Parali Problem Haryana: पंजाब की तुलना में हरियाणा में कम जली पराली, फिर भी आंकड़े फुला रहे दम

हरियाणा प्रदेश पराली जलने के मामलों को कम करने में सफल रहा है। मगर यह आंकड़े इतने भी कम नहीं हुए कि निश्चिंत हो सके। पिछले साल जब कोविड में प्रदेश में आक्सीजन की किल्लत थी तब भी खेलों में फसल अवशेष जलने के मामले सामने आ रहे थे।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Thu, 30 Sep 2021 01:45 PM (IST) Updated:Thu, 30 Sep 2021 01:45 PM (IST)
Parali Problem Haryana: पंजाब की तुलना में हरियाणा में कम जली पराली, फिर भी आंकड़े फुला रहे दम
जागरुकता और सख्त मानीटरिंग के कारण हरियाणा प्रदेश में पराली जलाने के मामले हुए कम

जागरण संवाददाता, हिसार। जागरुकता और मानीटरिंग के बल पर हरियाणा प्रदेश पराली जलने के मामलों को कम करने में सफल रहा है। मगर यह आंकड़े इतने भी कम नहीं हुए कि निश्चिंत होया जा सके। पिछले साल जब कोविड के प्रदेश जूझ रहा था, आक्सीजन की किल्लत हो रही थी तब भी खेलों में फसल अवशेष जलने के एक दो नहीं बल्कि हजारों में मामले सामने आ रहे थे। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पराली सीजन शुरू होने के 36 दिनों के भीतर ही हरियाणा में 5467 से अधिक एक्टिव फायर लोकेशन सेटेलाइट ने चिन्हित की थी।

इसका असर यह हुआ कि प्रदेश के 14 शहरों में पराली के प्रदूषण के कारण एयर क्वालिटी इंडेक्स 600 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर से भी अधिक चला गया था। जिसने स्माग बनाया, लोगों को सांस लेने में तकलीफ हुई। इसके साथ ही स्माग ने तापमान को भी प्रभावित करने का काम किया। सबसे अधिक फसल अवशेष में आग के मामले कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला में दर्ज किए जा रहे थे। वहीं चरखीदादरी, नूंह, गुरुग्राम, रेवाड़ी में मामले काफी कम थे। इस बार भी जागरुकता और मानीटरिंग से सख्ती की गई तो पराली जलाने के मामलों में कमी लाई जा सकती है।

पराली जलाने के मामलों में कमी आने का यह है कारण

पिछले कुछ वर्षों में पराली जलने के मामलों में कमी आई है। इसका प्रमुख कारण है कि विभिन्न जिलों में प्रशासन ने कई विभागों को मिलाकर जिला स्तर से लेकर ब्लाक स्तर पर अधिकारियों की टीमें बनाकर सीजन शुरू होने से पहले ही जागरुकता और फिर मानीटरिंग का काम पुरजोर तरीके से किया गया। इसमें हिसार की 308 पंचायतों को शामिल किया गया, जहां चार से पांच गांवों का एक कलस्टर बनाकर वहां कृषि विभाग या जिस पंचायत विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई। सीजन से पहले जो जागरुकता अभियान चलाया गया उसमें इस बात पर जोर दिया कि किसान पराली को जमीन में दबाएं ताकि डी कंपोज होकर वह खाद के रूप में बदल सके। हुआ भी यही, किसान अधिक से अधिक पराली को जमीन में दबा रहे हैं। इस काम में उन्हें फायदा हुआ।

पराली जलाने के बताए नुकसान

गांवों में किसानों को पराली से नुकसान बताए गए। जिसमें बताया कि पराली से वायु प्रदूषण तो फैलता है साथ ही आग की चपेट में आकर कोई झुलस सकता है, बड़े पेड़ों को नुकसान होता है, जमीन की पानी रखने की क्षमता कम हो जाती है, भूमि में पाए जाने वाले मित्र कीट मर जाते हैं, भूमि अनुपजाऊ होने के कगार पर पहुंच जाती है।

