जैन धर्म का महान पर्व पर्युषण : मुनि विजय कुमार
उन्होंने कहा कि संसार में अनेक प्रकार के पर्व आते हैं कितु यह पर्व उन सबसे भिन्न है। अन्य पर्वो में खाने-पीने नाच-गान व मनोरंजन की प्रधानता रहती है लेकिन पर्युषण पर्व इन सबसे हटकर त्याग तप व संयम की प्रेरणा देता है।
जागरण संवाददाता, हिसार: तेरापंथ भवन कटला रामलीला में विराजित शासन मुनि विजय कुमार ने बताया कि पर्युषण जैन धर्म का महान पर्व है। यह हर भाद्रव महीने में आता है। इसे नवाह्मिक महापर्व भी कहा जाता है। इसका 8वां दिन संवत्सरी के नाम से प्रसिद्ध है। हजारों व्रत उपवास उस दिन किए जाते हैं। इस वर्ष पर्युषण पर्व 15 अगस्त से प्रारंभ हो रहा है।
उन्होंने कहा कि संसार में अनेक प्रकार के पर्व आते हैं, कितु यह पर्व उन सबसे भिन्न है। अन्य पर्वो में खाने-पीने, नाच-गान व मनोरंजन की प्रधानता रहती है, लेकिन पर्युषण पर्व इन सबसे हटकर त्याग, तप व संयम की प्रेरणा देता है।
उन्होंने कहा कि पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है-अपनी आत्मा में रहना। आज का आदमी पदार्थवादी है। पदार्थो के आकर्षण में वह अपने आत्म स्वभाव को भूलता जा रहा है। पदार्थ पाने की अंधी दौड़ ने उसकी शांति को भंग कर दिया है, उसी का परिणाम है कि सबकुछ होते हुए भी वह स्वयं को अभावग्रस्त अनुभव कर रहा है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य का जीवन उपहारस्वरूप होता है, पर वह उसे भारभूत लगने लगता है। पर्युषण के प्रारंभिक 8 दिनों में व्यक्ति विविधमुखी त्याग और संयम के प्रयोगों के द्वारा अपनी आत्मा के आसपास और आत्मस्वभाव में रहने का प्रयास करता है।
तेरापंथ सभा हिसार के अध्यक्ष संजय जैन ने बताया कि पर्युषण के दिनों में 8 ही दिन नमस्कार महामंत्र का अखंड जाप चलता है, इस बार यह धर्मस्थान पर नहीं रखकर अपने-अपने घरों में ही चलेगा। इसमें अनेक भाई-बहन संभागी बन रहे हैं, जिसका जो समय निर्धारित हो वह उसी अनुरूप जाप कर्म करे।