, चीन और पांच एशिया के देशों की माल ढुलाई बराबर हो गई। शिप में स्पेस की वरीयता चीन को मिलने के कारण इस मजबूरी का फायदा यह देश उठा रहा है।

उत्पादन के साथ ही माल ढुलाई ने बढ़ाई लागत

कारोबारी मानते हैं कि माल ढुलाई ने सभी उत्पादों की लागत कई गुना बढ़ा दी है। एलपीएस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश जैन कहते हैं कि शिपिंग इंडस्ट्री ने उद्यमियों के लिए मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। मुंबई से न्यूयार्क तक दो हजार डालर का खर्चा था, जोकि अब नौ हजार डालर से अधिक है। स्पेस न मिलने के कारण आयात-निर्यात में पसीने छूट रहे हैं। कुछ कारोबारी कहते हैं कि चीन ने शिपिंग इंडस्ट्री पर अप्रत्यक्ष तौर से कब्जा कर लिया है, इसलिए भी मनमानी चल रही है।

दूसरे देशों के माल समुद्र में तैर रहे, सिर्फ चीन को ही मिल रहा स्पेस

विश्व की अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की पटकथा सुनियोजित मानी जा रही है। कारोबारी मानते हैं कि चाइना को पहले से ही भनक थी, इसलिए उसने पिछले कई माह से माल फस्र्ट फ्लाइट यानी महंगे दामों पर माल ढुलाई की बुकिंग करा दी। इससे चंद दिनों के अंदर ही माल पहुंच जाता था। दूसरे देशों को महंगाई के तूफान की आहट नहीं थी। इसलिए अभी तक कई देशों का माल समुद्र के अंदर जहाजों में हैं। अब चीन मुंह-मांगे रेट में माल बेच रहा है। यह भी महंगाई की वजह है।

यह बोले एक्सपर्ट

1. कर विशेषज्ञ अशोक कुमार जांगड़ा बताते हैं कि शिपिंग कारोबार में भाड़ा बढ़ने से देश की इंडस्ट्री व दूसरे सभी सेक्टरों पर ट्रांसपोर्टेशन का बोझ बढ़ गया है। इससे उत्पादन की लागत भी बढ़ गई है, इस वजह से भी महंगाई पर काबू पाना मुश्किल है। जनता को स्वयं की आमदनी बढ़ाने के लिए अतिरिक्त स्रोत मजबूत करने होंगे। इसके साथ ही लोगों को अपने खर्चों पर भी नियंत्रण करने और बचत की आदत भी हमेशा के लिए डालनी होगी।

2. सीए रामानुजन शर्मा ने बताया कि महंगाई के लिए शिपिंग कारोबार के साथ कुछ अन्य भी कारण हैं। जैसे चीन-पाकिस्तान से तनाव के चलते सुरक्षा पर हमारा खर्चा अधिक बढ़ रहा है। बैंकिंग सेक्टर में ब्याज रेट करीब छह फीसद हैं। इसलिए लोग फिक्स डिपोजिट के बजाय दूसरे सेक्टरों जैसे रीयल एस्टेट व सोने-चांदी, शेयर मार्केट में निवेश कर रहे हैं। इससे इन सेक्टरों में लगातार महंगाई है। त्योहारी सीजन में क्रेडिट कार्ड का उपयोग व गिफ्ट परंपरा के चलते लोग बचत पर ध्यान नहीं दे रहे। यह भी बेवजह के खर्चे होते हैं। यदि हम चीन से निर्मित उत्पाद न खरीदें, इससे हमारी प्रत्येक इंडस्ट्री को फायदा होगा। माल ढुलाई का बोझ भी कम होगा।

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