पराली जलाना कानूनी अपराध

धान की पराली जलाना गैर कानूनी है। खेतों में पराली जलाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। नियमों के अनुसार पहली बार पराली जलाने पर चेतावनी पर छोड़ा जा सकता है। अगर किसान दूसरी बार ऐसा करता पाया जाता है तो जुर्माना लगाया जा सकता है। पराली जलाने पर बार-बार शिकायतें मिलने पर पर्यावरण एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाने का प्रावधान भी है। इसके लिए कृषि विभाग, प्रशासनिक अधिकारी, तहसीलदार इत्यादि को कार्यवाही के लिए पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं।

2018- 19 में यह थी हरियाणा में पराली की स्थिति

वर्ष 2018-19 में हरियाणा, पंजाब के मुकाबले पराली जलने से रोकने में करीब 10 फीसद कामयाब रहा था। वर्ष 2018 में पंजाब में 27,584 लोकेशन ताे हरियाणा में 5668 स्थानों पर खेतों में आग लगी पाई गई थी। यह आंकड़ा 25 सितंबर से लेकर 4 नवंबर तक का है। वहीं वर्ष 2019 में सीजन शुरू होने के बाद 41 दिन तक हरियाणा में कुल 4817 स्थानों पर एक्टिव फायर लोकेशन मिली थी जबकि पंजाब में 32388 स्थानों पर आग लगी। पंजाब में पराली जलने से आए धुंए ने हरियाणा को भी प्रभावित किया।

धान की पराली जलाने से होने वाले नुकसान

- एक टन धान की पराली जलाने से हवा में तीन किलो ग्राम, कार्बन कण, 513 किलो ग्राम, कार्बनडाई-आक्साइड, 92 किलो ग्राम, कार्बनमोनो- आक्साइड, 3.83 किलोग्राम, नाइट्रस-आक्साइड, दो से सात किलो ग्राम, मीथेन, 250 किलो ग्राम राख घुल जाती है।

- धान की पराली जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, मुख्यतः वायु अधिक प्रदूषित होती है। वायु में उपस्थित धुंए से आंखों में जलन एवं सांस लेने में दिक्कत होती है। प्रदूषित कणों के कारण खांसी, अस्थमा जैसी बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। प्रदूषित वायु के कारण फेफड़ों में सूजन, संक्रमण, निमोनिया एवं दिल की बिमारियों सहित अन्य कई बिमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

- किसानों के पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता लगातार घट रही है। इस कारण भूमि में 80 फीसद तक नाईट्रोजन, सल्फर तथा 20 फीसद तक अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है। मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे फसलों में विभिन्न प्रकार की नई बिमारियां उत्पन्न हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जल धारण क्षमता में कमी आ रही है।

- एक टन धान की पराली जलाने से 5.5 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फॉस्फोरस और 1.2 किलो ग्राम सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

इस प्रकार पराली से आय भी कर सकते हैं किसान

- धान की पराली के छोटे-छोटे गोले बनाकर, ईंट के भट्ठों और बिजली पैदा करने वाले प्लांट को बेचा जा सकता है, जिससे कोयले की बचत होगी तथा किसान 1000 से 1500 रूपए प्रति टन के हिसाब से कमा सकते हैं।

- पराली से बायोगैस बनायी जा सकती है, जो कि खाना बनाने के काम आ सकती है। पराली से जैविक खाद भी बनाई जा सकती है, यह न सिर्फ पैदावार को बढ़ाता है, बल्कि उर्वरक पर होने वाले खर्च को भी कम करता है।

- धान की पराली का उपयोग पशु चारे, मशरूम की खेती, कागज और गत्ता बनाने में, पैकेजिंग, सेनेटरी उद्योग इत्यादि में किया जा सकता है।

- धान की पराली का उपयोग हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च, चुकन्दर, शलगम, बैंगन, भिन्डी सहित अन्य सब्जियों में किया जा सकता है। मेंड़ों पर इन सब्जियों के बीज बोने के बाद पराली को मल्चिंग या पलवार कर (पराली को कुतर कर) ढक देने से पौधों को प्राकृतिक खाद मिलती है और ढके हुए हिस्से पर खरपतवार नहीं उगते हैं।

- अगर हैप्पी सीडर की मदद से पराली वाले खेत में ही गेहूं की सीधी बिजाई कर दी जाए तो पराली गेहूं में खाद का काम करती है, जिससे जमीन में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ेगी साथ ही मजदूरी की लागत भी कम आएगी और फसल लगभग 20 दिन अगेती भी हो जाती है।

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