National Pollution Control Day: फसलों के जलाए जा रहे अवशेष, कृषि विभाग और प्रशासन बना मूकदर्शक
फतेहाबाद में प्रदूषण फैलाने के नाम पर इतने औद्योगिक क्षेत्र नहीं है। यह भी सच है कि वन क्षेत्र भी 2 फीसद से कम है। ऐसे में कम संसाधन के बाद भी प्रदूषण का ग्राफ अधिक रहता है। इसकी बानगी बुधवार को दिख सकती है।
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद। 2 दिसंबर को हर साल राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। इस बार भी प्रदूषण कम करने के लिए कार्यक्रम खूब आयोजित हो रहे है। लेकिन जिले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कार्यालय तक नहीं है। ऐसे में प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई तक नहीं होती। जिले बनने के बाद बोर्ड ने अधिकारियों की नियुक्ति फतेहाबाद में नहीं की। अब लंबे समय बाद बोर्ड ने प्रदूषण मापने के लिए यंत्र लगाया है। जिसमें महज वायु गुणवत्ता का सूचक बताया जाता है।
वन क्षेत्र घटने के साथ नियंत्रण को लेकर सरकार की नीति व नियत में सुधार की जरूरत
दरअसल, जिले में प्रदूषण फैलाने के नाम पर इतने औद्योगिक क्षेत्र नहीं है। यह भी सच है कि वन क्षेत्र भी 2 फीसद से कम है। ऐसे में कम संसाधन के बाद भी प्रदूषण का ग्राफ अधिक रहता है। इसकी बानगी बुधवार को दिख सकती है। जब वायु गुणवत्ता का स्तर 155 के करीब रहा। जबकि अब फसल अवशेष जलाने के मामले कम आ रहे है। जिले में वन क्षेत्र का लगातार अभाव बना हुआ है। जो वाहनों के मुकाबले कम है। जिले में करीब ढाई लाख वाहन पंजीकृत है। इसके अलावा 11 लाख की आबादी। जबकि जिले का वन क्षेत्र महज 4500 हेक्टेयर में हैं। जबकि 2 लाख 52 हजार हेक्टेयर जिले में जमीन है। उसके मुकाबले वन क्षेत्र कम हो रहा है। इसे बढ़ाकर कम से कम 10 फीसद करने की जरूरत है।
फसल अवशेष जलाने से बढ़ता है प्रदूषण
जिले में प्रदूषण का ग्राफ फसल अवशेष जलाने से बढ़ता है। अक्टूबर व नवंबर के महीने में धान के अवशेष खूब जलाए जाते है। इस दौरान प्रदूषण का ग्राफ बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। लगातार वायु गुणवत्ता का स्तर डेढ़ महीने तक 350 के करीब रहा। इस दौरान लोगों को सांस लेने में पड़ी परेशानी हुई। अब भी इसका आंशिक असर बना हुआ है। आंखों में जलन होती है। इस बार जिले में करीब 1400 फायर लोकेशन आई। हालांकि कृषि विभाग के अधिकारियों ने इनमें से 50 फीसद लोकेशन को झूठी बताते हुए कार्रवाई नहीं की।
रबी के सीजन में खूब जलते है पेड़, वन विभाग भी नहीं करता कार्रवाई
ये नहीं कि सिर्फ धान के अवशेष जलाते है। किसान गेहूं के फाने खूब जलाते है। उन दिनों गेहूं के फाने के साथ रोड पर लगे पेड़ भी जलकर नष्ट हो जाते है। वन विभाग उस दौरान संबंधित लोगों पर कार्रवाई नहीं करता। हद तो यह है कि ये पेड़ स्टेट व नेशनल हाइवे के किनारे पर लगे होते है। अक्सर वहां से अधिकारी गुजरते है, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं होती।
घग्घर नदी नहीं हुई प्रदूषण मुक्त
जिले में वायु ही नहीं जल प्रदूषण से हर कोई परेशान है। जिले से एक मात्र बहती घग्घर नदी प्रदूषण के कारण दूषित हो गई। इसके हर बार सैंपल लिए जाते है, लेकिन प्रदूषण को कम करने के लिए अभी तक प्रयास नहीं हुए। यहां तक कि रतिया शहर का दूषित जल नदी में न गिरे। इसके लिए भी अधिकारियों ने रणनीति नहीं बनाई। ऐसे में क्षेत्र के लिए जीवनदायी नदी अब नाला बनकर रह गया।
नहरों में पढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए नहीं है कड़े नियम
जिले में 3 मुख्य नहरों के साथ 30 से अधिक डिस्ट्रीब्यूट्री बहती में पानी बहता हैं। लेकिन इनका पानी निर्मल रहे। इसके लिए नियमों का अभाव है। अक्सर लोग इनमें गंदगी डाल देते है, वहीं अब कई जगह इन नहरों में सेफ्टी टैंक डालने के भी मामले आए। लेकिन उनके खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं हुई।
वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए करने होंगे प्रयास
प्रदेश सरकार को वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए सामुदायिक वानिकी को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए जरूरी है कि सरकार पूरे वर्ष मौसम के अनुकूल औद्योगिक पौधे लगाने के लिए अभियान चलाए। तभी वन क्षेत्र बढ़ेगा। इससे भविष्य में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण संभव है। अब वन विभाग महज सड़क व नहर किनारे तक ही पौधे लगाने सिमित है। किसानों के खेतों में बड़े स्तर पर पौधे लगाने के लिए सरकार के पास नीति ही नहीं है।